बिलासपुरः भाई-बहन के अटूट रिश्ते का पर्व 'राखी' इस बार भी कोरोना की भेंट चढ़ गई. कोरोना गाॅइडलाइन के मद्देनज़र इस बार राज्य सरकार के गृह मंत्रालय ने प्रदेश के जेलों में राखी कार्यक्रम को बंद कर दिया. जेल प्रबंधन की ओर से इसकी घोषणा के बाद भी सूचना कई बहनों को नहीं मिली. भाइयों की कलाई पर राखी बांधने वह जेल पहुंच गईं. जब उन्हें पता चला कि इस बार भी वो अपने भाइयों को राखी नहीं बांध पाएंगी तो वह मायूस होकर जेल के दरवाजे पर ही बैठ गईं.
भूखी-प्यासी होने के बाद भी वह भाई की मोहब्बत को याद करते हुए काफी देर तक आंसू बहाती रहीं. पिछले साल भी बहनें भाइयों को राखी नही बांध पाई थीं. इस बार भी वही हुआ. जिले के दूर अंचलों से बहनें बस इस उम्मीद में आई थीं कि उन्हें इस साल अपने भाइयों को राखी बांधने का मौका मिलेगा. लेकिन इस बार भी उन्हें अपने भाइयों से मिलने तक का मौका नहीं दिया गया.
जानिए कहां भाइयों ने पहली बार कलाई पर बहनों से बंधवाई राखी
दिन भर जेल का दरवाजा निहारती रह गई बहनें
जिले के आखिरी छोर मल्हार के पचपेड़ी से पहुंची सावित्री को भाई से मिलने और राखी बांधने का मौका नहीं मिला. उसको बहुत दुख हुआ. सावित्री कहती हैं कि वह जिस जगह रहती हैं वहां उसे जानकारी पाने का कोई माध्यम नहीं था. वह एक दिन पहले ही भाई की कलाई में राखी बांधने का सपना लेकर घर से निकल गई थीं. रविवार की सुबह होते ही वह जेल के दरवाजे के पास खड़ी हो गईं. इस उम्मीद में कि जैसे ही जेल का दरवाजा खुलेगा, वह अपने भाई से मिल सकेंगी और उसके कलाई पर स्नेह का सूत 'राखी' बांधेंगी. सावित्री का भाई हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है. भाई भले ही हत्यारा है, लेकिन बहन का दिल स्नेह के नाव पर मानो डोल उठा. सुरक्षा कर्मियों के द्वारा खुद को रोक दिए जाने के बाद सावित्री जेल के बंद दरवाजे को अपनी सूनी निगाहों घंटों निहारती रहीं. मन में सिर्फ एक 'आस' बाकी था कि काश कहीं से भी उसके भाई के चेहरे का एक झलक दिख जाता, मगर ऐसा नहीं हुआ.