कवर्धा: कवर्धा में शाही दशहरा शनिवार को मनाया जा रहा है. शाही दशहरा की परंपरा 273 साल पुरानी है. वर्ष 1751 में कवर्धा राज परिवार की राजगद्दी की स्थापना हुई थी. तब महाराज स्वर्गीय महाबली सिंह ने इस परंपरा की शुरुआत की थी,जो आज भी कायम है. पुराने जमाने में दशहरा के दौरान राजा ठाठ बाट से रथ लेकर नगर भ्रमण के लिए निकलते थे. इस दौरान बग्गियों को विशेष रूप से सजाया जाता था.
273 साल पुरानी है परंपरा : जब राजा सज धजकर बग्गियों में जनता के बीच आते थे तो उनके दर्शन करने लोगों भीड़ उमड़ती थी. मान्यता है कि दशहरा के दिन राजा का दर्शन करना शुभ माना जाता है. इसलिए दशहरे पर कवर्धा समेत के दूर-दराज के हजारों लोगों की भीड़ जुटती है. 273 साल बाद भी यह परंपरा आज भी कायम है.
क्या-क्या होगा कार्यक्रम : दशहरा के पूर्व कवर्धा स्टेट के राजा योगेश्वर राज सिंह राजकुमार मैकलेश्वर राज सिंह शाम होते ही मोती महल से शाही रथ में सवार होकर नगर भ्रमण करने निकलेंगे.इस दौरान लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए आगे बढ़ेंगे. जैसे ही महल दरबार हाल से राजा निकलते हैं महल परिसर में एकत्रित विशाल जन समूह दर्शन कर उनका जयकारा लगाते हैं.
अपने राजसी वेशभूषा से अलंकृत होकर रथ में विराजित होने के लिए राजा महल से निकलते हैं. तब रानी पूरे शृंगार युक्त होकर राजा और युवराज को तिलक लगाकर मंगल आरती करती है- आदित्य श्रीवास्तव, इतिहास के जानकार
सरदार पटेल मैदान में जलेगा रावण : शाम लगभग 5 बजे राजा का शाही रथ राज महल से निकल कर बैंड-बाजा के साथ सरदार पटेल मैदान पहुंचेगा. जहां भगवान राम लक्ष्मण बने बच्चों द्वारा राज परिवार की ओर से बनाए गए 35 फीट रावण का दहन किया जाएगा. फिर विजय रथ नगर भ्रमण कर लोगों की खुशहाली , तरक्की की कामना की जाएगी. इस दौरान हजारों की भीड़ राजा के दर्शन करने पहुंचते हैं, भ्रमण के बाद राजा राज महल में दरबार लगाते हैं. जहां राजा से नगरवासी भेंट करते हैं. राजा सभी का अभिवादन स्वीकार करते हैं.