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बिलासपुर : कहीं इतिहास न बन जाए सेंट्रल जेल से जुड़ी माखनलाल चतुर्वेदी की ये यादें

माखनलाल चतुर्वेदी ने गुलामी के दिनों में शहर के शनिचरी मैदान में ऐतिहासिक भाषण देते हुए अंग्रेजी हुकूमत को ललकारा था और वहीं बैरक में बैठकर 'पुष्प की अभिलाषा' की रचना लिखी थी.

माखनलाल चतुर्वेदी की ये यादें
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Published : Jul 29, 2019, 9:24 PM IST

चाह नहीं मैं सुरबाला के,
गहनों में गूंथा जाऊं
चाह नहीं, प्रेमी-माला में,
बिंध प्यारी को ललचाऊं
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक..

बिलासपुर : अमर कविता 'पुष्प की अभिलाषा' को आपको याद ही होगी और याद होंगे इसको लिखने वाले कवि पंडित माखनलाल चतुर्वेदी. ये कविता कवि माखनलाल ने बिलासपुर की बैरक में सजा काटते हुए लिखी थी. लेकिन हाल ही में जब बिलासपुर के सेंट्रल जेल स्थित बैरक नंबर 9 को पुनर्निर्माण के लिए तोड़ने की बात सामने आई, तो पंडित माखनलाल की यादें ताजा हो गईं.

कहीं इतिहास न बन जाए सेंट्रल जेल से जुड़ी माखनलाल चतुर्वेदी की ये यादें

माखनलाल चतुर्वेदी ने गुलामी के दिनों में शहर के शनिचरी मैदान में ऐतिहासिक भाषण देते हुए अंग्रेजी हुकूमत को ललकारा था और कहा था जल्द ही अंग्रेजों की बत्ती बुझ जाएगी और स्वतंत्रता का नया प्रकाश फैलेगा. अंग्रेजी हुकूमत को यह रास नहीं आया और और उन्हें राजद्रोह के तहत आठ महीने की सजा सुनाई गई.

पढ़ें- जमकर बरस रहे हैं इंद्र देव, प्रदेश के 9-9 जिलों में रेड और ऑरेंज अलर्ट जारी

इस तरह दादा 5 जुलाई 1921 से 1 मार्च 1922 तक सेंट्रल जेल स्थित बैरक नंबर 9 में बंद रहे. इस बीच उन्होंने कई रचनाएं लिखी जिन रचनाओं में 'पुष्प की अभिलाषा' को सर्वाधिक लोकप्रियता मिली. पुष्प की अभिलाषा कविता राष्ट्रीयता की भावना ओतप्रोत होकर लिखी गई है, जो राष्ट्र के लिए कुर्बान होने का संदेश देता है.

पढ़ें- छत्तीसगढ़ की नई राज्यपाल बनीं अनुसुइया उइके, चीफ जस्टिस ने दिलाई शपथ

1989 में पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी ने माखनलाल चतुर्वेदी को बैरक में एक स्मारक का रूप दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी, जिस बैरक को 19 सालों बाद पुनर्निर्माण के नाम पर फिलहाल तोड़ा जा रहा है.
जेल प्रशासन के इस गतिविधि की अब कड़ी आलोचना हो रही है. वहीं जेल प्रशासन फिलहाल इस मामले में कुछ भी कहने से बचता नजर आ रहा है.

चाह नहीं मैं सुरबाला के,
गहनों में गूंथा जाऊं
चाह नहीं, प्रेमी-माला में,
बिंध प्यारी को ललचाऊं
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक..

बिलासपुर : अमर कविता 'पुष्प की अभिलाषा' को आपको याद ही होगी और याद होंगे इसको लिखने वाले कवि पंडित माखनलाल चतुर्वेदी. ये कविता कवि माखनलाल ने बिलासपुर की बैरक में सजा काटते हुए लिखी थी. लेकिन हाल ही में जब बिलासपुर के सेंट्रल जेल स्थित बैरक नंबर 9 को पुनर्निर्माण के लिए तोड़ने की बात सामने आई, तो पंडित माखनलाल की यादें ताजा हो गईं.

