कोरोना काल: अपनी पसंदीदा चीजों से ही बोर हुए बच्चे, दिमाग पर पड़ा असर - बिलासपुर में कोरोना के साइड इफेक्ट
कोरोनाकाल में बच्चे घर में रहकर ना सिर्फ परेशान हुए बल्कि उनके मानसिक विकास पर भी इसका असर पड़ा. हालांकि मनोचिकित्सकों का मानना है कि अब बच्चे घर से बाहर निकलने लगे हैं, स्कूल जाने लगे हैं तो फिर से दिनचर्या सामान्य होगी.
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बिलासपुर: साल 2020 हर वर्ग के लिए तो खराब रहा ही लेकिन सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित हुए. कोरोना ने मानो एक तरह से बच्चों का बचपन ही छीन लिया. स्कूल जाना, दोस्तों के साथ पार्क में खेलना, सब कुछ बंद हो गया. कोरोना ने मानो बच्चों को घर में कैद सा कर दिया. शुरुआत में बच्चों को घर में रहना, छुट्टियां मनाना अच्छा लगा. मोबाइल, टीवी पर गेम खेलकर दिन गुजरे. लेकिन अब यहीं चीजें मासूमों को बोर करने लगी हैं. इसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी देखा जा रहा है.
'घर से सिर्फ पढ़ाई, टीवी, फोन से हुए बोर'
ETV भारत ने जब बच्चों से बात की, तो उन्होंने बताया कि लंबे समय से स्कूली जीवन और बाहर नहीं निकल पाने के कारण वे घर में रहकर काफी परेशान हो गए हैं. ना ही दोस्तों से मिल पा रहे हैं, ना ही कहीं बाहर जा पा रहे हैं. ऐसा लग रहा है कैद में कर दिया गया हो. बच्चों ने बताया कि उन्हें घर में कुछ करने को नहीं मिलता और पढ़ने के अलावा उनकी जिंदगी सिर्फ मोबाइल और टीवी में सिमटकर रह गई थी. इस बीच उन्हें दोस्तों की याद भी बहुत आई. बच्चों ने बताया कि घर में कुछ खेलने को नहीं मिलता था और वो पूरी तरह से बोर हो गए थे. जिन बच्चों का पहली बार एडमिशन होना था, उनका एडमिशन भी प्रभावित हुआ.
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'कोरोना और लॉकडाउन का मिला जुला असर'
बच्चों के अभिभावकों ने कहा कि कोरोना काल में बच्चों में आए चेंक को उन्होंने महसूस किया है. स्कूल नहीं जाने से बच्चे फिजिकल एक्टिविटी से दूर हो गए. जिसका दुष्प्रभाव साफ दिखा. कुछ अभिभावकों ने कहा कि इस बीच बच्चों में कुछ घरेलू काम सीखने जैसे सकारात्मक परिवर्तन भी देखने को मिले.
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ETV भारत से टीचर ने बात की. उन्होंने बताया कि बच्चों ने मेंटली काफी कुछ सीखा है. लेकिन फिजिकल एक्टिविटी कम होने से उनका विकास काफी हद तक प्रभावित हुआ है. ऑनलाइन क्लासेज और हाथों में मोबाइल होने की वजह से नकारात्मक प्रभाव यह भी देखने को मिला है कि ना चाहते हुए भी बच्चे वल्गर एक्टिविटी के शिकार हुए.
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'स्कूल जाने से बच्चों में दोबारा होगा विकास'
इस संदर्भ में मनोचिकित्सक डॉ आशुतोष तिवारी ने बताया कि कोरोनाकाल में बच्चों में होने वाले चिड़चिड़ेपन की शिकायत उनके पास ज्यादा आई. उन्होंने बताया कि दोस्तों से कम मिलने की वजह से और घर में ज्यादा पढ़ाई की उम्मीदों ने उनके स्वभाव में परिवर्तन ला दिया. मनोचिकित्सक की मानें तो हर उम्र में आदमी अपने हम उम्र की तलाश करता है. ऐसा करके वो अपने इमोशन को शेयर करता है. इस वजह से भी बच्चों के स्वभाव में परिवर्तन दिखा. उन्होंने बताया कि अब जब स्कूल जाने का सिलसिला फिर से शुरू होगा तो बच्चों का विकासचक्र फिर से चलने लगेगा.