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धमतरी : ठंडे बस्ते में किचन गार्डन पहल, 10 फीसदी स्कूलों में ही हो रहा काम

किचन गार्डन की पहल लगभग बंद हो चुकी है. 10 प्रतिशत स्कूलों में इस पहल के तहत काम हो रहा है.

किचन गार्डन पहल
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Published : Jul 14, 2019, 10:02 PM IST

धमतरी : सरकारी स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील में हरी सब्जी देने के लिए स्कूलों में ही किचन गार्डन बनाने की पहल की गई थी, लेकिन ये पहल धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में जाती नजर आ रही है, जिले में संचालित सरकारी स्कूलों में से सिर्फ 10 प्रतिशत ही ऐसे हैं, जहां इस पहल के तहत काम हो रहा है.

दरअसल, जिले में कुल 1336 सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील दिया जाता है. इसमें करीब 81806 बच्चों के लिए भोजन पकाया जाता है, जिसमें सरकार की ओर से चावल की आपूर्ति सीधे पीडीएस के माध्यम से स्कूलों में की जाती है. वहीं साग सब्जी इर्धन, मसाला और बाकि की खाद्य सामाग्री के लिए प्रति छात्र रकम भुगतान किया जाता है.

बारिश के मौसम में नहीं खिला पाते हरी सब्जी
प्राथमिक शाला में प्रति छात्र 5.2 पैसे और माध्यमिक छात्र 6.82 पैसे की दर तय की गई है. वहीं यही रकम लकड़ी से भोजन बनाने पर कम होकर 4.82 पैसे और 5.2 पैसे हो जाती है. बारिश के शुरू होते ही सब्जियों के दाम आसमान छूने लगते हैं, ऐसे में बच्चों को इतने कम रुपए में हरी सब्जी खिलाना नामुमकिन हो जाता है.

बच्चों को हरी सब्जी खिलाना था उद्देश्य
बच्चों को हरी सब्जी खिलाने के उद्देश्य से किचन गार्डन बनाने की पहल की गई थी, जिसके तहत स्कूल में ही हरी सब्जी उगाई जानी थी, जिसकी जिम्मेदारी बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों की भी थी, इसका नतीजा ये होता कि सरकारी मदद के बिना भी छात्रों को पौष्टिक खाना मिलता था और प्रकृति से जुड़ाव भी बढ़ता था, लेकिन धमतरी जिले के सिर्फ 10 फीसदी स्कूलों में ही किचन गार्डन चल रहे हैं. बाकि सभी जगह बंद हो चुके हैं.

धमतरी : सरकारी स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील में हरी सब्जी देने के लिए स्कूलों में ही किचन गार्डन बनाने की पहल की गई थी, लेकिन ये पहल धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में जाती नजर आ रही है, जिले में संचालित सरकारी स्कूलों में से सिर्फ 10 प्रतिशत ही ऐसे हैं, जहां इस पहल के तहत काम हो रहा है.

दरअसल, जिले में कुल 1336 सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील दिया जाता है. इसमें करीब 81806 बच्चों के लिए भोजन पकाया जाता है, जिसमें सरकार की ओर से चावल की आपूर्ति सीधे पीडीएस के माध्यम से स्कूलों में की जाती है. वहीं साग सब्जी इर्धन, मसाला और बाकि की खाद्य सामाग्री के लिए प्रति छात्र रकम भुगतान किया जाता है.

बारिश के मौसम में नहीं खिला पाते हरी सब्जी
प्राथमिक शाला में प्रति छात्र 5.2 पैसे और माध्यमिक छात्र 6.82 पैसे की दर तय की गई है. वहीं यही रकम लकड़ी से भोजन बनाने पर कम होकर 4.82 पैसे और 5.2 पैसे हो जाती है. बारिश के शुरू होते ही सब्जियों के दाम आसमान छूने लगते हैं, ऐसे में बच्चों को इतने कम रुपए में हरी सब्जी खिलाना नामुमकिन हो जाता है.

