धमतरी: करीब 50 सालों के लंबे संघर्ष के बाद गंगरेल बांध के डूब प्रभावितों को आखिरकार हाईकोर्ट से न्याय मिला है. डूब प्रभावितों ने पुर्नव्यस्थापन की मांग को लेकर लगातार जल सत्याग्रह, आमरण अनशन और धरना प्रदर्शन जैसे कई बड़े आंदोलन किए थे. इस मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि 3 महीने के भीतर समिति के सभी सदस्यों को जमीन प्राथमिकता के आधार पर दे. कोर्ट के इस आदेश के बाद अब डूब प्रभावितों में काफी खुशी देखी जा रही है.
गंगरेल बांध प्रभावित जन कल्याण समिति ने उच्च न्यायालय में लंबी लड़ाई के बाद पुर्नव्यस्थापन के लिए रिट याचिका दायर की थी. इस याचिका में मांग की गई थी कि 1972 से सभी परिवार विस्थापित है. जब डैम का निर्माण हो रहा था, तब राज्य सरकार ने उनकी जमीन अधिग्रहण कर लिया था. इसके एवज में उन्हें बहुत ही कम मुआवजा दिया गया था. वहीं भूमि के बदले भूमि देने का लिखित आश्वासन भी दिया गया था.
2004 से 2011 तक मिला सिर्फ आश्वासन
इस बीच मात्र 178 लोगों को ही जमीन दी गई थी, जिसमें जोगीडीह गांव बसाया गया था. बचे हुए 8 हजार परिवार को कुछ नहीं मिला जो धमतरी, दुर्ग और कांकेर जिले के थे. लगातार आंदोलन करने के बाद इन्हें 2004 से 2011 तक सिर्फ आश्वासन मिला. हालांकि, इसके बाद फिर से कुछ लोगों को जमीन दे दी गई. आखिरकार समिति ने हाईकोर्ट के अधिवक्ता संदीप दुबे के माध्यम से याचिका दायर की मांग की. इसके तहत 200 लोगों को पुनर्वास के तहत जमीन और सुविधाओं का विस्तार किया गया.
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3 महीने के भीतर कार्रवाई के लिए कोर्ट ने दिया आदेश
हाईकोर्ट में पैरवी करने वाले अधिवक्ता का कहना है कि मुआवजा के लिए कोई याचिका फाइल नही की गई थी, लेकिन संविधान में राइट टू लाइफ का अधिकार दिया गया है. इसी के तहत न्यायालय ने दुर्ग, धमतरी और कांकेर में विस्थापन के दौरान दर-दर भटक रहे भूमिहीन प्रभावितों को राजस्व व राजस्व आपदा विभाग को 3 महीने के भीतर आवश्यक कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं. उन्होंने बताया कि प्रभावितों की संख्या 8 हजार 440 है. सन 1978 से 1984 के बीच लोगों का व्यवस्थापन किया गया. वहीं 2000 से 2011 के बीच 80 लोगों को ही पुर्नव्यस्थापन का लाभ मिला.
55 गांवों के करीब 9 हजार लोगों ने दी जमीनों की कुर्बानी
किसानों को सिंचाई सुविधा के साथ ही रायपुर और दुर्ग की प्यास बुझाने और भिलाई स्टील प्लांट को पानी मुहैया करवाने के लिए धमतरी में महानदी पर 32 टीएमसी क्षमता वाले गंगरेल बांध का निर्माण किया गया था. इसके लिए 55 गांवो के करीब 9 हजार लोगों ने अपनी जमीन की कुर्बानी दी, तब जाकर गंगरेल बांध का निर्माण हो पाया था.
बहरहाल, समिति ने हाईकोर्ट के फैसले के अंतर्गत छत्तीसगढ़ शासन से विस्थापित हजारों भूमिहीन को सलोनी, कुसुमभर्री, देवरी सहित कुछ स्थानों में विस्थापितों को उनका अधिकार देने की मांग की है.