बिलासपुर : राइट टू रिजेक्ट की मांग को लेकर दिल्ली जा रहे समाजसेवियों का दल सोमवार को बिलासपुर में था. बिलासपुर में कोनहेर गार्डन में दल ने अपनी यात्रा की जानकारी दी. इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य संविधान में राजनेताओं और चुनाव को लेकर बदलाव की मांग है. 2 हजार किलोमीटर का पैदल यात्रा की जा रही है. इनकी मांग है कि ''जो नेता चुनाव में किये वायदे पूरा न करे. अपने क्षेत्र का विकास नहीं करे ऐसे नेताओं को हटाने के लिे जनता के हाथों में पावर दिया जाए.जब कभी ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जनता उस नेता को राइट टू रिजेक्ट के माध्यम से हटा दे.''
किन अधिकारों की कर रहे हैं मांग : पैदल यात्रा पर निकले समाजसेवियों ने कहा कि '' वे जो मांग कर रहे है उसमें जब कोई जनप्रतिनिधि अपने चुनावी क्षेत्र में भ्रष्टाचार करता है. विकास कार्यों के अपने वादों को पूरा नहीं करता है. तो राइट टू रिजेक्ट कानून के तहत जनता उसे उसके पद से हटा सकें. जनप्रतिनिधियों के हटाए जाने के बाद संवैधानिक रूप से उसके कार्यकाल तक वह अपने पद पर तो रहे लेकिन उनका वेतन, भत्ता और क्षेत्र के विकास के लिए मिलने वाले राशि से वंचित कर उसके बदले क्षेत्र के विकास की जिम्मेदारी विधानसभा और लोकसभा के अध्यक्ष की रहे.''
अफसरों के लिए भी राइट टू रिजेक्ट की मांग : पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी के लिए भी राइट टू रिजेक्ट होना चाहिए. जब अधिकारी किसी का राजनीतिक आर्थिक, सामाजिक रूप से शोषण भ्रष्टाचार करता है तो उसे इस कानून के तहत खारिज किया जा सके . उनके वेतन और भत्ता तत्काल प्रभाव से रोक उनके ऊपर अपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए. उनके बदले किसी दूसरे अधिकारी की नियुक्ति की जाए. राइट टू रिजेक्ट के तहत कानून लागू होने के बाद सभी स्तर के नेताओं के घर या कार्यालय के बाहर एक कार्य समीक्षा वोटिंग मशीन लगायी जाए. उसमें उस क्षेत्र के मतदाताओं का डाटा रहे, कोई भी मतदाता राइट टू रिजेक्ट के तहत अपने फिंगर प्रिंट से वोटिंग करके भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को खारिज कर सके.
राइट टू रेफरेंडम लागू करने की मांग : जनमत संग्रह का अधिकार के तहत कानून बनाने की मांग की जाएगी. किसी कानून के पारित होने के लिए जनता की राय लेने की भी बाध्यता होनी चाहिए. ऐसे कानून को रोका जाए जो हमारे आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक जीवन की स्वतंत्रता को सीमित करता है, जिसके लागू हो जाने पर जनता का शोषण होने की आशंका हो. इस अधिकार के तहत हम अपना बचाव करते हुए गैरवाजिब कानून को खारिज कर सकें. लोकतंत्र की कमान सीधे जनता के हाथों में रहे.
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राइट टू प्रपोज अमेंडमेंट : इस कानून सुधार में सहभागिता का अधिकार दिया जाना चाहिए. कोई भी ऐसा कानून नहीं होना चाहिए जिससे जनता संतुष्ट तो है लेकिन कुछ बिन्दुओं पर आपत्ति रखती हो. उसमें समाज के बुद्धिजीवियों की ओर से कुछ संशोधन करवाना चाहे तो इस अधिकार के तहत यह संभव हो. अगर किसी कारण राज्य या केंद्र सरकार जनता की तरफ से दिए गए सुझावों को नहीं माने तो राइट टू रेफरेंडम के तहत नया कानून लागू नहीं हो पाएगा. इसलिए सरकार को पुनर्विचार करना ही पड़ेगा.