धमतरी: रामायण की कहानी हम कई युगों से सुनते, पढ़ते और देखते आ रहे हैं. भगवान राम और उनके भाइयों के प्रेम के बारे में विस्तार से जाना है साथ ही कई दृश्यों को देखा है, लेकिन राम की बहन शांता के बारे में लोगों ने बहुत कम ही सुना होगा या यूं कहें की सुना भी नहीं होगा.
200 मीटर ऊंचे पहाड़ पर स्थित है शांता देवी
शांता देवी का मंदिर धमतरी जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर सिहावा के महेंद्रगिरी पर्वत के 200 मीटर ऊंचे पहाड़ पर स्थित है. उनके पास में श्रृंगीऋषि का मंदिर है और आज भी यहां उनके रहने के कई प्रमाण मिलते है.
कई किंविदंतिया और मान्यताएं प्रचलित
स्थानीय बताते है कि महाराजा दशरथ और उनकी पत्नी कौशल्या अयोध्या के राजा रानी थे. महाराज दशरथ की दो अन्य रानिया कैकेयी और सुमित्रा थीं. उनके चार पुत्र थे राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघन, लेकिन यह कम लोगों को पता है कि इन चार भाइयों के अलावा उनकी एक बड़ी बहन भी थी जो कौशल्या मां की बेटी थी.
पुत्र प्राप्ति के लिए कराया गया कामाक्षी यज्ञ
बताया जाता है कि शांता के बाद राजा दशरथ की कोई संतान नहीं थी. वह अपने वंश के लिए बहुत चिंतित थे. तब वह श्रृंगीऋषि के पास जाते हैं और उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिए कामाक्षी यज्ञ करने का आग्रह करते हैं. तब अयोध्या की पूर्व दिशा में एक स्थान पर राजा दशरथ के लिए पुत्र कामाक्षी यज्ञ किया जाता है.
माना जाता है कि यह यज्ञ ऋषि के आश्रम में किया गया है. जिनकी स्मृतियां आज भी इसी स्थान पर है. यज्ञ के बाद श्रृंगीऋषि ने प्रसाद के रूप में रानी कौशल्या को खीर दी थी. इस खीर के प्रसाद को कौशल्या ने कैकेयी और सुमित्रा को भी दे दिया था. जिसके बाद तीनों रानियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई.
कहा जाता है कि यज्ञ के बाद राजा दशरथ ने ऋषि को किसी भी तरह की दक्षिणा नहीं दी थी, इसलिए श्रृंगी ऋषि से राजा दशरथ ने दक्षिणा में जो भी दिया जाए उसे स्वीकार करने का आग्रह किया. जिसके बाद श्रृंगी ऋषि भी मान गए.
दक्षिणा के रुप में श्रृंगीऋषि को दी गई शांता
राजा दशरथ ने अपनी पुत्री को दक्षिणा के रूप में श्रृंगी ऋषि को दे दिया. हालांकि श्रृंगी ऋषि ने शांता देवी को अंगीकार नहीं करने की बात कही और उसे अपने आश्रम ले गए. इधर पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करने से शांता देवी श्रृंगी ऋषि के दक्षिण दिशा में वास करने लगी.
'सभी मनोकामनाएं होती है पूरी'
माता का दर्शन करने के लिए डेढ़ फीट चौड़ी और 20 फीट लंबी गुफा को पार कर जाना पड़ता है. लोगों की आस्था है कि यहां आने से मांओं की सुनी कोख भी भर जाती है. इस मंदिर में नवरात्र में लोग मनोकामना ज्योत भी प्रज्जवलित करते हैं. इसके साथ ही माता का दर्शन करने साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.