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SPECIAL: मां महामाया की महिमा है अपार, झोली भरकर जाता है जो आता है द्वार

प्रदेश के सभी जिलों में देवी मंदिरों का स्थान है और इसी वजह से नवरात्र में यहां हर जगह रौनक होती है. हर देवी मंदिरों की अपनी मान्यताएं और कहानियों के साथ ही घंटियों की गूंज, जय माता दी के जयकारे, लाल चुनरी का चढ़ावा और भक्तों की लंबी कतार, सब कुछ मन को नई ऊर्जा देने वाली होती है.

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Published : Oct 5, 2019, 12:09 AM IST

बिलासपुर रतनपुर महामाया मंदिर

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ में नवरात्र के दिनों में देवी मंदिरों में अलग ही रौनक देखने को मिलती है. यहां शहर, कस्बे और गांव भी माता के नाम से प्रसिद्ध हैं. रतनपुर क्षेत्र मां महामाया के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि रतनपुर महामाया मंदिर 51 शक्तिपीठ में से एक है. पौराणिक मान्यता है कि यहां मां सति के शरीर का दाहिना स्कंध गिरा था और इस वजह से इसे शक्तिपीठ में शामिल किया गया. हर साल नवरात्र में यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपनी मन्नतें लेकर माता के दर्शन को आते हैं.

रतनपुर महामाया की कहानी

ऐसी है मान्यता

  • ऐसी मान्यता है कि राजा रत्नदेव ने 1050 ईसवी में महामाया देवी मंदिर का निर्माण कराया था.
  • किवदंती कुछ ऐसी है कि राजा रत्नदेव प्रथम मणिपुर गांव में शिकार पर निकले थे.
  • शिकार के दौरान जब रात हो गई तो उन्होंने मणिपुर गांव में ही एक वटवृक्ष के नीचे रात्रि विश्राम का मन बनाया.
  • राजा रत्नदेव की आधी रात में जब नींद खुली तो उन्होंने दिव्य प्रकाश का अनुभव किया और इस बीच उन्होंने महसूस किया कि मां महामाया की सभा लगी है.
  • यह सब देख वो अपनी सुध खो बैठे. सुबह जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने रतनपुर को राजधानी बनाने का निर्णय लिया.
  • 1050 ईसवी में उन्होंने मां महामाया मंदिर का भव्य निर्माण करवाया जो अब राष्ट्रीय स्तर पर मां महामाया की सिद्ध मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हो चुका है.
  • रतनपुर मंदिर का मंडप 16 स्तम्भों पर टिका हुआ है जो एक बेजोड़ स्थापत्य कला का नमूना है.

पढ़ें- नवरात्र विशेषः यहां निसंतानों को मिलती है संतान, जानिए खल्लारी मंदिर का इतिहास

क्या कहते हैं इतिहास के जानकार?
वहीं इतिहास के जानकार इस मामले में धार्मिक मान्यताओं से कुछ अलग राय रखते हैं. उनका कहना है कि, 'रतनपुर का सैकड़ों वर्ष पूर्व मराठियों ने अपने उपराजधानी के रूप में इसे स्थापित किया था. मराठियों ने रतनपुर में व्यवसायिक संभावनाओं को महसूस किया और भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए रतनपुर का विकास किया. रतनपुर से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं बाद की कड़ियां हैं. इसके साथ ही रतनपुर को उसके विशेष स्थापत्य कला के लिए भी जाना जाता है.'

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ में नवरात्र के दिनों में देवी मंदिरों में अलग ही रौनक देखने को मिलती है. यहां शहर, कस्बे और गांव भी माता के नाम से प्रसिद्ध हैं. रतनपुर क्षेत्र मां महामाया के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि रतनपुर महामाया मंदिर 51 शक्तिपीठ में से एक है. पौराणिक मान्यता है कि यहां मां सति के शरीर का दाहिना स्कंध गिरा था और इस वजह से इसे शक्तिपीठ में शामिल किया गया. हर साल नवरात्र में यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपनी मन्नतें लेकर माता के दर्शन को आते हैं.

