बिलासपुर: कोरोना से मौत के बाद मुक्तिधाम में आने वाले हर एक शव की अंत्येष्टि करते हुए मन भारी हो जाता है. गाइडलाइन के अनुसार अंतिम क्रिया को पूरा करना जरूरी है. अन्यथा महामारी का संक्रमण और बढ़ सकता है. यह काम हम ड्यूटी मानकर नहीं बल्कि मानवता की सेवा भावना से कर रहे हैं. ये कहना है तोरवा स्थित मुक्तिधाम में रोना संक्रमित शवों की अंत्येष्टि करने वाले नगर निगम बिलासपुर के फ्रंटलाइन वर्कर सुपरवाइजर संजय साहू का. साहू ने कहा कि लोग अंतिम समय अपने स्वजन को कांधा देना चाहते हैं पर महामारी की बाध्यता है कि यह काम वे नहीं कर सकते. उनकी इस भावना को समझते हुए हम आठ लोगों का दल शवों का पूरे सम्मान और विधि विधान से अंतिम क्रिया पूरा करता हैं. हर समय संक्रमण का खतरा तो बना रहता है लेकिन सभी सावधानी रखते हुए अपनी ड्यूटी पूरी मुस्तैदी से कर रहे हैं.
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लावारिस शवों की अस्थि खुद अरपा नदी में करते हैं विसर्जन
संजय साहू इससे पहले चिंगराजपारा वार्ड में साफ-सफाई का सुपरविजन करते थे. विगत डेढ़ साल तोरवा मुक्तिधाम में काम कर रहे हैं. यहां वह साफ-सफाई, शवों को पंजी में दर्ज करना तथा अंतिम संस्कार का कार्य कर रहे हैं. पीपीई किट, ग्लब्स, सैनेटाइजर और शवों के दाह संस्कार के लिये लकड़ी, राल आदि की व्यवस्था नगर-निगम की ओर से की जा रही है. कई लावारिस शव भी यहां लाये जाते हैं. उनका भी विधिवत अंतिम संस्कार कर रहे हैं. लावारिस की अस्थियों का संचय वे खुद करते हैं. अस्थि विसर्जन के लिये नारियल, अगरबत्ती, फूल की व्यवस्था कर सम्मान से अरपा में विसर्जित करते हैं.
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परिवार को संक्रमण से बचाने रहते हैं दूसरे घर में
संजय ने कहा कि उनके माता-पिता बुजुर्ग हैं. उन्हें संक्रमण से बचाए रखने के लिए खुद अलग दूसरे घर में रहता हूं. संजय ने कहा कि किसी की भी मौत कोरोना से नहीं हो. आखिर वे भी जोखिम भरा काम कर रहे हैं. जिसमें हर समय संक्रमण का खतरा रहता है. सावधानी रखना जरूरी हैं.
सात माह के बच्चे को विधि विधान से दफनाया
पिछले दिनों सात माह के संक्रमित बच्चे को उसके माता-पिता सिम्स में छोड़कर भाग गए थे. बच्चे का शव जब मुक्तांजलि वाहन से तोरवा मुक्तिधाम लाया गया तो उसने खुद भी उसके माता-पिता को खोजने का प्रयास किया. उस बच्चे के परिवार वाले के नहीं आने पर विधि विधान से उसने कफन की व्यवस्था कर शव को दफना दिया.