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SPECIAL: रेशम के धागे से बुन रहे खुशियों का ताना-बाना, स्वसहायता समूह की दीदियां बनीं आत्मनिर्भर

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा की महिलाओं ने अब जिंदगी में खुशियों का ताना-बाना रेशम के धागों से बुनना शुरू कर दिया है. महिलाएं घर और खेत के काम के साथ कोसा से धागा निकालकर आत्मनिर्भर हो रही हैं.

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रेशम से धागा बनाती महिलाएं
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Published : Dec 8, 2020, 1:01 PM IST

Updated : Dec 9, 2020, 11:53 AM IST

दंतेवाड़ा: नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में अब रेशम की डोर से आदिवासी खुशियों का ठिकाना खोज रहे हैं. जिले के गीदम ब्लॉक के छोटे से गांव बिंजाम के कासिम स्वसहायता समूह की दीदियों ने कोसा से धागा निकालने की कला सीखकर अपने कमाई के स्रोत को बढ़ाते हुए जीवनस्तर को बेहतर कर आत्मनिर्भर बन रही हैं.

रेशम के धागे से बुन रहे खुशियों का ताना-बाना

पहले यहां खेती, घर की बाड़ी और जंगली उत्पादों की ब्रिकी से ही महिलाओं और उनके परिवार का जीवनयापन होता था. जीवनस्तर सामान्य से भी नीचे स्तर का था, लेकिन अब महिलाएं कोसा से धागा निकालने की कला सीखकर अपने जीवन के ताने-बाने बुन रही हैं.

काफी लगन और मेहनत से सीखा काम

कासिम स्वसहायता समूह की महिलाएं काफी लगन और मेहनत के साथ कोसा से धागा निकालने की कला को निखारते हुए आगे बढ़ रही हैं. इस काम के पीछे सोच दंतेवाड़ा कलेक्टर दीपक सोनी की है, जिन्होंने महिलाओं को कोसा से धागा निकालने के काम को सुझाया. महिलाओं ने प्रशिक्षण के दौरान ही 12 हजार रुपए का धागा बनाकर अपनी कमाई को बढ़ाया. समूह की महिलाओं को हर माह 3 से 4 किलो धागा बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. महिलाओं को प्रति किलो 1 हजार से 1500 रुपए तक का लाभ धागा बनाने से हो रहा है. हर महीने चार से पांच हजार तक की आमदनी दीदियों को हो रही है.

पढ़ें- SPECIAL: जांजगीर चांपा में कोसा उत्पादन बढ़ाने की जरूरत, ताकि संवर सके लोगों की जिंदगी

कोसा से धागा निकालने की बड़ी कठिन प्रक्रिया

कोसा से धागा निकालने का काम छत्तीसगढ़ की कुछ चुनिंदा जगहों पर ही किया जाता है. पारंपरिक रूप से यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती आ रही है. समूह की महिलाएं कोसा खरीदी से लेकर, धागा बनाने और उसे बेचने तक का काम सीख चुकी हैं. कोसा से धागा निकालने की प्रक्रिया में सबसे पहले दीदियां कोसे की ग्रेडिंग करती हैं. ग्रेडिंग के बाद प्रतिदिन के हिसाब से कोसा उबाला जाता है और उबले हुए कोसे से धागा बनाया जाता है. इसके बाद इसे पैकिंग कर व्यापारियों को बेचा जाता है. बिक्री से आए रुपयों से पहले कोसे का पैसा रेशम विभाग को चुकाया जाता है. इसके बाद बचे हुए रुपयों से दीदियां अपना व्यवसाय आगे बढ़ाने और परिवार को चलाने में उपयोग करती हैं.

खुद के साथ परिवार की आर्थिक स्थिति सुधरी

स्वसहायता समूह की सदस्य सीमा यादव ने बताया कि प्रशासन की इस पहल से उन्हें रोजगार तो मिला ही है, साथ में उनकी आर्थिक स्थिति भी ठीक हुई है. महीने में 5 से 6 हजार रुपए की आमदनी उन्हें हो जाती है. जिससे उनके घर की आर्थिक स्थिति सुधरी है. वहीं समूह की एक और सदस्य संतोषी यादव ने बताया कि उनके परिवार में 7 लोग हैं. परिवार बड़ा होने के चलते उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर थी, लेकिन अब अच्छे से गुजर-बसर हो रही है.

