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SPECIAL: पीढ़ियां गुजार दीं दूसरों का घर रोशन करने में, अब दो वक्त की रोटी कमाना भी मुश्किल

बर्तन और दीये बनाने वाले आज अपना मेहनताना नहीं निकाल पा रहे हैं. कुम्हारों की खरीददारी अब पहले जैसी नहीं हो रही है.

कुम्हारों की खरीददारी अब पहले जैसी नहीं हो रही है
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Published : Oct 18, 2019, 7:04 PM IST

दंतेवाड़ा: ये हाथ दूसरों के घरों को रोशन करने वाले दीये बनाते हैं लेकिन चाइनीज झालर और इलेक्ट्रिक लाइट्स ने इन्हें बनाने वालों के घर अंधेरा कर दिया है. चाक पर रखी मिट्टी पर प्यार से हाथ फेरते फिर बर्तन और दीये बनाने वाले आज अपना मेहनताना भी नहीं निकाल पा रहे हैं. कभी इनके बनाए दीयों के रोशन होने पर घर की आंगन, छत की मुंडेर इतराती थी लेकिन आज इन परंपराओं से जैसे हमसे मुंह मोड़ लिया है.

पीढ़ियां गुजार दीं दूसरों का घर रोशन करने में, अब दो वक्त की रोटी कमाना भी मुश्किल

दंतेवाड़ा जिले में एक पंचायत ऐसी भी है, जहां कई पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तनों को बनाने का काम यहां के बाशिन्दे कर रहे हैं. लेकिन अब इनकी स्थिति दयनीय है. मिट्टी के दीये बनाकर इनका मेहनताना भी नहीं निकल पाता लेकिन ये परंपरा निभाते आ रहे हैं. अब पहले जैसी खरीदारी नहीं रही.

लोग कम खरीद रहे हैं मिट्टी के दीये
कुम्हाररास का रहने वाला बुजुर्ग बताता है कि पीढ़ियां गुजर गईं दूसरों का घर रोशन करते-करते, अब इस मिट्टी की कमाई से खुद का घर रोशन नहीं होता है. कुम्हारों की हालत खराब है, घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है. वे कहते हैं कि पहले मिट्टी के दीये खूब बनते थे लेकिन अब लोग कुछ दीये सिर्फ नाम करने को ले जाते हैं.
करवा चौथ पर करवा तैयार करते हैं

हाल ही में करवा चौथ बीता है. शहर की महिलाएं शगुन के तौर पर मिट्टी का करवा खरीद कर ले जाती हैं और उनकी यही कमाई है. कुम्हार कहते हैं कि अब कोई मिट्टी के दीयों को तरजीह नहीं देती है.

'पीढ़ी दर पीढ़ी किया काम, बच्चे छोड़ रहे हैं'
मिट्टी के बर्तन बनाने काम इस पंचायत में रहने वाले लोग कई साल से कर रहे हैं. ये लोग पीढ़ी दर पीढ़ी ये काम करते आ रहे हैं लेकिन नए बच्चों को इसमें रुचि नहीं है. नई पीढ़ी इससे मुंह मोड़ रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि इस काम में मेहनत तो बहुत लगती है लेकिन आमदनी बहुत कम है.

बिजली से भी घूमता है मिट्टी का चका
मिट्टी के बर्तन बनाने में थोड़ी सी सहूलियत देखने को जरूर मिली. साधुराम के घर में चका बिजली के करंट से चल रहा है. साधुराम कहते हैं मेहनत थोड़ी सी कम हुई है, लेकिन बिन हाथ लगाए काम नहीं चलता. वे यह भी बताते हैं कि 10 साल पहले दिवाली का मतलब था पूरे साल का मुनाफा तैयार हो जाना. लेकिन अब कहां मनाई जाती है पहले सी दिवाली, रह जाती है जेब खाली.

दंतेवाड़ा: ये हाथ दूसरों के घरों को रोशन करने वाले दीये बनाते हैं लेकिन चाइनीज झालर और इलेक्ट्रिक लाइट्स ने इन्हें बनाने वालों के घर अंधेरा कर दिया है. चाक पर रखी मिट्टी पर प्यार से हाथ फेरते फिर बर्तन और दीये बनाने वाले आज अपना मेहनताना भी नहीं निकाल पा रहे हैं. कभी इनके बनाए दीयों के रोशन होने पर घर की आंगन, छत की मुंडेर इतराती थी लेकिन आज इन परंपराओं से जैसे हमसे मुंह मोड़ लिया है.

पीढ़ियां गुजार दीं दूसरों का घर रोशन करने में, अब दो वक्त की रोटी कमाना भी मुश्किल

दंतेवाड़ा जिले में एक पंचायत ऐसी भी है, जहां कई पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तनों को बनाने का काम यहां के बाशिन्दे कर रहे हैं. लेकिन अब इनकी स्थिति दयनीय है. मिट्टी के दीये बनाकर इनका मेहनताना भी नहीं निकल पाता लेकिन ये परंपरा निभाते आ रहे हैं. अब पहले जैसी खरीदारी नहीं रही.

