बिलासपुर: छत्तीसगढ़ के शासकीय अस्पतालों में भारतीय जन औषधि परियोजना के तहत प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोले गए थे. प्रदेश में लगभग 100 से अधिक जन औषधि केंद्र खोले गए थे. लेकिन ब्रांडेड दवा लिखने और इसकी उपयोगिता का प्रचार-प्रसार न होने से जन औषधि केंद्र अपनी दशा पर आंसू बहा रहा है. शुरुआती दौर में जेनेरिक दवाओं को लेकर लोगों में जानकारी की कमी थी. जानकारी न होने से बिक्री कम होती थी.
बीजेपी सरकार बनने से बढ़ी उम्मीदें: हालांकि बाद में सस्ती दवा होने और इसके फायदे को देखते हुए इसकी पूछ परख बढ़ गई. पूछ परख बढ़ने की वजह से ब्रांडेड दवाएं कम बिकने लगी है. बाद में सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर ब्रांडेड दवा लिखते थे. थोड़ा बहुत जेनेरिक दवाएं प्रिस्क्रिप्शन में लिखते थे. जिसकी वजह से अब जन औषधि केंद्रों की स्थिति इतनी खराब हो गई है कि पूरे दिन में कर्मचारी का तनख्वाह निकल जाए इतनी भी बिक्री नहीं हो रही है. प्रदेश में फिर से एक बार भाजपा की सरकार बनने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र की रौनक बढ़ सकती है.
लोगों को कम लागत में मिलता था बेहतर लाभ: इस बीच छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने के बाद कई योजनाओं को पंख लगने की उम्मीद जताई जा रही है. प्रदेश में 2003 से लेकर 2018 तक भाजपा की सरकार रही. इन सालों में कई योजना और परियोजना की शुरुआत की गई थी. इनमें भारतीय जन औषधि योजना के तहत पीएम जन औषधि केंद्र खोले गए थे. इन केंद्रों में जेनेरिक दवा बिकती है. जेनेरिक दवा की कीमत इतनी कम होती है कि ब्रांडेड दवा के मुकाबले यहां 50 फीसद की कीमत में लोगों को दवा मिल जाती है. इसका लाभ भी ब्रांडेड दवा जैसा होता है. इलाज के दौरान मरीज को जेनेरिक दवा मिलने पर जहां एक तरफ उनकी जान बचती है. वहीं, दूसरी ओर पैसे कम लगते हैं.
सरकार बदलने पर हालत हुई थी खराब: बिलासपुर जिले में लगभग पांच और प्रदेश में लगभग 100 से भी ज्यादा जन औषधि केंद्र शासकीय अस्पतालों में खोले गए थे. इसके अलावा मेडिकल कॉलेज में भी प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोले गए थे. शुरुआती दौर में सरकार के दबाव के बाद सरकारी अस्पताल की जन औषधि केंद्र की दवाई लिखते थे. बाद में प्रदेश में सरकार बदलने के बाद इनकी स्थिति खराब हो गई. डॉक्टर जेनरिक दवा लिखने में कोताही करने लगे. मरीज ब्रांडेड दवा लेने लगे. मरीज और डॉक्टर के मुंह मोड़ने से जन औषधि केंद्र की बिगड़ी हालात अब तक नहीं सुधरी है.
300 प्रकार की दवा उपलब्ध: भारतीय जन औषधि परियोजना के तहत खोले गए प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों में लगभग 300 किस्म की दवाईयां मिलती है. यह दवाई काफी सस्ती होती है. मरीजों के लिए भी ये दवा कारगर साबित होती है. जिले में लगभग पांच जन औषधि केंद्र हैं. यह उन क्षेत्रों को कवर करती है, जहां गरीब तबके के लोग शासकीय अस्पतालों में इलाज कराने आते हैं. डॉक्टर की ओर से लिखे गए प्रिस्क्रिप्शन में सस्ती दवा लेकर स्वास्थ्य लाभ तो लेते हैं. साथ ही आर्थिक रूप से भी ज्यादा पैसे खर्च करने से बचाव होता है.
शुरुआती दौर में लोगों को जेनेरिक दवा के फायदे की जानकारी नहीं थी. लेकिन कुछ समय बाद लोगों में जागरूकता बढ़ी. वे जेनेरिक दवाओं का उपयोग करना शुरू किए. तब जन औषधि केंद्रों की स्थिति अच्छी हो गई. इसके बाद मरीजों की भीड़ लगी रहती थी. लेकिन बाद में फिर से डॉक्टर जेनेरिक दवाई लिखना बंद कर दिए. इसके बाद जन औषधि केंद्र की स्थिति बिगड़ गई. स्थिति बिगड़ने के बाद अब तक इसमें सुधार नहीं आया है.- आशीष मिश्रा, कर्मचारी, जन औषधि केंद्र, सिम्स
धनवंतरी औषधि केंद्र खुलने से बढ़ी दिक्कतें: प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र लोगों को अच्छी सेवा दे रहा था. दवाइयां भी उन्हें सस्ती मिल रही थी. इसकी वजह से पूछपरख बढ़ गई थी. लेकिन छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार जाने के बाद नई कांग्रेस की सरकार ने मुख्यमंत्री जेनेरिक मेडिकल स्टोर की शुरुआत की. मुख्यमंत्री ने धनवंतरी औषधि केंद्र की योजना तैयार कर इसे जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज सहित शहर के अलग-अलग क्षेत्र में इसके आउटलेट शुरू कर दिए. इसकी वजह से लगातार जेनेरिक दवाओं की डिमांड तो बढ़ी लेकिन प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र की पूछपरख कम हो गई. इधर, आम लोगों को उनके ही क्षेत्र में धनवंतरी मेडिकल स्टोर के माध्यम से सस्ती जेनेरिक दवा मिलने लगी. जिसकी वजह से लोग सरकारी अस्पतालों के भारतीय जन औषधि केंद्र से दवा लेना बंद कर दिए. हालांकि अब स्थिति फिर से बदल सकती है. प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र की पूछपरख बढ़ जाएगी.