रतनपुर महामाया की कहानी

ऐसी है मान्यता

  • ऐसी मान्यता है कि राजा रत्नदेव ने 1050 ईसवी में महामाया देवी मंदिर का निर्माण कराया था.
  • किवदंती कुछ ऐसी है कि राजा रत्नदेव प्रथम मणिपुर गांव में शिकार पर निकले थे.
  • शिकार के दौरान जब रात हो गई तो उन्होंने मणिपुर गांव में ही एक वटवृक्ष के नीचे रात्रि विश्राम का मन बनाया.
  • राजा रत्नदेव की आधी रात में जब नींद खुली तो उन्होंने दिव्य प्रकाश का अनुभव किया और इस बीच उन्होंने महसूस किया कि मां महामाया की सभा लगी है.
  • यह सब देख वो अपनी सुध खो बैठे. सुबह जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने रतनपुर को राजधानी बनाने का निर्णय लिया.
  • 1050 ईसवी में उन्होंने मां महामाया मंदिर का भव्य निर्माण करवाया जो अब राष्ट्रीय स्तर पर मां महामाया की सिद्ध मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हो चुका है.
  • रतनपुर मंदिर का मंडप 16 स्तम्भों पर टिका हुआ है जो एक बेजोड़ स्थापत्य कला का नमूना है.

पढ़ें- नवरात्र विशेषः यहां निसंतानों को मिलती है संतान, जानिए खल्लारी मंदिर का इतिहास

क्या कहते हैं इतिहास के जानकार?
वहीं इतिहास के जानकार इस मामले में धार्मिक मान्यताओं से कुछ अलग राय रखते हैं. उनका कहना है कि, 'रतनपुर का सैकड़ों वर्ष पूर्व मराठियों ने अपने उपराजधानी के रूप में इसे स्थापित किया था. मराठियों ने रतनपुर में व्यवसायिक संभावनाओं को महसूस किया और भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए रतनपुर का विकास किया. रतनपुर से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं बाद की कड़ियां हैं. इसके साथ ही रतनपुर को उसके विशेष स्थापत्य कला के लिए भी जाना जाता है.'

Intro:हमारा प्रदेश छत्तीसगढ़ धार्मिक व ऐतिहासिक धरोहरों से परिपूर्ण प्रदेश है और अभी जब नौ दुर्गा की शुरुआत हो चुकी है तो भला हम रतनपुरवाली माँ महामाया का जिक्र करने से भला कैसे चूक सकते हैं । तो चलिए आज हम आपको सुनाते हैं रतनपुर के माँ महामाया की कहानी को और बताते हैं रतनपुर के ऐतिहासिक व आध्यात्मिक महत्व को ।


Body:ऐसी मान्यता है कि राजा रत्नदेव ने सन 1050 ई में महामाया देवी मंदिर का निर्माण कराया था । किवदंती कुछ ऐसी है कि राजा रत्नदेव प्रथम मणिपुर गांव में शिकार पर निकले थे । शिकार के दौरान जब रात हो गई तो उन्होंने मणिपुर गांव में ही एक वटवृक्ष के नीचे रात्रि विश्राम का मन बनाया । राजा रत्नदेव की आधीरात में जब नींद खुली तो तो उन्होंने दिव्य प्रकाश का अनुभव किया और इस बीच उन्होंने महसूस किया कि मां महामाया की सभा लगी है । यह सब देख वो चेतना खो बैठे । सुबह जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने रतनपुर को राजधानी बनाने का निर्णय लिया और 1050 ई में उन्होंने मां महामाया मंदिर का भव्य निर्माण करवाया जो अब राष्ट्रीय स्तर पर मां महामाया की सिद्ध मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हो चुका है । रतनपुर मंदिर का मंडप 16 स्तम्भों पर टिका हुआ है जो एक बेजोड़ स्थापत्य कला का नमूना है ।


Conclusion:वहीं इतिहास के जानकार इस मामले में धार्मिक मान्यताओं से कुछ अलग राय रखते हैं । उनका कहना है कि रतनपुर का सैकड़ों वर्ष पूर्व मराठियों ने अपने उपराजधानी के रूप में इसे स्थापित किया था । मराठियों ने रतनपुर में व्यवसायिक संभावनाओं को महसूस किया और भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए रतनपुर का विकास किया । रतनपुर से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं बाद की कड़ियाँ हैं । रतनपुर को उसके विशेष स्थापत्य कला के लिए भी जाना जाता है ।
बाईट...1सरोज मिश्र...ऐतिहासिक जानकार
बाईट...2भवानी दास...धार्मिक जानकार
विशाल झा..... बिलासपुर
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