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दुखद: नहीं रहे छत्तीसगढ़ के 'गांधी', प्रोफेसर पीडी खेरा का निधन

प्रोफेसर पीडी खेरा कई दिनों से बीमार चल रहे थे और निजी अस्पताल में उनका इलाज जारी था. 93 साल के प्रोफेसर पीडी खेरा ने लोरमी के अचानकमार टाइगर के अंदरूनी इलाकों में मौजूद वनग्रामों में लगभग 35 साल से आदिवासियों के उत्थान के लिए काम किया. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी उनके निधन पर शोक जताया है.

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Published : Sep 23, 2019, 12:00 PM IST

Updated : Sep 23, 2019, 2:21 PM IST

प्रोफेसर पीडी खेरा का निधन

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ के लिए बेहद दुखद खबर है. प्रदेश के आदिवासी बच्चों की शिक्षा और उत्थान में अपना जीवन लगा देने वाले समाजसेवी प्रोफेसर प्रभु दत्त खेरा का निधन हो गया है. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे पीडी खेरा 35 साल से छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहकर आदिवासी बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रहे थे.

प्रोफेसर पीडी खेरा का निधन

प्रोफेसर पीडी खेरा कई दिनों से बीमार चल रहे थे और हॉस्पिटल में उनका इलाज जारी था. 93 साल के प्रोफेसर पीडी खेरा ने लोरमी के अचानकमार टाइगर के अंदरूनी इलाकों में मौजूद वनग्रामों में लगभग 35 साल से आदिवासियों के उत्थान के लिए काम किया. पीडी खेरा का जन्म 13 अप्रैल 1928 को हुआ था. उनका अंतिम संस्कार मंगलवार (24 सितंबर) को मुगेली जिले के लमनी गांव में किया जाएगा.

  • बताया जाता है कि करीब 40 साल पहले प्रोफेसर खेड़ा दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स को टूर पर लेकर अमरकंटक आए थे. इस दौरान रास्ते से गुजरते वक्त उन्होंने यहां रह रहे आदिवासियों के बीच भी कुछ वक्त बिताया.
  • इस दौरान पीडी खेरा ने देखा कि किस तरह से अशिक्षा और गरीबी के की वजह से आदिवासियों को आज भी कठिनाइयों के बीच जंगल में जीना पड़ रहा है. इसके बाद उन्होंने फैसला लिया कि, बची हुई जिंदगी वो इन्हीं आदिवासियों के उत्थान के साथ ही उन्हें शिक्षित कर समाज के मुख्यधारा में जोड़ने के लिए लगाएंगे.
  • रिटायर होते ही वो लोरमी के जंगल आ गए और यहां रहकर आदिवासियों की सेवा करने लगे.
  • पिछले 35 सालों से बैगा आदिवासियों की सेवा और उनका जीवन सुधार ही प्रो. पी.डी.खेरा के जीवन का उद्देश्य बन गया था.
  • उम्र के 90वें दशक में भी वे संरक्षित बैगा जनजाति के बच्चों को शिक्षा देते रहे , महिलाओं को दासता से मुक्त करने की पहल करते रहे और अंधविश्वास,टोना टोटका से उन्हें दूर करने के लिए काम करते रहे.
  • प्रोफेसर खेरा के सेवा भाव का जुनून कुछ ऐसा था कि वे अपनी पेंशन का अधिकांश हिस्सा इन बैगा बच्चों पर खर्च कर देते थे.
  • आदिवासियों के बीच वे दिल्ली साब के नाम से जाने जाते थे. आदिवासी बड़े गर्व से कहते हैं कि दिल्ली साब ने हमारी सोच ही बदल दी है.
  • सीनियर जर्नलिस्ट कमल दुबे ने ETV भारत से बताया था कि प्रोफेसर खेरा गांधीवादी विचारक थे. उनका खुद का जीवन भी महात्मा गांधी से बेहद प्रभावित था. प्रोफेसर खेरा न सिर्फ खादी का वस्त्र पहनते थे बल्कि 93 वर्ष की उम्र में भी खुद अपना खाना बनाते थे. उन्होंने जीवन जीने के लिए कभी किसी का सहारा नहीं लिया.
  • 2 अक्टूबर 2018 को गांधी जयंती के अवसर पर प्रोफेसर पीडी खेरा को रायपुर में कार्यान्जलि पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
  • प्रोफेसर प्रभुदत्त खेरा ने दिल्ली विश्वविद्यालय में 15 साल तक समाजशास्त्र पढ़ाया.

