ETV Bharat / state

उसकी एक आवाज पर बुझ जाती है आग और थम जाती है ट्रैफिक, जानिये बिलासपुर के उस युवक की खासियत... - chhattisgarh latest news

आंखें किसी भी इंसान के लिए अनमोल हैं. आंखें न हों तो धन-संपत्ति, रुपये-पैसे सब बेकार. क्या कोई दोनों आंखों से नेत्रहीन व्यक्ति अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकता है. लाजिमी है आपका जवाब होगा नहीं. लेकिन आज हम आपको मिलवाएंगे इसे मुमकिन कर दिखाने वाले (Ghanshyam Vaishnav Bilaspur ) बिलासपुर के घनश्याम वैष्णव से.

Ghanshyam Vaishnav Bilaspur
उसकी एक आवाज पर बुझ जाती है आग और थम जाती है ट्रैफिक
author img

By

Published : Mar 24, 2022, 11:05 PM IST

बिलासपुर : आंखें किसी भी इंसान के लिए अनमोल हैं. आंखें न हों तो धन-संपत्ति, रुपये-पैसे सब बेकार. क्या कोई दोनों आंखों से नेत्रहीन व्यक्ति अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकता है. लाजिमी है आपका जवाब होगा नहीं. लेकिन आज हम आपको मिलवाएंगे इसे मुमकिन कर दिखाने वाले बिलासपुर के (Ghanshyam Vaishnav Bilaspur ) घनश्याम वैष्णव से. तो आइये जानते हैं घनश्याम की कहानी.

उसकी एक आवाज पर बुझ जाती है आग और थम जाती है ट्रैफिक

दोनों आंखों से नहीं देख पाते घनश्याम : बिलासपुर के सकरी निवासी घनश्याम वैष्णन बचपन से ही दोनों आंखों से नहीं देख पाते हैं. ईश्वर ने उनसे आंखें तो छीन लीं, लेकिन उन्हें भरपूर हुनर से नवाजा है. घनश्याम के गले में मां सरस्वती निवास करती हैं. इसी का नतीजा है कि वे पक्षियों की आवाज, कार बैक करने की आवाज, एंबुलेंस की आवाज के साथ-साथ दर्जनों तरह की आवाज के बेताज बादशाह हैं. इसी आवाज के जरिये वे अपना और अपनी मां का भरण-पोषण करते हैं.

रोटी की जुगाड़ रोज शहर निकलता है घनश्याम : सकरी से रोज एक नई उम्मीद के साथ नेत्रहीन धनश्याम अपनी बूढ़ी मां और अपने लिए दो वक्त की रोटी की जुगाड़ में घर से शहर की ओर निकलता है. भिक्षा वृत्ति की बजाए खुदा से मिले टैलेंट के दम पर रोजगार चलकर परिवार का पेट चलाता है. बिलासपुर शहर से 10 किलोमीटर दूर सकरी गांव निवासी दृष्टिबाधित घनश्याम वैष्णव ने नेत्रहीन होने के बाद भी अपनी जमीर से समझौता नहीं किया. अपने हुनर से लोगों का दिल जीतकर मिलने वाली छोटी-मोटी रकम से अपना घर चला रहा है.

तीन माह की उम्र में ही चली गई थी आंखों की रोशनी : घनश्याम की आंखों की रोशनी बचपन में ही तीन माह की उम्र में चली गई थी. डॉक्टरों ने आंखों की जांच कर बताया कि आंखों की नसें सूख गई हैं. अब वह कभी देख नहीं सकेगा. उसका अंधत्व 100 फीसदी है. घनश्याम ने बताया कि महज 3 माह की उम्र में आंखों की रोशनी चली गई. गरीबी के चलते आखों का उचित इलाज नहीं हो सका. 4 साल की उम्र तक उसे हल्का-हल्का दिख रहा था. फिर इस बीच पिता की मौत हो गई और उसका इलाज भी नहीं हुआ.

ये भी पढ़ें : valentine day special : मिलिये लव बर्ड्स की शौकीन गृहिणी से, जिनका घर बन गया है "चिड़ियाघर"

पिता की मौत के साथ ही माथे पर आ गई परिवार की जिम्मेदारी : पिता की मौत के बाद परिवार की जिम्मेवारी भी घनश्याम के कंधों पर ही आ गई. घनश्याम ने बताया कि वह तीन भाई और एक बहन है. बहन की शादी हो चुकी है. भाइयों ने उसका साथ देने की बजाए उससे दूरी बना ली. अब सकरी में ही वह अपनी बूढ़ी मां के साथ रहता है. बेटे की नेत्रहीनता के कारण मां ने मजदूरी करने का फैसला लिया, लेकिन धनश्याम को यह पसंद नहीं आया. बूढ़ी मां की पीड़ा देख घनश्याम ने मां को काम पर जाने से मना कर दिया. उसने कहा कि अपने हुनर से वह खुद का और अपनी मां का भरण-पोषण करेगा.

इसके बाद शुरू हो गया घनश्याम का हुनर से रोटी के लिए जुगाड़ की मशक्कत का सफरनामा. हाथों में लाठी लेकर शहर की रोड पर अपने मुंह से मैना, तोता, कोयल और विभिन्न वाहनों के हू-ब-हू सायरन की आवाजें निकालने वाले घनश्याम से लोग प्रभावित होते गए. उसकी आवाज सुनकर लोग उसे पैसे भी देने लगे. अब इसी पैसे से घनश्याम खुद का और अपनी मां का भरण-पोषण करता है.

