दंतेवाड़ा: बीजापुर जिले के धुर नक्सल क्षेत्र में पड़ने वाला गमपुर गांव पहचान विहीन है. बस्तर में विकास के दावे करने वाले सरकार के दावों की सच्चाई उस समय सामने आती है जब पता चला कि नक्सल प्रभावित गमपुर गांव में रहने वाले किसी भी ग्रामीण का भी ना तो आधार कार्ड है, ना ही राशन कार्ड और ना ही वोटर कार्ड. बस्तर के रास्ते सत्ता तक पहुंचने वाली सरकार ने चुनाव से पहले इनकी सुध ली और दंतेवाड़ा के किरंदुर में मैगा शिविर लगवाया. इस कैंप में गमपुर के ग्रामीणों का पहचान पत्र बनाया जा रहा है.
40 किलोमीटर पैदल चलकर आए ग्रामीण: गमपुर गांव बीजापुर जिले के अंतर्गत पड़ता है. लेकिन गांव से दंतेवाड़ा की दूरी कम होने के कारण यहां के ग्रामीण हर काम के लिए दंतेवाड़ा मुख्यालय पहुंचते हैं. यही कारण है कि दंतेवाड़ा के किरंदुल में लगाए मैगा कैंप में ग्रामीण पहुंचे हैं. अपना पहचान पत्र बनवाने ग्रामीण भी काफी उत्साहित है. यही कारण है कि 40 किलोमीटर पैदल चलकर गमपुर के ग्रामीण शिविर तक पहुंचे है. ग्रामीण बताते हैं कि वे सुबह 6 बजे अपने गांव से पैदल निकले थे. किरंदुल शिविर तक पहुंचते पहुंचते दोपहर हो गई.
ग्रामीणों की अब तक नहीं थी पहचान: गमपुर गांव के ग्रामीणों के पास पहचान पत्र, राशन कार्ड, आधार कार्ड न होने के कारण इन्हें किसी भी शासकीय योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता था. गांव के कुछ जानकारों की गुजारिश के बाद जिला प्रशासन किरंदुल नगर पालिका ने इन ग्रामीणों को पहचान देने की पहल की है. नगर पालिका की ओर से मेगा शिविर का आयोजन किया गया है. इस शिविर में ग्रामीणों का आधार कार्ड, वोटर कार्ड के साथ-साथ राशन कार्ड बनवाया जा रहा है. अब तक 90 ग्रामीणों का पहचान पत्र बनाया जा चुका है. स्वास्थ्य विभाग की टीम भी इस शिविर में पहुंची है जो ग्रामीणों की स्वास्थ्य जांच कर रही है.
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ऐसे मिलेगी पहचान: जिला प्रशासन पहले पंचायत स्तर पर इनका पंजीयन कराकर पहचान पत्र बना रहा है. पहचान पत्र बनने के बाद मुख्यालय में इनका राशन कार्ड, आधार कार्ड, आयुष्मान कार्ड बनाया जाएगा.
जिला मुख्यालय से कटा है ये गांव: गमपुर गांव पहाड़ी इलाकों में बसा हुआ है. यहां सड़क तो है लेकिन आने जाने का साधन नहीं है. बिजली, शुद्ध पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं की भी कमी है. आज तक यहां के ग्रामीणों ने मतदान नहीं दिया है. चुनाव क्या होता है? इन्हें ये भी मालूम नहीं. गमपुर गांव बरसात के दिनों में टापू में तब्दील हो जाता है. जिला मुख्यालय से पूरी तरह कटा होने के कारण यहां जाना जिला प्रशासन के लिए भी टेढ़ी खीर है.