बिलासपुर: कोरोनाकाल के दौरान भी 5 दिसंबर को बिलासपुर में 43वें राउत नाचा महोत्सव का विशाल आयोजन हो रहा है. कोरोना गाइडलाइंस के बीच होनेवाले इस भव्य आयोजन को लेकर इस बार विशेष एहतियात बरते जाएंगे. यह छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोक आयोजनों में से एक है. सजे-धजे राउत नर्तक दल इस स्पर्धा में अपनी कला का जौहर दिखाते हैं और परंपरागत रूप से अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हैं.
43वें राउत नाचा महोत्सव का आयोजन
इस महोत्सव का आयोजन साल 1978 से लगातार बिलासपुर में होता आ रहा है. इस बार कोरोना के बीच 43वां राउत नाच महोत्सव मनाया जाएगा. यह आयोजन लालबहादुर शास्त्री मैदान में आयोजित किया जा रहा है. हर वर्ष यह महोत्सव एकादशी के बाद पहले शनिवार को आयोजित होता है. इस महोत्सव को यदुवंशियों के शौर्य का प्रतीक माना जाता है. महोत्सव में पूरे प्रदेश से यादवों की दर्जनों टोलियां साज-सज्जा के साथ बिलासपुर पहुंचती हैं .ये टोलियां नृत्य करती हैं. बेहतर प्रदर्शन करनेवाली टोली को प्रोत्साहन स्वरूप पुरस्कार दिया जाता है.
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अनुशासन दिलाता है जीत
प्रदर्शन करनेवालों का अनुशासन बहुत ज्यादा मायने रखता है. महोत्सव में अनुशासन, वेशभूषा, नाच-बाजा, झांकी, संगठित यादवों की अधिकतम संख्या के लिए समान रूप से 10-10 अंक दिए जाते हैं. अनुभवी निर्णायक मंडल विभिन्न पुरस्कारों की घोषणा करता है. पुरस्कार में इन टोलियों को शील्ड और नकद राशि दी जाती है. इस ऐतिहासिक आयोजन में शिरकत करने इस बार खुद मुख्यमंत्री बिलासपुर पहुंच रहे हैं. इस बार यह आयोजन संध्या 4 बजे से देर रात तक होगा. इस बार कोरोना गाइडलाइंस का ध्यान रखते हुए नाच दलों के सेनिटाइजेशन की व्यवस्था की जाएगी. विभिन्न दलों के सदस्यों के लिए मास्क पहनना अनिवार्य है.
दोहों के जरिए संदेश देते हैं राउत
ETV भारत से बात करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विनय पाठक ने बताया कि राउत महोत्सव के दौरान दोहों का एक अलग महत्व है. राउत की टोलियां विभिन्न दोहों के माध्यम से समाज में एक अलग तरह का संदेश देती है. इन दोहों में प्रचलित दोहे भी रहते हैं. इनमें सामयिक मुद्दों की झलक भी दिखती है. राउत दोहे समाज की विसंगतियों पर करारा प्रहार भी करते हैं और अच्छी बातों की सराहना भी करते हैं. इनके दोहों में सामाजिकता और प्रगतिशीलता भी है.
साल 1978 से राउत नाचा को दिया गया संगठन का रूप
महोत्सव के सर्वेसर्वा संस्थापक डॉ. कालीचरण यादव ने बताया कि पहले राउत टोलियां बड़ी संख्या में शहर पहुंचती थी. इस दौरान कई बार आपसी झगड़े के कारण लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ने की स्थिति भी बन जाती थी. दशकों पहले अचानक से राउतों की भीड़ बढ़ने के कारण मनचलों के हौसले भी बढ़ जाते और महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार भी होता था. यही वजहै है कि राउत महोत्सव के माध्यम से साल 1978 से इसे एक संगठित रूप दिया गया. आज भी यह आयोजन पूरी भव्यता के साथ आयोजित होता आ रहा है. यदुवंशी कृष्ण की पारंपरिक वेशभूषा में अपना प्रदर्शन करते हैं.
राउत में दो तरह के कृष्ण देते हैं संदेश
डॉ. कालीचरण यादव बताते हैं कि राउत नृत्य के माध्यम से जब टोलियां घर-घर पहुंचती हैं तो यह कई सामाजिक संदेश का प्रसार करते हैं. सामाजिक सरोकार और सामुदायिकता की भावना इनका केंद्रीय भाव है. लोकमंगल के भाव के साथ यह समाज में अपना संदेश फैलाते हैं. हर राउत के भीतर दो तरह का कृष्ण होता है. एक नर्तक कृष्ण और दूसरा योद्धा कृष्ण. बिलासपुर का यह आयोजन पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है. हर साल यह आयोजन सामाजिक समरसता की भावना को और ज्यादा दृढ़ करता है.