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Chhattisgarh Election 2023: धमतरी विधानसभा सीट सियासी गणित, जानें किसके हाथ लगेगी बाजी

धमतरी विधानसभा क्षेत्र का राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. इलाके का कंडेल नहर सत्याग्रह इतना महत्वपूर्ण रहा कि स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन के पहले यहां आए थे. ब्रिटिश कालीन म्यूनिसपल एक्ट के अन्तर्गत धमतरी नगर पालिका का गठन किया गया था, जो अपग्रेड होकर अब नगर निगम बन चुका है.

Chhattisgarh Election 2023
धमतरी विधानसभा सीट
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Published : May 21, 2023, 4:12 PM IST

धमतरी: राजनीतिक इतिहास की बात करें तो धमतरी विधानसभा प्रदेश की राजनीति का एक अहम हिस्सा है. यहां कई ऐसे नेता हुए, जिनकी प्रदेश की राजनीति में अच्छी पकड़ रही है. एक तरफ जनसंघ की स्थापना के लिए बाबू पंढरी राव कृदत्त ने जी तोड़ मेहनत कर मजबूत नींव रखी, तो वहीं कांग्रेस के लिए भोपाल राव पवार एक बड़ा नाम रहे. समय समय पर यहां कांग्रेस और भाजपा दोनों के नेताओं ने अपनी कार्यशैली से प्रदेश नेतृत्व का दिल जीता है.

धमतरी विधानसभा का 'भूगोल' जानें: तकरीबन 3 लाख 16 हजार जनसंख्या वाले इस विधानसभा क्षेत्र में 1 विकास खण्ड,1 नगर निगम और 1 नगर पंचायत,1 जनपद है. इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 143 गांव और 90 ग्राम पंचायत है. उत्तर में कुरुद और बालोद के साथ-साथ दक्षिण में दुर्ग विधानसभा पूर्व में नगरी और पश्चिम में गुण्डरदेही के साथ बालोद विधानसभा से घिरा हुआ है. महानदी इस विधानसभा की प्रमुख नदी है. इसके अलावा धमतरी रेलवे स्टेशन का अंतिम स्टेशन भी है. ये इलाका कृषि के साथ साथ एक बड़ा व्यापारिक केंद्र भी है. इस विधानसभा क्षेत्र में कई राजनीतिक दांव पेंच देखे जाते हैं.

dhamtari seat profile
पुरुषों से ज्यादा महिला मतदाता

पुरुषों से ज्यादा महिला मतदाता: विधानसभा क्षेत्र में कुल 209652 मतदाता है जिसमें करीब 102768 पुरुष और 106884 महिला है. यानी महिला मतदाताओं की संख्या 4116 ज्यादा है. 2008 के परिसीमन के पहले भखारा क्षेत्र धमतरी विधानसभा में आता था. परिसीमन बाद में इस क्षेत्र के 45 गांव कुरुद विधानसभा में शामिल हो गए. इसके अलावा डुबान क्षेत्र के 65 गांवों को धमतरी विधानसभा में शामिल किया गया. इसमें 10 हजार से अधिक मतदाता डुबान क्षेत्र में रहते हैं. सभी गांव एक जैसे है इसलिए मतदाताओं का रूझान एकतरफा रहता है. इस कारण वोटरों के रुख पर कुछ कहा नहीं जा सकता. विधानसभा क्षेत्र साहू बाहुल्य है. यहां करीब 27 प्रतिशत साहू मतदाता हैं. 11-11 परसेंट सतनामी और आदिवासी भी परिणाम पलटने का माददा रखते है. हालांकि यहां कभी जातिवाद की लहर नही चली. इनके अलावा ढीमर 8 परसेंट, सिन्हा और यादव 7-7 परसेंट हैं.

dhamtari seat profile
विकास ही चुनाव का अहम मुद्दा

विकास ही बना रहेगी चुनावी मुद्दा: धमतरी विधानसभा में इस बार भी विकास ही चुनाव का अहम मुद्दा होगा. यहां लोग सशक्त नेतृत्व चाहते हैं जो धमतरी को विकास की राह पर आगे बढ़ाए. औद्योगिक नगर, ट्रांसपोर्ट नगर, मेडिकल काॅलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, हाईटेक बस स्टैंड की मांग लोग लंबे समय से कर रहे हैं. इन मांगों को लेकर चुनाव में आवाज बुलंद हो सकती है. वर्तमान में भाजपा या कांग्रेस से ज्यादा लोग प्रत्याशी को महत्व देते हैं. जो प्रत्याशी जनता के विश्वास पर खरा उतरने में कामयाब होगा, जीत उसके खाते में जाएगी.

कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला: धमतरी में शुरू से भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता आया है. तीसरी पार्टी का कोई खास वजूद न पहले था और न वर्तमान में है. मतदाताओं ने ज्यादातर प्यार कांग्रेस पर लुटाया है. वर्ष 1962, 1977, 1990 और 2003 के चुनाव छोड़ दें तो बाकि चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी विजयी रहे है. कांग्रेस के केशरीमल लुंकड़, जयाबेन दोषी सहित प्रदेश के कद्दावर नेताओ में गिने जाने वाले गुरुमुख सिंह होरा लगातार 2 बार चुनाव जीतने में सफल रहे, लेकिन तीसरी बार यानी 2018 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

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  1. Chhattisgarh Election 2023 : दुर्ग ग्रामीण विधानसभा की बदली सूरत, जानिए कौन पलट सकता है बाजी
  2. Chhattisgarh Election 2023: मस्तूरी विधानसभा सीट का सियासी समीकरण समझिए
  3. Chhattisgarh Election 2023: दुर्ग शहर विधानसभा सीट पर ओबीसी फैक्टर रहता है हिट

जातिगत समीकरण होते हैं फेल: 30 प्रतिशत से अधिक वोटर वाले साहू उम्मीदवार तीन बार चुनाव हारे. सिर्फ दो बार ही जीत पाए. वहीं पांच प्रतिशत से भी कम वोटर संख्या वाले उम्मीदवारों ने भारी मतों के अंतर से चुनाव जीतने का रिकाॅर्ड बनाया है. 1985 में भाजपा ने पहली बार जातिगत समीकरण का फार्मूला अपनाते हुए कृपाराम साहू को मैदान में उतारा था. कृपाराम को 24464 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार जयाबेन ने 31374 वोट लेकर 6910 के अंतर से जीत दर्ज की. 1990 के चुनाव में फिर से भाजपा ने कृपाराम पर दांव लगाया. कृपाराम ने 42660 मत प्राप्त कर केसरीमल लुंकड़ (40043 वोट ) को 2617 वोट के मामूली अंतर से हराया. वर्ष 1998 के चुनाव में भाजपा ने जातिगत समीकरण का फार्मूला अपनाते हुए पूर्व मंत्री कृपाराम को टिकट दी, लेकिन भाजपा का फार्मूला फेल साबित हुआ. कांग्रेस के हर्षद मेहता ने 16322 वोटों के भारी अंतर से कृपाराम साहू को चुनाव हराया. हर्षद मेहता को 56520 और कृपाराम साहू को 40198 वोट मिले.

dhamtari seat profile
कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला

पिछले चुनाव में भाजपा की रंजना साहू ने दर्ज की थी जीत: वर्ष 2008 के चुनाव में भाजपा ने फिर साहू कार्ड खेलते हुए विपिन साहू को चुनाव मैदान में उतारा. उम्मीद थी कि साहू समाज के वोटर विपिन के पीछे लामबंद होकर वोट देंगे, लेकिन इसके उलट हुआ. कांग्रेस के गुरुमुख सिंह होरा 27007 मतों के रिकाॅर्ड अंतर से जीत गए. 2018 में भाजपा ने जातिगत समीकरण और महिला को ध्यान में रखते हुए रंजना साहू को मैदान में उतारा और भाजपा इसमें कामयाब रही. कांग्रेस प्रत्याशी गुरुमुख सिंह होरा और भाजपा की रंजना साहू के बीच कड़ा संघर्ष चला. आखिर में रंजना साहू (63198) ने होरा (62734) को 467 वोटों से हरा दिया.