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ के लिए बेहद दुखद खबर है. प्रदेश के आदिवासी बच्चों की शिक्षा और उत्थान में अपना जीवन लगा देने वाले समाजसेवी प्रोफेसर प्रभु दत्त खेरा का निधन हो गया है. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे पीडी खेरा 35 साल से छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहकर आदिवासी बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रहे थे.

प्रोफेसर पीडी खेरा का निधन

प्रोफेसर पीडी खेरा कई दिनों से बीमार चल रहे थे और हॉस्पिटल में उनका इलाज जारी था. 93 साल के प्रोफेसर पीडी खेरा ने लोरमी के अचानकमार टाइगर के अंदरूनी इलाकों में मौजूद वनग्रामों में लगभग 35 साल से आदिवासियों के उत्थान के लिए काम किया. पीडी खेरा का जन्म 13 अप्रैल 1928 को हुआ था. उनका अंतिम संस्कार मंगलवार (24 सितंबर) को मुगेली जिले के लमनी गांव में किया जाएगा.

  • बताया जाता है कि करीब 40 साल पहले प्रोफेसर खेड़ा दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स को टूर पर लेकर अमरकंटक आए थे. इस दौरान रास्ते से गुजरते वक्त उन्होंने यहां रह रहे आदिवासियों के बीच भी कुछ वक्त बिताया.
  • इस दौरान पीडी खेरा ने देखा कि किस तरह से अशिक्षा और गरीबी के की वजह से आदिवासियों को आज भी कठिनाइयों के बीच जंगल में जीना पड़ रहा है. इसके बाद उन्होंने फैसला लिया कि, बची हुई जिंदगी वो इन्हीं आदिवासियों के उत्थान के साथ ही उन्हें शिक्षित कर समाज के मुख्यधारा में जोड़ने के लिए लगाएंगे.
  • रिटायर होते ही वो लोरमी के जंगल आ गए और यहां रहकर आदिवासियों की सेवा करने लगे.
  • पिछले 35 सालों से बैगा आदिवासियों की सेवा और उनका जीवन सुधार ही प्रो. पी.डी.खेरा के जीवन का उद्देश्य बन गया था.
  • उम्र के 90वें दशक में भी वे संरक्षित बैगा जनजाति के बच्चों को शिक्षा देते रहे , महिलाओं को दासता से मुक्त करने की पहल करते रहे और अंधविश्वास,टोना टोटका से उन्हें दूर करने के लिए काम करते रहे.
  • प्रोफेसर खेरा के सेवा भाव का जुनून कुछ ऐसा था कि वे अपनी पेंशन का अधिकांश हिस्सा इन बैगा बच्चों पर खर्च कर देते थे.
  • आदिवासियों के बीच वे दिल्ली साब के नाम से जाने जाते थे. आदिवासी बड़े गर्व से कहते हैं कि दिल्ली साब ने हमारी सोच ही बदल दी है.
  • सीनियर जर्नलिस्ट कमल दुबे ने ETV भारत से बताया था कि प्रोफेसर खेरा गांधीवादी विचारक थे. उनका खुद का जीवन भी महात्मा गांधी से बेहद प्रभावित था. प्रोफेसर खेरा न सिर्फ खादी का वस्त्र पहनते थे बल्कि 93 वर्ष की उम्र में भी खुद अपना खाना बनाते थे. उन्होंने जीवन जीने के लिए कभी किसी का सहारा नहीं लिया.
  • 2 अक्टूबर 2018 को गांधी जयंती के अवसर पर प्रोफेसर पीडी खेरा को रायपुर में कार्यान्जलि पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
  • प्रोफेसर प्रभुदत्त खेरा ने दिल्ली विश्वविद्यालय में 15 साल तक समाजशास्त्र पढ़ाया.
Intro:प्रसिद्ध समाजसेवी पीडी खेरा का निधन । बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में इलाजरत थे खेरा जी । बैगा आदिवासी बच्चों के उत्थान में लगातार सक्रिय थे खेरा ।Body:ब्रेकConclusion:ब्रेक
Last Updated : Sep 23, 2019, 2:21 PM IST
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