बिलासपुर: 'भाजपा संगठन को ये बात समझ में आ गई है कि प्रदेश के वर्तमान सांसदों ने पिछले विधानसभा चुनाव में बहुत ज्यादा मदद नहीं की थी, इसलिए उनके टिकट काटने का निर्णय लिया गया है'. राजनीतिक जानकार कह रहे हैं कि 'सांसदों से लोगों की नाराजगी से बीजेपी को नुकसान हो सकता है इसलिए पार्टी ने पुराने चेहरों पर भरोसा नहीं जताया है'.
राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि, 'संभवत संघ इस बात से भी डरा हुआ है कि यदि नरेंद्र मोदी दोबारा सत्ता में नहीं आये, तो संघ का अस्तित्व भी खतरे में आ सकता है, इसलिए इन्हीं कारणों से वर्तमान बीजेपी सांसदों का टिकट काटा गया है ताकि नए प्रत्याशियों से सत्ता विरोधी लहर को कुछ हद तक कम किया जा सके.'
भाजपा इस रणनीति पर कर रही है काम
सरोज मिश्रा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान कहा कि, 'भाजपा की रणनीति है कि चुनाव कोई भी लड़े, लेकिन चेहरा मोदी का ही रिफ्लेक्ट हो.' सरोज मिश्रा ने कहा कि 'मैं भी चौकीदार' एक तरह का ट्रायल ही था, जिससे भाजपा इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि सिर्फ पीएम नरेन्द्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा जाय, तो वह ज्यादा फायदेमंद होगा'.
टिकट काटने से क्या मिलेगा फायदा
छग में अपने वर्तमान सांसदों की टिकट काटने पर बीजेपी को क्या फायदा हो सकता है, इस पर सरोज मिश्रा ने कहा कि, 'शायद ही इससे कोई ज्यादा फायदा हो. भाजपा को फायदा सिर्फ इस रूप में मिल सकता है कि विपक्ष के पास कोई बहुत ज्यादा करिश्मा करने लायक प्रत्याशी नहीं है.'
मिश्रा ने कहा कि, 'प्रदेश में कांग्रेस की रणनीति फिलहाल भाजपा के चुनावी कदम को भांपने का काम करना है. कांग्रेस में कांफिडेंस की कमी नजर आ रही है, इसलिए वो भाजपा प्रत्याशियों के चेहरे को पहले देखना चाहती है. प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की रणनीति फिलहाल कमजोर नजर आ रही है और वो आम लोगों के निर्णय पर टिकी हुई है.'
कांग्रेस के लिए ये है सलाह
सरोज ने कहा कि, 'यदि कांग्रेस पार्टी जातिगत भावना से ऊपर उठकर जीतने वाले प्रत्याशियों पर भरोसा कर उन्हें टिकट देती है, तो प्रदेश में भाजपा अपने पुराने रिकॉर्ड को नहीं दोहरा पाएगी और चुनावी परिणाम फिफ्टी-फिफ्टी हो सकते हैं.'