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दिवाली के आठ दिन पहले से होती है मां दंतेश्वरी की पूजा, जड़ी-बूटी से होता है मां का स्नान

दंतेवाड़ा (Dantewada) में मां दंतेश्वरी (Maa danteswari) की पूजा-अर्चना दीपावली (Diwali) के आठ दिन पहले से ही की जाती है. इसमें मां दंतेश्वरी को जंगल से लाई जड़ी-बूटी(Jadi buti) से नहलाया (Bath) जाता है, फिर उस जल को लोगों को प्रसाद के तौर पर दिया जाता है.

Mother's bath is done with herbs
जड़ी-बूटी से होता है मां का स्नान
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Published : Nov 3, 2021, 6:14 PM IST

Updated : Nov 3, 2021, 7:23 PM IST

दंतेवाड़ाः छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के दंतेवाड़ा (Dantewada) में आदि शक्ति मां दंतेश्वरी (Maa danteswari) की पूजा-अर्चना दीपावली (Diwali) के आठ दिन पहले से ही कई परम्पराओं का साथ की जाती है. बताया जा रहा है कि वर्षों से ये परम्परा निभाई जा ही है. दीपावली (Dipawli) में मां दंतेश्वरी के लक्ष्मी (Maa laxmi)स्वरुप की पूजा-अर्चना 12 अलंकार द्वारा दीपावली के आठ दिनों पहले ही तुलसी पूजा (Tulsi puja) की रस्म के साथ निभाई जाती है. जिसमें ठेंगर ठैगा (Thangar Thaga) विशेष पूजा की जाती है.

आठ दिन पहले से होती है मां दंतेश्वरी की पूजा

जड़ी-बूटी के जल से होता है मां का स्नान

इस पूजा में 12 अलंकार में से वोडका परिवार (vodka family) को एक विशेष दायित्व दिया जाता है. जिसमें पूजा-अर्चना के बाद मशाल जलाकर जंगल की जाया जाता है और जंगल से विशेष प्रकार की जड़ी बूटी (Jadi buti) लाकर मां दंतेश्वरी को जड़ी-बूटी उबाल कर ठंडा किये गये जल से स्नान (Bath) करवाया जाता है. फिर ये जल प्रसाद के रुप में श्रद्धालुओं में बांटा जाता है. कहते हैं ये जल बिमारियों को दूर करता है.

नवरात्र के पहले दिन मां दंतेश्वरी मंदिर में उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब, कोरोना नियमों के तहत भक्तों ने किया दर्शन

आठ दिनों तक चलती है रस्म

बताया जा रहा है कि दीपावली में मां दंतेश्वरी के लक्ष्मी स्वरूप की पूजा आठ दिनों तक की जाती है. जिसका खास महत्व है. लक्ष्मी की पूजा अर्चना 12 अलंकार द्वारा दीपावली के आठ दिनों पूर्व तुलसी पूजा की रस्म निभाई जाती है, जिसमें दीपावली के 8 दिन पहले से ही ब्रह्म मुहूर्त में पूजा-अर्चना कर की जाती है. इस पूजा का महत्व यह है कि यह साल में एक बार होती. वहीं, सातवें दिन यह पूजा संपन्न होती है, जिसे ठेंगर ठेंगा के नाम जाना जाता है.

ठेगर ठैगा विशेष पूजा

बता दें कि ठेगर ठैगा विशेष पूजा होती है, जिसे यहां की 12 अलंकार में से बोडका परिवार को एक विशेष दायित्व किया जाता है. जिसमें वह पूजा-अर्चना के बाद मशाल जलाकर आगे-आगे जंगल की ओर चलते हैं. जिनके पीछे-पीछे कतिहार परिवार चलता है. साथ ही ये कई गांवों से होते हुए जंगलों में विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटी खोजी जाती है, जिसे दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है. मंदिर लाने के बाद उसे पानी में उबालने के पश्चात जल को ठंडा किया जाता है, जिसके पश्चात दीपावली के दिन मां दंतेश्वरी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर उस जल से मां दंतेश्वरी के लक्ष्मी स्वरुप का स्नान कराया जाता है.

