बिलासपुर : बिलासपुर में स्वास्थ्य व्यवस्था दयनीय हो गई है. अस्पतालों में कहीं डॉक्टर नहीं हैं तो कहीं सभी सुविधाएं होने के बावजूद जच्चे-बच्चे को बचा पाने में स्वास्थ्य विभाग नाकाम है. जिला अस्पताल और सिम्स मेडिकल कॉलेज (District Hospital and Sims Medical College) में कई मौतें हुई हैं, जिसके स्वास्थ्य अधिकारी कई कारण बता रहे हैं. अंबिकापुर में हुए नवजात बच्चों की मौत (Newborns Died Case in Ambikapur) ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाएं भगवान भरोसे ही चल रही हैं. कहीं स्वास्थ्य सुविधा की कमी है तो कहीं डॉक्टरों की कमी है. फिर बात अगर बिलासपुर की करें तो इस जिले में एक माह के भीतर 14 जच्चे और 42 नवजात बच्चों की मौत हो चुकी है.
सिम्स में हुई मौतों पर प्रबंधन ने डाल रखा है पर्दा !
इधर, सिम्स अस्पताल में भी कई मौतें हुई हैं, लेकिन प्रबंधन ने पूरे मामले में पर्दा डाल रखा है. सिम्स प्रबंधन ने इस मामले में अनभिज्ञता जताते हुए यह कह रहा है कि उनके यहां मरीज तब पहुचते हैं, जब दूसरे अस्पताल उन्हें संभाल नहीं पाते. केस बिगड़ने के बाद यहां मरीजों को लाया जाता है. ऐसे में यहां बेहतर इलाज की कोशिश होती है. अगर जिला अस्पताल की बात की जाए तो यहां एक महीने के भीतर कोई मौत नहीं हुई है. जच्चा-बच्चा दोनों यहां से बेहतर हालत में डिस्चार्ज हुए हैं, लेकिन असल कारण ये है कि जिला अस्पताल मरीज की थोड़ी सी भी तबियत खराब होती है तो उन्हें सिम्स या दूसरे निजी अस्पताल रेफर कर देते हैं. ऐसे में कोई भी मौत उनके यहां होती ही नहीं है और उनका दामन बेदाग रहता है.
जिले के अस्पतालों में एक माह में 14 गर्भवती, 42 बच्चों की मौत
वहीं सीएमएचओ डॉ प्रमोद महाजन ने बताया कि एक महीने के भीतर जिले के अस्पतालों में 14 गर्भवती और जच्चा महिलाओं की मौत हुई है. जबकि एक महीने से चार महीने तक के 42 बच्चों की भी मौत हुई है. इसमें सिम्स मेडिकल कॉलेज के मौतों के आंकड़े शामिल नहीं है. सीएमएचओ ने बताया कि कई कारण होते हैं, जिससे मौतें होती हैं. जैसे बच्चा पेट में ही खत्म हो जाता है. इन स्थितियों में प्रसूता के पेट में पानी नहीं होता या घर में डिलीवरी कराने की कोशिश करने की वजह से ये मौतें होती हैं.
एमएस ने पत्र लिखकर दी थी जानकारी
पिछले दिनों सिम्स मेडिकल कॉलेज के एमएस पुनीत भारद्वाज ने सीएमएचओ को पत्र लिखा था कि मरीजों को जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और दूसरे अस्पतालों से अचानक सिम्स रेफर करने की संख्या बढ़ गई है. जिन मरीजों का इलाज स्थानीय स्तर पर किया जा सकता है, उनको भी यहां से रेफर किया जा रहा है. ऐसे में मरीजों और उनके परिजनों की बेवजह भीड़ के कारण अस्पताल चलाने में असुविधा हो रही है.
100 बेड के शिशु अस्पताल को बनाया जिला अस्पताल
इधर, जिला अस्पताल में भी मरीजों की भीड़ को नहीं संभाला जा पा रहा है. हजारों की संख्या में यहां सुबह-शाम मरीज पहुचते हैं. ओपीडी और भर्ती मरीजों की संख्या बढ़ रही है. सीएमएचओ डॉ प्रमोद महाजन ने इस मामले में कहा कि बिलासपुर के जिला अस्पताल को संभागीय कोविड अस्पताल बना दिया गया है. यहां महज 100 बिस्तर के शिशु अस्पताल को ही मजबूरी में जिला अस्पताल बना दिया गया है. ऐसे में 300 बिस्तर वाले अस्पताल को 100 बिस्तर वाले अस्पताल से कैसे संचालित कर सकते हैं. करीब 15 विभाग और ओपीडी के साथ ही भर्ती मरीजों को संभालने में काफी दिक्कत हो रही है.
भगवान भरोसे हैं जिले की स्वास्थ्य सुविधाएं
अगर पूरे जिले के स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो जिले की स्वास्थ्य सुविधा भगवान भरोसे ही चल रही है. यहां भी कभी भी अंबिकापुर जैसी घटना हो जाए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. क्योंकि जिस तरह की स्वास्थ्य सुविधाएं बिलासपुर में हैं, इससे तो यही साबित होता है कि स्वास्थ्य विभाग अपनी जिम्मेदारियों को निर्वहन करने में नाकाम है. इतना ही नहीं स्वास्थ्य मंत्रालय का भी नियंत्रण जिले के स्वास्थ्य विभाग से खत्म हो गया है. जिस पद पर जो जहां बैठा है, वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन सही तरीके से नहीं कर रहा है. यही कारण है कि जिले की स्वास्थ्य सुविधा लक्ष्य से भटक गई है.