चेहरा और मुद्दे देखकर लोग देते हैं वोट: पांच प्रतिशत से कम मतदाता संख्या वाले गुजराती समाज से चार बार विधायक चुने गए. वर्ष 1957 में पुरुषोत्तम भाई पटेल, 1980 और 1985 में दो बार जयाबेन और 1998 में हर्षद मेहता इनमें शामिल हैं. सिख समाज के मतदाता भी पांच प्रतिशत से कम हैं. इसके बावजूद गुरुमुख सिंह होरा ने लगातार दो बार 2008 और 2013 में चुनाव जीता. इससे साफ है कि लोग जाति या समाज नहीं बल्कि चेहरा और मुद्दे देखकर वोट करते हैं.

धमतरी: राजनीतिक इतिहास की बात करें तो धमतरी विधानसभा प्रदेश की राजनीति का एक अहम हिस्सा है. यहां कई ऐसे नेता हुए, जिनकी प्रदेश की राजनीति में अच्छी पकड़ रही है. एक तरफ जनसंघ की स्थापना के लिए बाबू पंढरी राव कृदत्त ने जी तोड़ मेहनत कर मजबूत नींव रखी, तो वहीं कांग्रेस के लिए भोपाल राव पवार एक बड़ा नाम रहे. समय समय पर यहां कांग्रेस और भाजपा दोनों के नेताओं ने अपनी कार्यशैली से प्रदेश नेतृत्व का दिल जीता है.

धमतरी विधानसभा का 'भूगोल' जानें: तकरीबन 3 लाख 16 हजार जनसंख्या वाले इस विधानसभा क्षेत्र में 1 विकास खण्ड,1 नगर निगम और 1 नगर पंचायत,1 जनपद है. इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 143 गांव और 90 ग्राम पंचायत है. उत्तर में कुरुद और बालोद के साथ-साथ दक्षिण में दुर्ग विधानसभा पूर्व में नगरी और पश्चिम में गुण्डरदेही के साथ बालोद विधानसभा से घिरा हुआ है. महानदी इस विधानसभा की प्रमुख नदी है. इसके अलावा धमतरी रेलवे स्टेशन का अंतिम स्टेशन भी है. ये इलाका कृषि के साथ साथ एक बड़ा व्यापारिक केंद्र भी है. इस विधानसभा क्षेत्र में कई राजनीतिक दांव पेंच देखे जाते हैं.

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पुरुषों से ज्यादा महिला मतदाता

पुरुषों से ज्यादा महिला मतदाता: विधानसभा क्षेत्र में कुल 209652 मतदाता है जिसमें करीब 102768 पुरुष और 106884 महिला है. यानी महिला मतदाताओं की संख्या 4116 ज्यादा है. 2008 के परिसीमन के पहले भखारा क्षेत्र धमतरी विधानसभा में आता था. परिसीमन बाद में इस क्षेत्र के 45 गांव कुरुद विधानसभा में शामिल हो गए. इसके अलावा डुबान क्षेत्र के 65 गांवों को धमतरी विधानसभा में शामिल किया गया. इसमें 10 हजार से अधिक मतदाता डुबान क्षेत्र में रहते हैं. सभी गांव एक जैसे है इसलिए मतदाताओं का रूझान एकतरफा रहता है. इस कारण वोटरों के रुख पर कुछ कहा नहीं जा सकता. विधानसभा क्षेत्र साहू बाहुल्य है. यहां करीब 27 प्रतिशत साहू मतदाता हैं. 11-11 परसेंट सतनामी और आदिवासी भी परिणाम पलटने का माददा रखते है. हालांकि यहां कभी जातिवाद की लहर नही चली. इनके अलावा ढीमर 8 परसेंट, सिन्हा और यादव 7-7 परसेंट हैं.

dhamtari seat profile
विकास ही चुनाव का अहम मुद्दा

विकास ही बना रहेगी चुनावी मुद्दा: धमतरी विधानसभा में इस बार भी विकास ही चुनाव का अहम मुद्दा होगा. यहां लोग सशक्त नेतृत्व चाहते हैं जो धमतरी को विकास की राह पर आगे बढ़ाए. औद्योगिक नगर, ट्रांसपोर्ट नगर, मेडिकल काॅलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, हाईटेक बस स्टैंड की मांग लोग लंबे समय से कर रहे हैं. इन मांगों को लेकर चुनाव में आवाज बुलंद हो सकती है. वर्तमान में भाजपा या कांग्रेस से ज्यादा लोग प्रत्याशी को महत्व देते हैं. जो प्रत्याशी जनता के विश्वास पर खरा उतरने में कामयाब होगा, जीत उसके खाते में जाएगी.

कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला: धमतरी में शुरू से भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता आया है. तीसरी पार्टी का कोई खास वजूद न पहले था और न वर्तमान में है. मतदाताओं ने ज्यादातर प्यार कांग्रेस पर लुटाया है. वर्ष 1962, 1977, 1990 और 2003 के चुनाव छोड़ दें तो बाकि चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशी विजयी रहे है. कांग्रेस के केशरीमल लुंकड़, जयाबेन दोषी सहित प्रदेश के कद्दावर नेताओ में गिने जाने वाले गुरुमुख सिंह होरा लगातार 2 बार चुनाव जीतने में सफल रहे, लेकिन तीसरी बार यानी 2018 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

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  2. Chhattisgarh Election 2023: मस्तूरी विधानसभा सीट का सियासी समीकरण समझिए
  3. Chhattisgarh Election 2023: दुर्ग शहर विधानसभा सीट पर ओबीसी फैक्टर रहता है हिट

जातिगत समीकरण होते हैं फेल: 30 प्रतिशत से अधिक वोटर वाले साहू उम्मीदवार तीन बार चुनाव हारे. सिर्फ दो बार ही जीत पाए. वहीं पांच प्रतिशत से भी कम वोटर संख्या वाले उम्मीदवारों ने भारी मतों के अंतर से चुनाव जीतने का रिकाॅर्ड बनाया है. 1985 में भाजपा ने पहली बार जातिगत समीकरण का फार्मूला अपनाते हुए कृपाराम साहू को मैदान में उतारा था. कृपाराम को 24464 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार जयाबेन ने 31374 वोट लेकर 6910 के अंतर से जीत दर्ज की. 1990 के चुनाव में फिर से भाजपा ने कृपाराम पर दांव लगाया. कृपाराम ने 42660 मत प्राप्त कर केसरीमल लुंकड़ (40043 वोट ) को 2617 वोट के मामूली अंतर से हराया. वर्ष 1998 के चुनाव में भाजपा ने जातिगत समीकरण का फार्मूला अपनाते हुए पूर्व मंत्री कृपाराम को टिकट दी, लेकिन भाजपा का फार्मूला फेल साबित हुआ. कांग्रेस के हर्षद मेहता ने 16322 वोटों के भारी अंतर से कृपाराम साहू को चुनाव हराया. हर्षद मेहता को 56520 और कृपाराम साहू को 40198 वोट मिले.

dhamtari seat profile
कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला

पिछले चुनाव में भाजपा की रंजना साहू ने दर्ज की थी जीत: वर्ष 2008 के चुनाव में भाजपा ने फिर साहू कार्ड खेलते हुए विपिन साहू को चुनाव मैदान में उतारा. उम्मीद थी कि साहू समाज के वोटर विपिन के पीछे लामबंद होकर वोट देंगे, लेकिन इसके उलट हुआ. कांग्रेस के गुरुमुख सिंह होरा 27007 मतों के रिकाॅर्ड अंतर से जीत गए. 2018 में भाजपा ने जातिगत समीकरण और महिला को ध्यान में रखते हुए रंजना साहू को मैदान में उतारा और भाजपा इसमें कामयाब रही. कांग्रेस प्रत्याशी गुरुमुख सिंह होरा और भाजपा की रंजना साहू के बीच कड़ा संघर्ष चला. आखिर में रंजना साहू (63198) ने होरा (62734) को 467 वोटों से हरा दिया.

चेहरा और मुद्दे देखकर लोग देते हैं वोट: पांच प्रतिशत से कम मतदाता संख्या वाले गुजराती समाज से चार बार विधायक चुने गए. वर्ष 1957 में पुरुषोत्तम भाई पटेल, 1980 और 1985 में दो बार जयाबेन और 1998 में हर्षद मेहता इनमें शामिल हैं. सिख समाज के मतदाता भी पांच प्रतिशत से कम हैं. इसके बावजूद गुरुमुख सिंह होरा ने लगातार दो बार 2008 और 2013 में चुनाव जीता. इससे साफ है कि लोग जाति या समाज नहीं बल्कि चेहरा और मुद्दे देखकर वोट करते हैं.

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