बीमारी को दूर करता है ये जल

बाद में इसी जल को श्रद्धालुओं में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है, जो कि बहुत ही लाभदायक होता है. जिससे भक्तों में विभिन्न प्रकार की बीमारी लाचारी दूर हो जाती है. वहीं, दीपावली के दिन कुम्हार परिवार द्वारा मां दंतेश्वरी मंदिर में दिए भेंट किए जाते हैं और कुमार परिवार द्वारा मंदिर प्रांगण में दीपावली के दिन यह दीपक प्रज्जवलित किया जाता है और जिसके बाद ही दीपावली पर्व धूमधाम से मनाया जाता है.

दंतेवाड़ाः छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के दंतेवाड़ा (Dantewada) में आदि शक्ति मां दंतेश्वरी (Maa danteswari) की पूजा-अर्चना दीपावली (Diwali) के आठ दिन पहले से ही कई परम्पराओं का साथ की जाती है. बताया जा रहा है कि वर्षों से ये परम्परा निभाई जा ही है. दीपावली (Dipawli) में मां दंतेश्वरी के लक्ष्मी (Maa laxmi)स्वरुप की पूजा-अर्चना 12 अलंकार द्वारा दीपावली के आठ दिनों पहले ही तुलसी पूजा (Tulsi puja) की रस्म के साथ निभाई जाती है. जिसमें ठेंगर ठैगा (Thangar Thaga) विशेष पूजा की जाती है.

आठ दिन पहले से होती है मां दंतेश्वरी की पूजा

जड़ी-बूटी के जल से होता है मां का स्नान

इस पूजा में 12 अलंकार में से वोडका परिवार (vodka family) को एक विशेष दायित्व दिया जाता है. जिसमें पूजा-अर्चना के बाद मशाल जलाकर जंगल की जाया जाता है और जंगल से विशेष प्रकार की जड़ी बूटी (Jadi buti) लाकर मां दंतेश्वरी को जड़ी-बूटी उबाल कर ठंडा किये गये जल से स्नान (Bath) करवाया जाता है. फिर ये जल प्रसाद के रुप में श्रद्धालुओं में बांटा जाता है. कहते हैं ये जल बिमारियों को दूर करता है.

नवरात्र के पहले दिन मां दंतेश्वरी मंदिर में उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब, कोरोना नियमों के तहत भक्तों ने किया दर्शन

आठ दिनों तक चलती है रस्म

बताया जा रहा है कि दीपावली में मां दंतेश्वरी के लक्ष्मी स्वरूप की पूजा आठ दिनों तक की जाती है. जिसका खास महत्व है. लक्ष्मी की पूजा अर्चना 12 अलंकार द्वारा दीपावली के आठ दिनों पूर्व तुलसी पूजा की रस्म निभाई जाती है, जिसमें दीपावली के 8 दिन पहले से ही ब्रह्म मुहूर्त में पूजा-अर्चना कर की जाती है. इस पूजा का महत्व यह है कि यह साल में एक बार होती. वहीं, सातवें दिन यह पूजा संपन्न होती है, जिसे ठेंगर ठेंगा के नाम जाना जाता है.

ठेगर ठैगा विशेष पूजा

बता दें कि ठेगर ठैगा विशेष पूजा होती है, जिसे यहां की 12 अलंकार में से बोडका परिवार को एक विशेष दायित्व किया जाता है. जिसमें वह पूजा-अर्चना के बाद मशाल जलाकर आगे-आगे जंगल की ओर चलते हैं. जिनके पीछे-पीछे कतिहार परिवार चलता है. साथ ही ये कई गांवों से होते हुए जंगलों में विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटी खोजी जाती है, जिसे दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है. मंदिर लाने के बाद उसे पानी में उबालने के पश्चात जल को ठंडा किया जाता है, जिसके पश्चात दीपावली के दिन मां दंतेश्वरी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर उस जल से मां दंतेश्वरी के लक्ष्मी स्वरुप का स्नान कराया जाता है.

बीमारी को दूर करता है ये जल

बाद में इसी जल को श्रद्धालुओं में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है, जो कि बहुत ही लाभदायक होता है. जिससे भक्तों में विभिन्न प्रकार की बीमारी लाचारी दूर हो जाती है. वहीं, दीपावली के दिन कुम्हार परिवार द्वारा मां दंतेश्वरी मंदिर में दिए भेंट किए जाते हैं और कुमार परिवार द्वारा मंदिर प्रांगण में दीपावली के दिन यह दीपक प्रज्जवलित किया जाता है और जिसके बाद ही दीपावली पर्व धूमधाम से मनाया जाता है.

Last Updated : Nov 3, 2021, 7:23 PM IST
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