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बीजेपी-कांग्रेस अपना रहे हैं ये रणनीति, किसका पलड़ा भारी बता रहे हैं राजनीतिक जानकार

सरोज मिश्रा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान कहा कि, 'भाजपा की रणनीति है कि चुनाव कोई भी लड़े, लेकिन चेहरा मोदी का ही रिफ्लेक्ट हो.'

सरोज मिश्रा, राजनीतिक जानकार
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Published : Mar 23, 2019, 1:56 PM IST

बिलासपुर: 'भाजपा संगठन को ये बात समझ में आ गई है कि प्रदेश के वर्तमान सांसदों ने पिछले विधानसभा चुनाव में बहुत ज्यादा मदद नहीं की थी, इसलिए उनके टिकट काटने का निर्णय लिया गया है'. राजनीतिक जानकार कह रहे हैं कि 'सांसदों से लोगों की नाराजगी से बीजेपी को नुकसान हो सकता है इसलिए पार्टी ने पुराने चेहरों पर भरोसा नहीं जताया है'.

वीडियो.


राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि, 'संभवत संघ इस बात से भी डरा हुआ है कि यदि नरेंद्र मोदी दोबारा सत्ता में नहीं आये, तो संघ का अस्तित्व भी खतरे में आ सकता है, इसलिए इन्हीं कारणों से वर्तमान बीजेपी सांसदों का टिकट काटा गया है ताकि नए प्रत्याशियों से सत्ता विरोधी लहर को कुछ हद तक कम किया जा सके.'


भाजपा इस रणनीति पर कर रही है काम
सरोज मिश्रा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान कहा कि, 'भाजपा की रणनीति है कि चुनाव कोई भी लड़े, लेकिन चेहरा मोदी का ही रिफ्लेक्ट हो.' सरोज मिश्रा ने कहा कि 'मैं भी चौकीदार' एक तरह का ट्रायल ही था, जिससे भाजपा इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि सिर्फ पीएम नरेन्द्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा जाय, तो वह ज्यादा फायदेमंद होगा'.


टिकट काटने से क्या मिलेगा फायदा
छग में अपने वर्तमान सांसदों की टिकट काटने पर बीजेपी को क्या फायदा हो सकता है, इस पर सरोज मिश्रा ने कहा कि, 'शायद ही इससे कोई ज्यादा फायदा हो. भाजपा को फायदा सिर्फ इस रूप में मिल सकता है कि विपक्ष के पास कोई बहुत ज्यादा करिश्मा करने लायक प्रत्याशी नहीं है.'


मिश्रा ने कहा कि, 'प्रदेश में कांग्रेस की रणनीति फिलहाल भाजपा के चुनावी कदम को भांपने का काम करना है. कांग्रेस में कांफिडेंस की कमी नजर आ रही है, इसलिए वो भाजपा प्रत्याशियों के चेहरे को पहले देखना चाहती है. प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की रणनीति फिलहाल कमजोर नजर आ रही है और वो आम लोगों के निर्णय पर टिकी हुई है.'


कांग्रेस के लिए ये है सलाह
सरोज ने कहा कि, 'यदि कांग्रेस पार्टी जातिगत भावना से ऊपर उठकर जीतने वाले प्रत्याशियों पर भरोसा कर उन्हें टिकट देती है, तो प्रदेश में भाजपा अपने पुराने रिकॉर्ड को नहीं दोहरा पाएगी और चुनावी परिणाम फिफ्टी-फिफ्टी हो सकते हैं.'

बिलासपुर: 'भाजपा संगठन को ये बात समझ में आ गई है कि प्रदेश के वर्तमान सांसदों ने पिछले विधानसभा चुनाव में बहुत ज्यादा मदद नहीं की थी, इसलिए उनके टिकट काटने का निर्णय लिया गया है'. राजनीतिक जानकार कह रहे हैं कि 'सांसदों से लोगों की नाराजगी से बीजेपी को नुकसान हो सकता है इसलिए पार्टी ने पुराने चेहरों पर भरोसा नहीं जताया है'.

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राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि, 'संभवत संघ इस बात से भी डरा हुआ है कि यदि नरेंद्र मोदी दोबारा सत्ता में नहीं आये, तो संघ का अस्तित्व भी खतरे में आ सकता है, इसलिए इन्हीं कारणों से वर्तमान बीजेपी सांसदों का टिकट काटा गया है ताकि नए प्रत्याशियों से सत्ता विरोधी लहर को कुछ हद तक कम किया जा सके.'


भाजपा इस रणनीति पर कर रही है काम
सरोज मिश्रा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान कहा कि, 'भाजपा की रणनीति है कि चुनाव कोई भी लड़े, लेकिन चेहरा मोदी का ही रिफ्लेक्ट हो.' सरोज मिश्रा ने कहा कि 'मैं भी चौकीदार' एक तरह का ट्रायल ही था, जिससे भाजपा इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि सिर्फ पीएम नरेन्द्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा जाय, तो वह ज्यादा फायदेमंद होगा'.


