बिलासपुर: छत्तीसगढ़ में नवरात्र के दिनों में देवी मंदिरों में अलग ही रौनक देखने को मिलती है. यहां शहर, कस्बे और गांव भी माता के नाम से प्रसिद्ध हैं. रतनपुर क्षेत्र मां महामाया के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि रतनपुर महामाया मंदिर 51 शक्तिपीठ में से एक है. पौराणिक मान्यता है कि यहां मां सति के शरीर का दाहिना स्कंध गिरा था और इस वजह से इसे शक्तिपीठ में शामिल किया गया. हर साल नवरात्र में यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपनी मन्नतें लेकर माता के दर्शन को आते हैं.
ऐसी है मान्यता
- ऐसी मान्यता है कि राजा रत्नदेव ने 1050 ईसवी में महामाया देवी मंदिर का निर्माण कराया था.
- किवदंती कुछ ऐसी है कि राजा रत्नदेव प्रथम मणिपुर गांव में शिकार पर निकले थे.
- शिकार के दौरान जब रात हो गई तो उन्होंने मणिपुर गांव में ही एक वटवृक्ष के नीचे रात्रि विश्राम का मन बनाया.
- राजा रत्नदेव की आधी रात में जब नींद खुली तो उन्होंने दिव्य प्रकाश का अनुभव किया और इस बीच उन्होंने महसूस किया कि मां महामाया की सभा लगी है.
- यह सब देख वो अपनी सुध खो बैठे. सुबह जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने रतनपुर को राजधानी बनाने का निर्णय लिया.
- 1050 ईसवी में उन्होंने मां महामाया मंदिर का भव्य निर्माण करवाया जो अब राष्ट्रीय स्तर पर मां महामाया की सिद्ध मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हो चुका है.
- रतनपुर मंदिर का मंडप 16 स्तम्भों पर टिका हुआ है जो एक बेजोड़ स्थापत्य कला का नमूना है.
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क्या कहते हैं इतिहास के जानकार?
वहीं इतिहास के जानकार इस मामले में धार्मिक मान्यताओं से कुछ अलग राय रखते हैं. उनका कहना है कि, 'रतनपुर का सैकड़ों वर्ष पूर्व मराठियों ने अपने उपराजधानी के रूप में इसे स्थापित किया था. मराठियों ने रतनपुर में व्यवसायिक संभावनाओं को महसूस किया और भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए रतनपुर का विकास किया. रतनपुर से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं बाद की कड़ियां हैं. इसके साथ ही रतनपुर को उसके विशेष स्थापत्य कला के लिए भी जाना जाता है.'