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इस गांव में न नदी पर पुल है और न स्कूल में शिक्षक, जंगल के रास्ते करना पड़ता है सफर - गंदा पानी पीने को मजबूर ग्रामीण

मुल्क को आजाद हुए 72 साल हो गए. छत्तीसगढ़ जवानी की दहलीज पर कदम रख चुका है. सूबे की सरकार बदल गई निजाम बदल गए लेकिन कुछ नहीं बदली तो राज्य के वनांचल में रहने वाले आदिवासियों की किस्मत.

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Published : Jun 16, 2019, 10:08 PM IST

Updated : Jun 16, 2019, 11:57 PM IST

धमतरी: सरकार चाहे विकास के लाख दावे करे, उन्नति के सपने दिखाए लेकिन छत्तीसगढ़ के दूर-दराज के इलाकों को अभी भी विकास का इंतजार है. जिले के आखिरी छोर पर घने जंगलों के बीच बसा है भैंसामुड़ा गांव जंगलों की गोद में बसे होने की वजह से यहां नक्सलियों का खतरा हर वक्त बना रहता है.

स्टोरी पैकेज


स्कूल में पदस्थ हैं महज दो शिक्षक
नक्सलियों के साथ-साथ यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाओं के लिए भी जूझना पड़ता है. यहां न तो मोबाइल में नेटवर्क मिलता, न ही समय पर इलाज. कहने के लिए हाईस्कूल तो है, लेकिन यहां महज दो ही शिक्षक पदस्थ हैं. आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिए कि, जिस स्कूल में पहली से दसवीं तक के छात्रों को पढ़ाने की जिम्मेदारी महज दो शिक्षक उठाते होंगे वहां शिक्षा का स्तर क्या होगा.


जंगल से बीच से करना पड़ता है सफर
मुख्यालय जाने के लिए ग्रामीणों को जंगल के रास्ते सफर करना पड़ता है. रास्ते में पड़ने वाले नदी और नालों को पार करना पड़ता है. जंगल से गुजरते वक्त जंगली जानवरों का खतरा भी हर वक्त बना रहता है.


नहीं है सिंचाई का कोई साधन
गांव में सिंचाई का कोई साधन नहीं है. हालांकि नजदीक के गांव में एक एनीकट जरूर बनाया गया था. लेकिन मौजूदा वक्त में वो भी जर्जर हो गया है. वहीं इस मामले में कलेक्टर का का कहना है कि सरकारी योजनाओं के तहत गांव में बुनियादी सुविधा पहुंचाने के प्रयास किए जाएंगे.


कब आएंगे 'अच्छे दिन'
जहां एक ओर छत्तीसगढ़ के शहरी इलाके हर रोज अपडेट हो रहे हैं. नई टेक्नॉलॉजी के जरिए विकास के नए आयाम गढ़ रहे हैं. वहीं सूबे के गांव मूलभूत सुविधाओं तक के लिए तरस रहे हैं. अब देखना यह होगा सरकार कब इन गांवों पर ध्यान देगी और कब इनके अच्छे दिन आएंगे.

धमतरी: सरकार चाहे विकास के लाख दावे करे, उन्नति के सपने दिखाए लेकिन छत्तीसगढ़ के दूर-दराज के इलाकों को अभी भी विकास का इंतजार है. जिले के आखिरी छोर पर घने जंगलों के बीच बसा है भैंसामुड़ा गांव जंगलों की गोद में बसे होने की वजह से यहां नक्सलियों का खतरा हर वक्त बना रहता है.

स्टोरी पैकेज


स्कूल में पदस्थ हैं महज दो शिक्षक
नक्सलियों के साथ-साथ यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाओं के लिए भी जूझना पड़ता है. यहां न तो मोबाइल में नेटवर्क मिलता, न ही समय पर इलाज. कहने के लिए हाईस्कूल तो है, लेकिन यहां महज दो ही शिक्षक पदस्थ हैं. आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिए कि, जिस स्कूल में पहली से दसवीं तक के छात्रों को पढ़ाने की जिम्मेदारी महज दो शिक्षक उठाते होंगे वहां शिक्षा का स्तर क्या होगा.