नहीं मिल रहा किसी योजना का लाभ : धनश्याम की मां ने बताया कि इस हालत में होने के बाद भी उसे शासन की किसी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है. उसके पास न तो राशन राशन कार्ड है और न ही इलाज के लिए ही कोई कार्ड है. धनश्याम के इस हालात के बाद तो राजनैतिक दलों के सारे दावे अपने आप ही बेमानी साबित हो जाते हैं. घनश्याम ने बताया कि वह वार्ड पार्षद, क्षेत्र के विधायक और अधिकारियों के कार्यालयों के चक्कर काटता रहा, लेकिन किसी ने उसकी एक न सुनी.

बिलासपुर : आंखें किसी भी इंसान के लिए अनमोल हैं. आंखें न हों तो धन-संपत्ति, रुपये-पैसे सब बेकार. क्या कोई दोनों आंखों से नेत्रहीन व्यक्ति अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकता है. लाजिमी है आपका जवाब होगा नहीं. लेकिन आज हम आपको मिलवाएंगे इसे मुमकिन कर दिखाने वाले बिलासपुर के (Ghanshyam Vaishnav Bilaspur ) घनश्याम वैष्णव से. तो आइये जानते हैं घनश्याम की कहानी.

उसकी एक आवाज पर बुझ जाती है आग और थम जाती है ट्रैफिक

दोनों आंखों से नहीं देख पाते घनश्याम : बिलासपुर के सकरी निवासी घनश्याम वैष्णन बचपन से ही दोनों आंखों से नहीं देख पाते हैं. ईश्वर ने उनसे आंखें तो छीन लीं, लेकिन उन्हें भरपूर हुनर से नवाजा है. घनश्याम के गले में मां सरस्वती निवास करती हैं. इसी का नतीजा है कि वे पक्षियों की आवाज, कार बैक करने की आवाज, एंबुलेंस की आवाज के साथ-साथ दर्जनों तरह की आवाज के बेताज बादशाह हैं. इसी आवाज के जरिये वे अपना और अपनी मां का भरण-पोषण करते हैं.

रोटी की जुगाड़ रोज शहर निकलता है घनश्याम : सकरी से रोज एक नई उम्मीद के साथ नेत्रहीन धनश्याम अपनी बूढ़ी मां और अपने लिए दो वक्त की रोटी की जुगाड़ में घर से शहर की ओर निकलता है. भिक्षा वृत्ति की बजाए खुदा से मिले टैलेंट के दम पर रोजगार चलकर परिवार का पेट चलाता है. बिलासपुर शहर से 10 किलोमीटर दूर सकरी गांव निवासी दृष्टिबाधित घनश्याम वैष्णव ने नेत्रहीन होने के बाद भी अपनी जमीर से समझौता नहीं किया. अपने हुनर से लोगों का दिल जीतकर मिलने वाली छोटी-मोटी रकम से अपना घर चला रहा है.

तीन माह की उम्र में ही चली गई थी आंखों की रोशनी : घनश्याम की आंखों की रोशनी बचपन में ही तीन माह की उम्र में चली गई थी. डॉक्टरों ने आंखों की जांच कर बताया कि आंखों की नसें सूख गई हैं. अब वह कभी देख नहीं सकेगा. उसका अंधत्व 100 फीसदी है. घनश्याम ने बताया कि महज 3 माह की उम्र में आंखों की रोशनी चली गई. गरीबी के चलते आखों का उचित इलाज नहीं हो सका. 4 साल की उम्र तक उसे हल्का-हल्का दिख रहा था. फिर इस बीच पिता की मौत हो गई और उसका इलाज भी नहीं हुआ.

ये भी पढ़ें : valentine day special : मिलिये लव बर्ड्स की शौकीन गृहिणी से, जिनका घर बन गया है "चिड़ियाघर"

पिता की मौत के साथ ही माथे पर आ गई परिवार की जिम्मेदारी : पिता की मौत के बाद परिवार की जिम्मेवारी भी घनश्याम के कंधों पर ही आ गई. घनश्याम ने बताया कि वह तीन भाई और एक बहन है. बहन की शादी हो चुकी है. भाइयों ने उसका साथ देने की बजाए उससे दूरी बना ली. अब सकरी में ही वह अपनी बूढ़ी मां के साथ रहता है. बेटे की नेत्रहीनता के कारण मां ने मजदूरी करने का फैसला लिया, लेकिन धनश्याम को यह पसंद नहीं आया. बूढ़ी मां की पीड़ा देख घनश्याम ने मां को काम पर जाने से मना कर दिया. उसने कहा कि अपने हुनर से वह खुद का और अपनी मां का भरण-पोषण करेगा.

इसके बाद शुरू हो गया घनश्याम का हुनर से रोटी के लिए जुगाड़ की मशक्कत का सफरनामा. हाथों में लाठी लेकर शहर की रोड पर अपने मुंह से मैना, तोता, कोयल और विभिन्न वाहनों के हू-ब-हू सायरन की आवाजें निकालने वाले घनश्याम से लोग प्रभावित होते गए. उसकी आवाज सुनकर लोग उसे पैसे भी देने लगे. अब इसी पैसे से घनश्याम खुद का और अपनी मां का भरण-पोषण करता है.

नहीं मिल रहा किसी योजना का लाभ : धनश्याम की मां ने बताया कि इस हालत में होने के बाद भी उसे शासन की किसी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है. उसके पास न तो राशन राशन कार्ड है और न ही इलाज के लिए ही कोई कार्ड है. धनश्याम के इस हालात के बाद तो राजनैतिक दलों के सारे दावे अपने आप ही बेमानी साबित हो जाते हैं. घनश्याम ने बताया कि वह वार्ड पार्षद, क्षेत्र के विधायक और अधिकारियों के कार्यालयों के चक्कर काटता रहा, लेकिन किसी ने उसकी एक न सुनी.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.