दंतेवाड़ा: दक्षिण बस्तर की ऐतिहासिक फाल्गुन मड़ई की शुरुआत हो गई है. इस अवसर पर मावली माता देवी मंदिर में कलश की स्थापना की गई. उसके बाद शाम में माईजी की पहली पालकी निकाली जाएगी. जबकि रात में ताडंफलंगा धोनी की रस्म निभाई जाएगी. माईजी की डोली और छत्र निकालने का क्रम रविविार से पूरे दस दिनों तक जारी रहेगा. गंवरमार का कार्यक्रम 5 मार्च को होगा तो वहीं बड़ा मेला 8 मार्च दिन बुधवार को होगा. रविवार से मेला में शामिल होने के लिए विभिन्न गांवों से 700 सौ से ज्यादा देवी-देवताओं के छत्र और लाठ के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है.
दंतेश्वरी मंदिर में की गई कलश स्थापना: कलश स्थापना रस्म अदायगी के लिए रविवार सुबह माई दंतेश्वरी मंदिर में पुजारी और सेवादार मंदिर परिसर में भक्तिभाव से जुटे रहे. परंपरागत ढंग से मां दंतेश्वरी की छत्र और लाठ को सुबह पूजा अर्चना के बाद निकाला गया. सुबह 11 बजे प्रधान पुजारी, सेवादार और 12 लंकवार की उपस्थित में छत्र और लाठ को मंदिर से निकाला गया. मंदिर के प्रवेश द्वार पर 5 पुलिस के जवानों द्वारा हर्षफायर कर सलामी दी गई.
विधिवत पूजा कर किया कलश स्थापित: जिसके बाद माइजी की छत्र को परंपरानुसार वाद्य यंत्रों के साथ ढोल बजाते हुए मेडका डोबरा स्थित मावली माता देवी स्थल पर लाया गया. जहां फिर जवानों द्वारा हर्ष फायर कर मां दंतेश्वरी देवी की छत्र और लाठ को सलामी दी गई. उसके बाद माईजी की छत्र और छड़ी को मावली माता देवी मंदिर के अंदर लाया गया. विधिवत पूजा अर्चना कर कलश प्रज्जवलित की गई.
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फाल्गुन मंडई की शुरूआत: कलश स्थापना के साथ ही दस दिनों तक चलने वाला दक्षिण बस्तर का प्रसिद्ध फाल्गुन मंडई की शुरूआत से हो गई. परंपरागत ढंग से आज शाम आमंत्रित देवी देवताओं के साथ मां दंतेश्वरी मांदर, बाजा और मोहरी की गूंज के बीच और सेवादारों द्वारा जयघोष के साथ मांईजी की पहली डोली निकाली जाएगी. जिसमें भारी संख्या में ग्रामीण मौजूद रहेंगे.
डोली परिक्रमा की रस्म होगी: शाम 4 बजे डोली को मंदिर से निकाला जाएगा, उसके बाद परिक्रमा पूरी की जाएगी. डोली परिक्रमा करते हुए नगर के ऐतिहासिक दंतेश्वरी सरोवर के किनारे स्थित नारायण मंदिर पहुंचेगी. जहां परंपरानुसार डोली को जवानों की तरफ से हर्ष फायर कर सलामी दी जाएगी. जिसके उपरांत डोली की पूजा अर्चना होगी. उसके बाद डोली को पूरे विधि विधान के साथ वापस मंदिर में लाकर रखा जाएगा.
अगले 10 दिन तक शाम को डोली निकलेगी: आदिवासियों की आस्था, परंपरा और श्रद्धा से जुड़ा यह ऐतिहासिक पर्व रविवार से दस दिनों तक चलेगा. हर दिन शाम को डोली निकाली जाएगी और आखेट परंपरा का निवर्हन किया जाएगा. कलश स्थापना के दौरान मंदिर के पुजारी, तहसीलदार, सेवादार, मांझी, चालकी, कतियार, तुडपा और समरथ मौजूद रहेंगे.