सेंटर इंचार्ज चैत कुमार राणा के मुताबिक, समूह की महिलाओं को प्रतिमाह तीन से पांच किलो धागा बनाने का लक्ष्य निर्धारित है. प्रति किलो एक हजार से 1300 रुपए तक का लाभ धागा बनाने से हो रहा है. इस प्रकार एक माह में तीन से पांच हजार की आमदनी महिलाओं को हो रही है.

दंतेवाड़ा: नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में अब रेशम की डोर से आदिवासी खुशियों का ठिकाना खोज रहे हैं. जिले के गीदम ब्लॉक के छोटे से गांव बिंजाम के कासिम स्वसहायता समूह की दीदियों ने कोसा से धागा निकालने की कला सीखकर अपने कमाई के स्रोत को बढ़ाते हुए जीवनस्तर को बेहतर कर आत्मनिर्भर बन रही हैं.

रेशम के धागे से बुन रहे खुशियों का ताना-बाना

पहले यहां खेती, घर की बाड़ी और जंगली उत्पादों की ब्रिकी से ही महिलाओं और उनके परिवार का जीवनयापन होता था. जीवनस्तर सामान्य से भी नीचे स्तर का था, लेकिन अब महिलाएं कोसा से धागा निकालने की कला सीखकर अपने जीवन के ताने-बाने बुन रही हैं.

काफी लगन और मेहनत से सीखा काम

कासिम स्वसहायता समूह की महिलाएं काफी लगन और मेहनत के साथ कोसा से धागा निकालने की कला को निखारते हुए आगे बढ़ रही हैं. इस काम के पीछे सोच दंतेवाड़ा कलेक्टर दीपक सोनी की है, जिन्होंने महिलाओं को कोसा से धागा निकालने के काम को सुझाया. महिलाओं ने प्रशिक्षण के दौरान ही 12 हजार रुपए का धागा बनाकर अपनी कमाई को बढ़ाया. समूह की महिलाओं को हर माह 3 से 4 किलो धागा बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. महिलाओं को प्रति किलो 1 हजार से 1500 रुपए तक का लाभ धागा बनाने से हो रहा है. हर महीने चार से पांच हजार तक की आमदनी दीदियों को हो रही है.

पढ़ें- SPECIAL: जांजगीर चांपा में कोसा उत्पादन बढ़ाने की जरूरत, ताकि संवर सके लोगों की जिंदगी

कोसा से धागा निकालने की बड़ी कठिन प्रक्रिया

कोसा से धागा निकालने का काम छत्तीसगढ़ की कुछ चुनिंदा जगहों पर ही किया जाता है. पारंपरिक रूप से यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होती आ रही है. समूह की महिलाएं कोसा खरीदी से लेकर, धागा बनाने और उसे बेचने तक का काम सीख चुकी हैं. कोसा से धागा निकालने की प्रक्रिया में सबसे पहले दीदियां कोसे की ग्रेडिंग करती हैं. ग्रेडिंग के बाद प्रतिदिन के हिसाब से कोसा उबाला जाता है और उबले हुए कोसे से धागा बनाया जाता है. इसके बाद इसे पैकिंग कर व्यापारियों को बेचा जाता है. बिक्री से आए रुपयों से पहले कोसे का पैसा रेशम विभाग को चुकाया जाता है. इसके बाद बचे हुए रुपयों से दीदियां अपना व्यवसाय आगे बढ़ाने और परिवार को चलाने में उपयोग करती हैं.

खुद के साथ परिवार की आर्थिक स्थिति सुधरी

स्वसहायता समूह की सदस्य सीमा यादव ने बताया कि प्रशासन की इस पहल से उन्हें रोजगार तो मिला ही है, साथ में उनकी आर्थिक स्थिति भी ठीक हुई है. महीने में 5 से 6 हजार रुपए की आमदनी उन्हें हो जाती है. जिससे उनके घर की आर्थिक स्थिति सुधरी है. वहीं समूह की एक और सदस्य संतोषी यादव ने बताया कि उनके परिवार में 7 लोग हैं. परिवार बड़ा होने के चलते उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर थी, लेकिन अब अच्छे से गुजर-बसर हो रही है.

सेंटर इंचार्ज चैत कुमार राणा के मुताबिक, समूह की महिलाओं को प्रतिमाह तीन से पांच किलो धागा बनाने का लक्ष्य निर्धारित है. प्रति किलो एक हजार से 1300 रुपए तक का लाभ धागा बनाने से हो रहा है. इस प्रकार एक माह में तीन से पांच हजार की आमदनी महिलाओं को हो रही है.

Last Updated : Dec 9, 2020, 11:53 AM IST
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