दंतेवाड़ा: ये हाथ दूसरों के घरों को रोशन करने वाले दीये बनाते हैं लेकिन चाइनीज झालर और इलेक्ट्रिक लाइट्स ने इन्हें बनाने वालों के घर अंधेरा कर दिया है. चाक पर रखी मिट्टी पर प्यार से हाथ फेरते फिर बर्तन और दीये बनाने वाले आज अपना मेहनताना भी नहीं निकाल पा रहे हैं. कभी इनके बनाए दीयों के रोशन होने पर घर की आंगन, छत की मुंडेर इतराती थी लेकिन आज इन परंपराओं से जैसे हमसे मुंह मोड़ लिया है.
दंतेवाड़ा जिले में एक पंचायत ऐसी भी है, जहां कई पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तनों को बनाने का काम यहां के बाशिन्दे कर रहे हैं. लेकिन अब इनकी स्थिति दयनीय है. मिट्टी के दीये बनाकर इनका मेहनताना भी नहीं निकल पाता लेकिन ये परंपरा निभाते आ रहे हैं. अब पहले जैसी खरीदारी नहीं रही.
लोग कम खरीद रहे हैं मिट्टी के दीये
कुम्हाररास का रहने वाला बुजुर्ग बताता है कि पीढ़ियां गुजर गईं दूसरों का घर रोशन करते-करते, अब इस मिट्टी की कमाई से खुद का घर रोशन नहीं होता है. कुम्हारों की हालत खराब है, घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है. वे कहते हैं कि पहले मिट्टी के दीये खूब बनते थे लेकिन अब लोग कुछ दीये सिर्फ नाम करने को ले जाते हैं.
करवा चौथ पर करवा तैयार करते हैं
हाल ही में करवा चौथ बीता है. शहर की महिलाएं शगुन के तौर पर मिट्टी का करवा खरीद कर ले जाती हैं और उनकी यही कमाई है. कुम्हार कहते हैं कि अब कोई मिट्टी के दीयों को तरजीह नहीं देती है.
'पीढ़ी दर पीढ़ी किया काम, बच्चे छोड़ रहे हैं'
मिट्टी के बर्तन बनाने काम इस पंचायत में रहने वाले लोग कई साल से कर रहे हैं. ये लोग पीढ़ी दर पीढ़ी ये काम करते आ रहे हैं लेकिन नए बच्चों को इसमें रुचि नहीं है. नई पीढ़ी इससे मुंह मोड़ रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि इस काम में मेहनत तो बहुत लगती है लेकिन आमदनी बहुत कम है.
बिजली से भी घूमता है मिट्टी का चका
मिट्टी के बर्तन बनाने में थोड़ी सी सहूलियत देखने को जरूर मिली. साधुराम के घर में चका बिजली के करंट से चल रहा है. साधुराम कहते हैं मेहनत थोड़ी सी कम हुई है, लेकिन बिन हाथ लगाए काम नहीं चलता. वे यह भी बताते हैं कि 10 साल पहले दिवाली का मतलब था पूरे साल का मुनाफा तैयार हो जाना. लेकिन अब कहां मनाई जाती है पहले सी दिवाली, रह जाती है जेब खाली.