धमतरी: छत्तीसगढ़ में एक स्कूल पेटी में कैद है. ये शब्द भले आपको अटपटा लग रहा हो, लेकिन ये सच है. ये पूरी घटना है धमतरी के सिहावा की. यहां बंद पेटी में बच्चों का भविष्य है. हर दिन डेढ़ बाई दो फीट की बंद पेटी से गांव के बच्चे पढ़ते जरूर हैं. लेकिन शिक्षा और स्कूल के नाम पर इनके साथ सिर्फ महज दिखावा होता है
8 सालों से पेटी में कैद है स्कूल: धमतरी जिला मुख्यालय से तकरीबन 130 किलोमीटर दूर अंतिम छोर पर बसा बरपदर गांव. ये पूरा गांव नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण पहुंच विहीन है. इस गांव में 7-8 सालों से सरकारी प्राथमिक स्कूल बंद पड़ा है. स्कूल भवन पूरी तरह से जर्जर और बदहाल है. यही कारण है कि पूरे स्कूल को एक पेटी में ट्रांसफर कर दिया गया है. ये पेटी गांव के एक शख्स घनश्याम के घर रख दी जाती है.
क्या है इस पेटी में: जब इस पेटी को खोला गया तब पेटी के अंदर से कई सामान निकले. पेटी में स्कूल का रजिस्टर, चॉक, बच्चों की ड्रेस, किताब-कॉपी, नक्शा और झंडा मिला. स्कूल भवन जर्जर होने के कारण इन सामानों को पेटी में कैद कर दिया गया है. जब बच्चों को पढ़ाना होता है. तब इस पेटी को खोला जाता है. बीते 8 साल से यह स्कूल ऐसे ही चल रहा है.
"गांव में लगभग सात आठ साल से स्कूल बंद है. यहां पर बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं. कुछ बच्चों को आसपास के स्कूल में शिफ्ट किया गया है. शासन प्रशासन से स्कूल खोलने की मांग कर चुके हैं. हालांकि पहुंच विहीन और नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण हमें अब तक सरकार से कोई मदद नहीं मिली है." - महेन्द्र नेताम, अध्यक्ष, अनुसूचित जनजाति समाज, धमतरी
क्या कहते हैं ग्रामीण:ग्रामीणों की मानें तो गांव में 15 से 20 बच्चे ऐसे हैं, जिनकी शिक्षा इस पेटी में बंद है. सरकार से कई बार स्कूल खोलने की मांग की गई. हालांकि स्कूल खोलने को लेकर सरकार ने अब तक कोई पहल नहीं की है. यही कारण है कि इस गांव के बच्चे शिक्षा से वंचित हैं. पूरे गांव में बच्चों की संख्या 25-30 के आसपास है. कुछ बच्चे तो बाहर जाकर पढ़ रहे हैं. हालांकि जिन परिजनों के पास पैसों की दिक्कत है. वो बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं. इस गांव के तकरीबन 15 से 20 बच्चे इस बंद पेटी वाले स्कूल पर भी निर्भर हैं. इन बच्चों को तो ये भी नहीं पता कि शिक्षा का मतलब क्या है?
प्रशासन का क्या है तर्क: इस विषय में ईटीवी भारत ने धमतरी के अपर कलेक्टर चन्द्रकांत कौशिक से बातचीत की. उन्होंने बताया, " प्रशासन को बरपदर गांव में स्कूल बंद होने की जानकारी मीडिया के माध्यम से मिली है. साल 2014 तक वहां स्कूल संचालित हो रहा था. लेकिन शिक्षा विभाग के अनुसार वहां बच्चे न होने के कारण वहां के चार-पांच बच्चों को दूसरे जगह शिफ्ट कर पढ़ाई शुरू कराया गया."
शिक्षा विभाग और प्रशासन के अधिकारी रटा रटाया जवाब दे रहे हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ में शिक्षा की अच्छी क्वॉलिटी का दावा करने वाली सरकार को अब इस ओर ध्यान देने की जरूरत है. एक तरफ जहां आज टॉपर बच्चे सफलता की उड़ान भर रहे हैं. तो वहीं दूसरी तरफ सिहावा इलाके के इन बच्चों की सफल जिंदगी में सरकार ही रोड़ा बन रही है. सरकार को इस समस्या पर जागरुक होकर काम करने की जरूरत है. ताकि धमतरी के इस नक्सलग्रस्त इलाके के बच्चे भी बेहतर शिक्षा हासिल कर सके.