बिलासपुर : किशोर न्याय कमेटी हाईकोर्ट द्वारा बच्चों के लैंगिक अपराधों के संरक्षण अधिनियम 2012 के क्रियान्वयन पर एक कार्यशाला आयोजित की. छत्तीसगढ़ राज्य बाल संरक्षण आयोग (Chhattisgarh State Child Protection Commission) की अध्यक्ष तेजकुंवर नेताम इस कार्यशाला में शामिल हुईं. कार्यशाला के आयोजन में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और राज्य न्यायिक अकादमी का भी सहयोग (Workshop in Bilaspur regarding POCSO Act) रहा.
कार्यशाला में कौन-कौन था उपस्थित : शुभारंभ सत्र में मुख्य न्यायाधीश अरूप गोस्वामी और अन्य न्यायाधीश उपस्थित थे. कार्यक्रम के द्वितीय सत्र की अध्यक्षता न्यायमूर्ति पी सेम कोशी ने और न्यायमूर्ति अरविंद सिह चंदेल, तेजकुंवर नेताम, महिला बाल विकास विभाग की संचालक दिव्या मिश्रा ने सह अध्यक्षता की. इस सत्र में पॉक्सो एक्ट के क्रियान्वयन से जुड़ी विसंगतियों और संवेदनशील बिंदुओं पर आयोग के सचिव प्रतीक खरे ने प्रस्तुति और सुझाव दिये. उन्होंने बच्चे और आरोपी का सामना न होने देने, मनोवैज्ञानिक सलाहकारों की उपलब्धता की कमी की ओर ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने भविष्य में पॉक्सो एक्ट के प्रभावी क्रियान्वयन पर आयोग द्वारा की जा रही पहल के बारे में भी अवगत कराया.
क्या होता है पॉक्सो एक्ट : POCSO एक्ट का पूरा नाम “The Protection Of Children From Sexual Offences Act” या प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट है. हिंदी में इसे “लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012” कहते हैं. पोक्सो एक्ट-2012; को बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए, महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बनाया था. साल 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है.
पॉक्सो एक्ट में बदलाव : देश में बच्चियों के साथ बढ़ती दरिंदगी को रोकने के लिए ‘पाक्सो एक्ट-2012’ में बदलाव किया गया है. जिसके तहत अब 12 साल तक की बच्ची से रेप के दोषियों को मौत की सजा मिलेगी. इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में सख्त कार्रवाई की जाती है. वहीं, एक्ट के सेक्शन 35 के अनुसार, अगर कोई विशेष परिस्थिति ना हो तो इसके केस का निपटारा एक साल में किया जाना होता है.
कैसे चलता है केस : पॉक्सो कोर्ट खास तरीके के कोर्ट होते हैं, जहां पॉक्सो एक्ट के तरह दर्ज किए गए केस ही शामिल किए जाते हैं. इस कोर्ट में एडीजे लेवल के अधिकारियों को ही नियुक्त किया जाता है. 18 साल से कम उम्र के बच्चों पर होने वाले यौन शोषण अपराधों के लिए तैयार किए गए पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज केस की सुनवाई की जाती है. साथ ही इस कोर्ट में आईपीसी की तुलना में सजा के प्रावधान ज्यादा कड़े हैं. साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि केंद्र सरकार देश के हर जिले में विशेष पॉस्को कोर्ट बनाएगी, जहां 100 से ज्यादा पॉस्को मामले लंबित हैं. इन अदालतों के लिए फंड केंद्र सरकार देगी. सरकार 60 दिन में ये कोर्ट बनाएगी. बता दें कि इन कोर्ट के जरिए बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामलों को जल्द से जल्द निपटाने की कोशिश की जाती है.Pocso act seminar