धमतरी: कोरोना काल में जहां अस्पताल को छोड़ सब बंद है, वहीं कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ मंदिरों में विशेष पूजा की अनुमति है. जहां श्रद्धालु कोरोना के लिए जारी गाइडलाइन और विशेष एहतियात बरतते हुए पूजा कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के मगरलोड इलाके के बीहड़ में स्थित निरई माता के मंदिर में नवरात्रि के पहले रविवार को विशेष पूजा अर्चना की गई. वैसे तो हर साल यहां लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, लेकिन इस साल कोरोना को देखते हुए बाहरी लोगों के प्रवेश पर बैन लगा दिया गया था. गांव के कुछ लोगों के साथ बैगा ने निरई माता की पूजा-अर्चना की.
बीमारियों से छुटकारा देकर आरोग्यता प्रदान करती हैं मां कालरात्रि
सोशल डिस्टेंसिंग के साथ पूजा-अर्चना
माता की पूजा के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग के साथ कोविड गाइडलाइन का विशेष ध्यान रखा गया. निरई माता का यह मंदिर साल में एक बार चैत्र नवरात्र के दिन खुलता है. हर साल माता के भक्तों का सैलाब उमड़ता है, लेकिन कोरोना ने बीते दो साल से मां निरई माता के मंदिर की चमक को फीका कर रखा है.
कोरोना ने फीका किया त्योहार
मां की चमत्कार और मान्यता के कारण दूर-दूर से लोग यहां खींचे चले आते है. माना जाता है कि नवरात्र में यहां एक ज्योत खूद ही जल उठती है. इसी दौरान महज एक दिन के लिए माता का दरबार अपने भक्तों के लिए खुलता है. धमतरी से करीब 70 किमी दूर मोहेरा पंचायत के घने जंगलों के बीच मां निरई माता का मंदिर स्थित है. मंदिर जंगलों के बीच बीहड़ में स्थित है फिर भी नवरात्रि पर यहां लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ती है. बताया जाता है कि सैकड़ों साल पहले बीहड़ पहाड़ में मां निरई माता का मंदिर की स्थापना की गई थी.
महिलाओं का प्रवेश वर्जित
स्थानीय लोगों एक किवदंती बताते हैं. जिसके मुताबिक इन बीहड़ में एक बैगा पुजारी रहते थे. वे शेर को हल में जोत खेत की जुताई करते थे और मां की सेवा करते थे. बैगा की सेवा से मां प्रसन्न होकर बैगा को प्यार देती थी. अपने बच्चे की तरह उसे नहलाती और खाना भी खिलाती थी. बैगा पुजारी रोज मां निरई का लाया खाना खा लेते थे, जिससे उनकी पत्नी का लाया खाना बच जाता था. जिसके कारण बैगा की पत्नी को शक हो रहा था कि उसका पति कहां से खाना खाता है. एक दिन बैगा की पत्नी पेड़ों के पीछे छिपकर देख रही थी, तभी निरई मां बैगा के लिए खाना लेकर आई. जिससे बैगा की पत्नी गुस्से में मां निरई पर क्रोधित हो उठी. बैगा की पत्नी के शक और क्रोध से नाराज मां ने उसी दिन से किसी महिला को नहीं देखते की इच्छा जताई. तभी से मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है.
एक साल एक बार ही होती है पूजा
साल में एक बार चैत्र नवरात्र के पहले रविवार को ही माता के दर्शन करने का रिवाज है. मां निरई माता का यह दरबार श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र बन गया है. भक्तों की मानें तो चैत्र नवरात्र में यहां खुद ही ज्योत जल उठती है.