बच्चों को हरी सब्जी खिलाना था उद्देश्य
बच्चों को हरी सब्जी खिलाने के उद्देश्य से किचन गार्डन बनाने की पहल की गई थी, जिसके तहत स्कूल में ही हरी सब्जी उगाई जानी थी, जिसकी जिम्मेदारी बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों की भी थी, इसका नतीजा ये होता कि सरकारी मदद के बिना भी छात्रों को पौष्टिक खाना मिलता था और प्रकृति से जुड़ाव भी बढ़ता था, लेकिन धमतरी जिले के सिर्फ 10 फीसदी स्कूलों में ही किचन गार्डन चल रहे हैं. बाकि सभी जगह बंद हो चुके हैं.

Intro:मध्यान भोजन के लिए स्कूलों में स्कूलों में शुरू किया गया किचन गार्डन का आईडिया धमतरी में अब मुरझा चुका है गिने-चुने स्कूलों के अलावा यह कहीं शुरू नहीं हुआ है और आज इस महत्वपूर्ण पहल की किसी को परवाह भी नहीं है.


Body:धमतरी जिला धमतरी जिले में कुल 1336 सरकारी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन चलता है जिसमें करीब 81806 बच्चों के लिए भोजन बनाया जाता है.सरकार चावल की आपूर्ति सीधे पीडीएस के माध्यम से स्कूलों को करती है.वहीं साग सब्जी इंधन और मसाला वगैरह के लिए प्रति छात्र रकम भुगतान करते हैं जिसमें प्राथमिक शाला में प्रति छात्र 5.2 पैसा और माध्यमिक में प्रति छात्र 6.82 पैसे की दर तय है.वही यही रकम लकड़ी से भोजन बनाने पर कम होकर 4.82 पैसे और 5.2 पैसे हो जाते है.यह तो हो गया योजना का हिसाब किताब अब आप अंदाजा लगाइए कि जब बरसात और गर्मी में सब्जियों के दाम आसमान पर रहते हैं तो इतने पैसों में क्या सच में 82000 बच्चों के थाली में हरी सब्जी पहुंच सकती है तो जवाब है असंभव.

इस समस्या का तोड़ था स्कूल में किचन गार्डन.जिसमें बच्चों और शिक्षक मिलकर सब्जियां उगाते और देखभाल करते है और उसका उपयोग भी करते थे.नतीजा होता था कि सरकारी मदद के बिना पौष्टिक खाना और प्रकृति से जुड़ाव.लेकिन इस शानदार पहल की सांस वेंटिलेटर पर ही उखड़ गई.धमतरी जिले के सिर्फ़ 10 फ़ीसदी स्कूलों में ही किसी तरह किचन गार्डन चल रहा है.इस विफलता के जिम्मेदार स्कूल के हेडमास्टर से लेकर जिला शिक्षा अधिकारी और सरकार चलाने वाले सभी के सभी कह जा सकते है.जहां तक स्कूल के शिक्षकों की बात है वह काम शुरू करने से पहले ही इसकी विफलता की आशंका की कहानी सुना देते है. बच्चों को रोज रोज खाना बनाकर खिलाने वाले रसोई किचन गार्डन की जरूरत महसूस करते है.




Conclusion:स्कूल सरकारी,शिक्षक सरकारी और पहल सरकारी ऐसे में उम्मीद करें कि नए प्रयोग और नए आइडिया असरकारी होंगे यह बड़ा सवाल है.

बाईट....सुनीता यादव,हेडमास्टर हरफ़तराई स्कूल
बाईट....सुकारो बाई, रसोइया(पिंक साड़ी में)
बाईट....एच सी साहू,प्राचार्य शंकरदाह स्कूल(नीले शर्ट वाला)
बाईट....टी के साहू,जिला शिक्षाधिकारी धमतरी(चेयर में बैठे हुए)

रामेश्वर मरकाम,ईटीवी भारत,धमतरी
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