जंगल से बीच से करना पड़ता है सफर
मुख्यालय जाने के लिए ग्रामीणों को जंगल के रास्ते सफर करना पड़ता है. रास्ते में पड़ने वाले नदी और नालों को पार करना पड़ता है. जंगल से गुजरते वक्त जंगली जानवरों का खतरा भी हर वक्त बना रहता है.


नहीं है सिंचाई का कोई साधन
गांव में सिंचाई का कोई साधन नहीं है. हालांकि नजदीक के गांव में एक एनीकट जरूर बनाया गया था. लेकिन मौजूदा वक्त में वो भी जर्जर हो गया है. वहीं इस मामले में कलेक्टर का का कहना है कि सरकारी योजनाओं के तहत गांव में बुनियादी सुविधा पहुंचाने के प्रयास किए जाएंगे.


कब आएंगे 'अच्छे दिन'
जहां एक ओर छत्तीसगढ़ के शहरी इलाके हर रोज अपडेट हो रहे हैं. नई टेक्नॉलॉजी के जरिए विकास के नए आयाम गढ़ रहे हैं. वहीं सूबे के गांव मूलभूत सुविधाओं तक के लिए तरस रहे हैं. अब देखना यह होगा सरकार कब इन गांवों पर ध्यान देगी और कब इनके अच्छे दिन आएंगे.

Intro:

एंकर...राज्यनिर्माण के बाद 18 साल बाद भी वनाचंल इलाके के भैंसामुड़ा गांव आज भी विकास की बाट जोह रहा है और ये गांव सरकार के विकास के दावो की पोल खोलती भी नजर आ रही है.बता दे कि धमतरी का भैसामुड़ा गांव शहरो के मुकाबले लगभग एक दशक पिछड़ी हुई है.

जिले के आखिरी छोर पर बसा है भैंसामुड़ा नाम के ये गांव घने जंगलो के बीच है.यहां माओवादियो का खासा असर भी है.सरकार की तरफ से ये गांव इस कदर उपेक्षित है कि पांच साल में एक बार वोट मांगने जनप्रतिनिधि आते है.फिर पांच साल तक झांकते तक नहीं है.गांव के किसान पानी की समस्या से जूझ रहे है.मोबाईल नेटवर्क नहीं होने के कारण आपात स्थिति में इलाज नहीं मिल पाता.सबसे बुरा हाल है यहां के स्कूलो का है कहने के लिए यहां हाई स्कूल है लेकिन सिर्फ दो शिक्षको के भरोसे ही काम चल रहा है.

ग्रामीणों का कहना है कि ब्लाॅक मुख्यालय आने जाने वाले जंगल रास्ते का सफर तय करना पड़ता है.इस बीच नदी नाले पार करने पड़ते है जहां जंगली जानवरों का खतरा भी बना रहता है.गांव में सिंचाई का कोई साधन नही है.हालांकि नजदीक के गांव में एक एनीकट जरूर बनाया गया था.पर मौजूदा वक्त में एनीकट जर्जर हो चली है.ग्रामीणों का कहना है कि ब्लाॅक मुख्यालय जाने के लिए अगर पक्की सड़क का रास्ता पकड़ा जाए तो यह दूरी तकरीबन 40 किलोमीटर की होती है जबकि जंगल रास्ते से यह महज 15 किलोमीटर की दूरी होती है.

वैसे जिला प्रशासन इस मामले में मूलभूत सुविधाओं को लेकर तुरंत निराकरण करने का आश्वासन दिया है

बाईट.......अभिमन्यु मरकाम
बाईट......मेहरू राम
बाईट.....मनोज विश्वकर्मा
बाईट.....रजत बंसलBody:जय लाल प्रजापति सिहावा धमतरी 8319178303Conclusion:
Last Updated : Jun 16, 2019, 11:57 PM IST
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