टिकट काटने से क्या मिलेगा फायदा
छग में अपने वर्तमान सांसदों की टिकट काटने पर बीजेपी को क्या फायदा हो सकता है, इस पर सरोज मिश्रा ने कहा कि, 'शायद ही इससे कोई ज्यादा फायदा हो. भाजपा को फायदा सिर्फ इस रूप में मिल सकता है कि विपक्ष के पास कोई बहुत ज्यादा करिश्मा करने लायक प्रत्याशी नहीं है.'


मिश्रा ने कहा कि, 'प्रदेश में कांग्रेस की रणनीति फिलहाल भाजपा के चुनावी कदम को भांपने का काम करना है. कांग्रेस में कांफिडेंस की कमी नजर आ रही है, इसलिए वो भाजपा प्रत्याशियों के चेहरे को पहले देखना चाहती है. प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की रणनीति फिलहाल कमजोर नजर आ रही है और वो आम लोगों के निर्णय पर टिकी हुई है.'


कांग्रेस के लिए ये है सलाह
सरोज ने कहा कि, 'यदि कांग्रेस पार्टी जातिगत भावना से ऊपर उठकर जीतने वाले प्रत्याशियों पर भरोसा कर उन्हें टिकट देती है, तो प्रदेश में भाजपा अपने पुराने रिकॉर्ड को नहीं दोहरा पाएगी और चुनावी परिणाम फिफ्टी-फिफ्टी हो सकते हैं.'

Intro:भाजपा संगठन को यह बात समझ में आ गई है कि प्रदेश के वर्तमान तमाम सांसदों ने पिछले विधानसभा चुनाव में बहुत ज्यादा मदद नहीं की थी इसलिए उनके टिकट काटने का निर्णय लिया गया है । साथ ही सम्भवतः संघ इस बात से भी डरा हुआ है कि यदि नरेंद्र मोदी दुबारा सत्ता में नहीं आये तो संघ का अस्तित्व भी खतरे में आ सकता है । इसलिए प्रदेश में वर्तमान सांसदों के साथ जुड़े एन्टीनकम्बेंसी के माहौल में उन्हें टिकट देने से मोदी सरकार को नुकसान हो सकता है । सम्भवतः इन्ही कारणों से वर्तमान बीजेपी सांसदों का टिकट काटा गया है ताकि नए प्रत्याशियों से सत्ता विरोधी लहर को कुछ हद तक डाइल्यूट किया जा सके....यह कहना है बिलासपुर शहर के ख्यातिप्राप्त पॉलिटिकल एनालिस्ट सरोज मिश्रा जी का ।


Body:सरोज मिश्रा जी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान कहा कि भाजपा की रणनीति है कि चुनाव कोई भी लड़े लेकिन चेहरा मोदी का ही रिफ्लेक्ट हो । सरोज मिश्रा ने कहा कि " मैं भी चौकीदार " एक तरह का ट्रायल ही था जिससे भाजपा इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि सिर्फ़ पीएम नरेन्द्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा जाय तो वह ज्यादा फायदेमंद होगा । यह पूछे जाने पर कि क्या भाजपा वाकई छग में अपने वर्तमान सांसदों की टिकट काटने पर आगे फायदे में रहेगी पर जवाब देते हुए सरोज मिश्रा ने कहा कि शायद ही इससे कोई बहुत फ़ायदा हो । भाजपा को फायदा सिर्फ इस रूप में मिल सकता है कि अपोजिशन के पास कोई बहुत ज्यादा करिश्मा करने लायक नहीं है ।

वहीं प्रदेश में कांग्रेस की रणनीति पर सरोज मिश्रा ने कहा कि कांग्रेस फिलहाल भाजपा के चुनावी कदम को भांपने का काम कर रही है । कांग्रेस में कांफिडेंस की जरूर कमी नजर आ रही है इसलिए वो भाजपा प्रत्याशियों के चेहरे को पहले देखना चाहती है । प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की रणनीति फिलहाल कमजोर नजर आ रही है और वो आम लोगों के निर्णय पर टिकी हुई है । सरोज मिश्रा ने कहा कि यदि कांग्रेस पार्टी जातिगत भावना से ऊपर उठकर जीतनेवाले प्रत्याशियों पर भरोसा कर उन्हें टिकट देती है तो प्रदेश में भाजपा अपने पुराने रिकॉर्ड को नहीं दोहरा पाएगी और चुनावी परिणाम फिफ्टी-फिफ्टी जैसी हो सकती है ।

बाईट.... सरोज मिश्रा.... राजनीतिक विश्लेषक
विशाल झा...... बिलासपुर


Conclusion:
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