कहीं इतिहास न बन जाए सेंट्रल जेल से जुड़ी माखनलाल चतुर्वेदी की ये यादें

माखनलाल चतुर्वेदी ने गुलामी के दिनों में शहर के शनिचरी मैदान में ऐतिहासिक भाषण देते हुए अंग्रेजी हुकूमत को ललकारा था और कहा था जल्द ही अंग्रेजों की बत्ती बुझ जाएगी और स्वतंत्रता का नया प्रकाश फैलेगा. अंग्रेजी हुकूमत को यह रास नहीं आया और और उन्हें राजद्रोह के तहत आठ महीने की सजा सुनाई गई.

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इस तरह दादा 5 जुलाई 1921 से 1 मार्च 1922 तक सेंट्रल जेल स्थित बैरक नंबर 9 में बंद रहे. इस बीच उन्होंने कई रचनाएं लिखी जिन रचनाओं में 'पुष्प की अभिलाषा' को सर्वाधिक लोकप्रियता मिली. पुष्प की अभिलाषा कविता राष्ट्रीयता की भावना ओतप्रोत होकर लिखी गई है, जो राष्ट्र के लिए कुर्बान होने का संदेश देता है.

पढ़ें- छत्तीसगढ़ की नई राज्यपाल बनीं अनुसुइया उइके, चीफ जस्टिस ने दिलाई शपथ

1989 में पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी ने माखनलाल चतुर्वेदी को बैरक में एक स्मारक का रूप दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी, जिस बैरक को 19 सालों बाद पुनर्निर्माण के नाम पर फिलहाल तोड़ा जा रहा है.
जेल प्रशासन के इस गतिविधि की अब कड़ी आलोचना हो रही है. वहीं जेल प्रशासन फिलहाल इस मामले में कुछ भी कहने से बचता नजर आ रहा है.

Intro:हाल ही में जब बिलासपुर के सेंट्रल जेल स्थित बैरक नम्बर 9 को पुनर्निर्माण के लिए तोड़ने की बात सामने आई तो एक भारतीय आत्मा के नाम से मशहूर पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी की याद ताजा हो गई । पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी ने इसी बैरक में सजा काटते हुए अपनी महान रचना "पुष्प की अभिलाषा" लिखी थी ।


Body:माखनलाल चतुर्वेदी ने गुलामी के दिनों में शहर के शनिचरी मैदान में ऐतिहासिक भाषण देते हुए अंग्रेजी हुकूमत को ललकारा था और कहा था जल्द ही अंग्रेजों की बत्ती बुझ जाएगी और स्वतंत्रता का नया प्रकाश फैलेगा । जो तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत को रास नहीं आया और और उन्हें राजद्रोह के तहत आठ महीने की सजा सुनाई गई । और इस तरह दादा 5 जुलाई 1921 से 1 मार्च 1922 तक सेंट्रल जेल स्थित बैरक नम्बर 9 में बंद रहे । इस बीच उन्होंने कई रचनाएँ लिखी जिन रचनाओं में पुष्प की अभिलाषा को सर्वाधिक लोकप्रियता मिली । दादा ने 28 फरवरी 1922 को पुष्प की अभिलाषा लिखी थी । पुष्प की अभिलाषा कविता राष्ट्रीयता की भावना ओतप्रोत होकर लिखी गई है,जो राष्ट्र के लिए कुर्बान होने का संदेश देता है ।


Conclusion:आपको जानकारी दें कि पद्मश्री शयमलाल चतुर्वेदी ने 1989 में माखनलाल चतुर्वेदी जी के बैरक को एक स्मारक का रूप दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी,जिस बैरक को 19 वर्षों बाद पुनर्निर्माण के नाम पर फिलहाल तोड़ा गया है । जेल प्रशासन के इस गतिविधि की अब कड़ी आलोचना हो रही है । वहीं जेल प्रशासन फिलहाल इस मामले में कुछ भी कहने से बचता नजर आ रहा है ।

बाईट.....सूर्यकांत चतुर्वेदी...वरिष्ठ पत्रकार
विशाल झा..... बिलासपुर
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