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जीपीएम के 18 बैगा बाहुल्य ग्राम चिमनी या लालटेन के सहारे... - संरक्षित जनजाति बैगा आदिवासी

विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान रखने वाला छत्तीसगढ़ राज्य आजादी के 75 वर्ष बाद भी अपने गांव में विद्युतीकरण नहीं करा सका है. मामला तब और भी गंभीर हो जाता है जब विद्युतीकरण विशेष संरक्षित जनजाति बैगा आदिवासी जिन्हें राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र भी कहा जाता है. 18 बैगा बाहुल्य ग्राम में अब तक घरों में बिजली नहीं पहुंची है...

Bag tribal
दीया के सहारे बैग आदिवासी
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Published : Jul 10, 2022, 8:04 PM IST

गौरेला पेंड्रा मरवाही: पानी-बिजली-सड़क ये मुलभूत सुविधा किसी भी देश-प्रदेश के विकास का आईना है. आजादी के 75 साल बाद भी गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के 18 बैगा बाहुल्य ग्राम अब भी लालटेन के सहारे रात गुजार रहे हैं. तमाम सरकारी योजनाओं के बावजूद इस गांव में बिजली नहीं पहुंच पाई है. वहीं जिम्मेदार विभाग एक दूसरे पर आरोप डाल रहे हैं.

यह भी पढ़ें: बारिश में चित्रकोट जलप्रपात की खूबसूरती में लगे चार चांद, ऐसा दिख रहा मिनी नियाग्रा !

चिमनी या लालटेन सहारे जी रहे हैं लोग: गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के ऐसे लगभग डेढ़ दर्जन गांव है, जहां आज भी विद्युत लाइन नहीं पहुंच सकी है. इन गांवों में ज्यादातर बैगा आदिवासी निवास करते हैं. यह आदिवासी आज भी अंधेरे में जीने को विवश है. विद्युत ना होने की वजह से बैगा आदिवासी दिन रहते रहते ही अपनी जीवन छाया निपटा लेते हैं और शाम होने पर चिमनी या लालटेन की रोशनी करते हैं. मिट्टी तेल ना होने पर लकड़ी जलाकर उजाला करते हैं ताकि जंगली जानवरों का प्रवेश उनके घरों में ना हो और उजाला भी बना रहे. लेकिन अब जब मिट्टी का तेल केरोसीन लगभग 85 रुपए लीटर है.

विद्युत विभाग के कार्यपालक अभियंता से बात: वही जब हमने विद्युतीकरण के मुद्दे पर जब विद्युत विभाग के कार्यपालक अभियंता से बात की गई तो उन्होंने बताया कि फिलहाल विद्युत विभाग के पास किसी प्रकार की कोई योजना ऐसी संचालित नहीं है, जिससे मैं गांव के घरों तक रोशनी पहुंचाई जा सके. उन्होंने आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त को पत्र लिखा है कि बैगा बाहुल्य 18 गांवों में विद्युत नहीं है. कृपया विभाग की तरफ से फंड उपलब्ध कराया जाए ताकि इन गांवों तक विद्युतीकरण कराया जा सके.

गौरेला पेंड्रा मरवाही: पानी-बिजली-सड़क ये मुलभूत सुविधा किसी भी देश-प्रदेश के विकास का आईना है. आजादी के 75 साल बाद भी गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के 18 बैगा बाहुल्य ग्राम अब भी लालटेन के सहारे रात गुजार रहे हैं. तमाम सरकारी योजनाओं के बावजूद इस गांव में बिजली नहीं पहुंच पाई है. वहीं जिम्मेदार विभाग एक दूसरे पर आरोप डाल रहे हैं.

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चिमनी या लालटेन सहारे जी रहे हैं लोग: गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के ऐसे लगभग डेढ़ दर्जन गांव है, जहां आज भी विद्युत लाइन नहीं पहुंच सकी है. इन गांवों में ज्यादातर बैगा आदिवासी निवास करते हैं. यह आदिवासी आज भी अंधेरे में जीने को विवश है. विद्युत ना होने की वजह से बैगा आदिवासी दिन रहते रहते ही अपनी जीवन छाया निपटा लेते हैं और शाम होने पर चिमनी या लालटेन की रोशनी करते हैं. मिट्टी तेल ना होने पर लकड़ी जलाकर उजाला करते हैं ताकि जंगली जानवरों का प्रवेश उनके घरों में ना हो और उजाला भी बना रहे. लेकिन अब जब मिट्टी का तेल केरोसीन लगभग 85 रुपए लीटर है.

विद्युत विभाग के कार्यपालक अभियंता से बात: वही जब हमने विद्युतीकरण के मुद्दे पर जब विद्युत विभाग के कार्यपालक अभियंता से बात की गई तो उन्होंने बताया कि फिलहाल विद्युत विभाग के पास किसी प्रकार की कोई योजना ऐसी संचालित नहीं है, जिससे मैं गांव के घरों तक रोशनी पहुंचाई जा सके. उन्होंने आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त को पत्र लिखा है कि बैगा बाहुल्य 18 गांवों में विद्युत नहीं है. कृपया विभाग की तरफ से फंड उपलब्ध कराया जाए ताकि इन गांवों तक विद्युतीकरण कराया जा सके.

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