लोग कम खरीद रहे हैं मिट्टी के दीये
कुम्हाररास का रहने वाला बुजुर्ग बताता है कि पीढ़ियां गुजर गईं दूसरों का घर रोशन करते-करते, अब इस मिट्टी की कमाई से खुद का घर रोशन नहीं होता है. कुम्हारों की हालत खराब है, घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है. वे कहते हैं कि पहले मिट्टी के दीये खूब बनते थे लेकिन अब लोग कुछ दीये सिर्फ नाम करने को ले जाते हैं.
करवा चौथ पर करवा तैयार करते हैं

हाल ही में करवा चौथ बीता है. शहर की महिलाएं शगुन के तौर पर मिट्टी का करवा खरीद कर ले जाती हैं और उनकी यही कमाई है. कुम्हार कहते हैं कि अब कोई मिट्टी के दीयों को तरजीह नहीं देती है.

'पीढ़ी दर पीढ़ी किया काम, बच्चे छोड़ रहे हैं'
मिट्टी के बर्तन बनाने काम इस पंचायत में रहने वाले लोग कई साल से कर रहे हैं. ये लोग पीढ़ी दर पीढ़ी ये काम करते आ रहे हैं लेकिन नए बच्चों को इसमें रुचि नहीं है. नई पीढ़ी इससे मुंह मोड़ रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि इस काम में मेहनत तो बहुत लगती है लेकिन आमदनी बहुत कम है.

बिजली से भी घूमता है मिट्टी का चका
मिट्टी के बर्तन बनाने में थोड़ी सी सहूलियत देखने को जरूर मिली. साधुराम के घर में चका बिजली के करंट से चल रहा है. साधुराम कहते हैं मेहनत थोड़ी सी कम हुई है, लेकिन बिन हाथ लगाए काम नहीं चलता. वे यह भी बताते हैं कि 10 साल पहले दिवाली का मतलब था पूरे साल का मुनाफा तैयार हो जाना. लेकिन अब कहां मनाई जाती है पहले सी दिवाली, रह जाती है जेब खाली.

Intro: पीढियां गुजर गई दूसरों का घर रोशन करने में, अब दिए बनाने में मेहनताना भी नही निकलता
दंतेवाड़ा। जिले में एक पंचायत ऐसी भी जहां कई पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तनों को बनाने का काम यहां के बाशिन्दे कर रहे है। लेकिन अब इनकी स्थिति दयनीय है। इसके बाद भी बतौर परम्परा दीपावली को दिए तैयार करते आ रहे है। जब कि पहले जैसी अब बिक्री भी नही रही है। कुम्हाररास का रहने वाला बुजुर्ग बताता है कि पीढियां गुजर गई दूसरों का घर रोशन करते-करते, अब इस मिट्टी की कमाई से खुद का घर रोशन नही होता है। हालात बड़ी ही दयनीय है। घर चलना मुश्किल हो रहा है। दीपावली को यह सोच कर दिए बनाते है, बहुत लोग आते है 10-5 दीये लेने।
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Body:करवा चौथ पर करवा तैयार करते है
करवा चौथ पर मिट्टी का करवा तैयार करते है। शहर की महिलाएं शगुन के तौर पर मिट्टी का करवा खरीद कर ले जाती है। यही थोड़ी बहुत बिक्री होती है। मिट्टी के बर्तन का समय ऐसा लगता है अब गुजर चुका है। कोई भी मिट्टी के बर्तनों को उतनी तरजीह नही देता है।
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: पीढ़ी दर पीढ़ी किया काम, बच्चे छोड़ रहे है
मिट्टी के बर्तन बनाने काम इस पंचायत में रहने वाले लोग 100 से भी अधिक समय से कर रहे है। पीढ़ी दर पीढ़ी यही काम होता था। अब इस काम से बच्चे मुह फेर रहे है। आमदनी है नही मेहनत बहुत लगती है। मिनट का परिणाम शून्य है। इस लिए गांव के बहुत परिवारों ने यह काम छोड़ दिया है।

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बिजली से भी घूमता है मिट्टी का चका
मिट्टी के बर्तन बनाने में थोड़ी सी सहूलियत देखने को जरूर मिली। साधुराम के घर मे चका बिजली के करंट से चल रहा है। साधुराम कहते है मेहनत थोड़ी सी काम हुई है, लईकिन मिटटी के काम मे मेहनत तो पड़ती ही है। 10 साल पहले दिवाली का मतलाब था पूरे साल का मुनाफा तैयार हो जाना है। कमा लेते थे तो पूरा साल चलता था। बीच-बीच मे मिट्टी के बर्तन बिकते रहते थे। अब बिक्री न के बराबर हो गई है।Conclusion:Vis
Byt- बुजुर्ग राय सिंह
Byt प्रमोद शहर में मिट्टी के बर्तन बेचता
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