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आरक्षक बिना ड्यूटी सात साल तक लेता रहा वेतन, हाईकोर्ट का पुलिस के आला अधिकारियों को नोटिस - पुलिस कप्तान पारूल माथुर

Chhattisgarh High Court बिलासपुर में बिना ड्यूटी के एक आरक्षक पर सात साल तक वेतन लेने का आरोप लगा है. इस मामले में वेतन शाखा के कर्मचारियों पर विभागीय कार्रवाई हुई तो वह कोर्ट चले गए. उनकी याचिका पर अब पुलिस ने आला अधिकारियों को कोर्ट ने नोटिस जारी किया है.bilaspur news

Chhattisgarh High Court notice
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बिलासपुर
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Published : Nov 1, 2022, 4:47 PM IST

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक आरक्षक के बिना ड्यूटी के सात साल तक वेतन लेने के मामले में राज्य के आला पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी किया है. पुलिस की जांच में खुलासा हुआ कि आरक्षक को सात साल में 32 लाख रुपये का वेतन जारी हुआ. जबकि वह सात साल तक ड्यूटी से गायब रहा. बाद में उसकी मौत हो गई.Chhattisgarh High Court notice to police officers

बिलासपुर पुलिस ने की थी जांच: बिना ड्यूटी के वेतन लेने के इस मामले का जैसे ही खुलासा हुआ. एसएसपी बिलासपुर ने इस केस में विभागीय जांच शुरू की. जांच में एसपी ऑफिस के वेतन शाखा के तीन कर्मचारियों की संलिप्तता पर जांच शुरू हुई. बिना सुनवाई के मौका दिए विभागीय जांच शुरू किए. जिसके खिलाफ सुधीर श्रीवास्तव ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई. याचिका पर सुनवाई करते हुए गृह सचिव, डीजीपी, आईजी, एसपी सहित तत्कालीन जांच अधिकारी को कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने दो सप्ताह में जवाब पेश करने का आदेश जारी किया है. साथ ही उनसे संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराने का आदेश दिया है

क्या है पूरा मामला: 7 सालों तक बिना ड्यूटी किये वेतन निकालने का पूरा मामला सिविल लाइन थाना और पुलिस अधीक्षक कार्यालय का है. आरक्षक जगमोहन पोर्ते साल 2013 में सिविल लाइन थाना में आरक्षक पद पर पदस्थ था. इसके बाद वह कहीं गायब हो गया. बावजूद इसके आरक्षक जगमोहन पोर्त का वेतन उसके खाते में जमा होता रहा. यह सिलसिला साल 2021 तक चला और वह वेतन निकलता रहा. मामले की जानकारी लगने के बाद प्रारम्भिक तौर पर पुलिस कप्तान ने तत्काल जांच का आदेश दिया. साथ ही वेतन के रूप में किए करीब 32 लाख रुपये के घोटाले का पता लगाने को कहा. प्रारम्भिक जांच के बाद पुलिस कप्तान पारूल माथुर ने वेतन शाखा के चार लोगों के खिलाफ विभागीय जांच का आदेश दिया. तत्कालीन एडिश्नल एसपी रोहित झा समेत आईसीयूडब्लू डीएसपी ने तत्कालीन वेतन शाखा प्रभारी भागीरथी महार, सुधीर श्रीवास्तव, आसुतोष कौशिक और सुरेन्द्र पटेल को जांच के लिए बुलाया. चारों ने जांच टीम से नोटिस मिलने के बाद पुलिस कप्तान को लिखित आवेदन दिया. उन्होंने ऐसे सभी दस्तावेज दिए जाने को कहा, जिस आधार पर उन्हें दोषी ठहराया गया है, बावजूद इसके पुलिस अधीक्षक कार्यालय से उन्हें कोई दस्तावेज नहीं दिया गया.

ये भी पढ़ें: दो सरकारी संस्थाओं में नौकरी करने वाले को झटका, हाईकोर्ट ने जमानत याचिका की खारिज

वेतन शाखा के कर्मचारी ने हाई कोर्ट में लगाई याचिका:वेतन शाखा प्रभारी भागीरथी महार, सुधीर श्रीवास्तव, आसुतोष कौशिक और सुरेन्द्र पटेल के खिलाफ चल रहे विभागीय जांच के खिलाफ सुधीर श्रीवास्तव ने हाई कोर्ट वकील पवन श्रीवास्तव के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका लगाई. याचिका में कहा गया कि वेतन शाखा को किसी का भी वेतन जारी करने और रोकने का अधिकार नहीं होता. इसका निर्णय एसपी करते हैं कि किसका वेतन रोक जाए और किसे दिया जाए. इसके अलावा स्थापना शाखा में आरक्षक के गैर हाजिर रहने या छुट्टी की न जानकारी आई और न आवेदन. याचिका कर्ताओं ने पूरे मामले में उन्हें दोषी ठहराने के सभी दस्तावेजो की मांग की है. इस मामले में कोर्ट ने 2 सप्ताह का समय दिया है और जवाब के साथ सभी दस्तावेज उपलब्ध करने का आदेश जारी किया है.

प्राम्भिक जांच शुरू होने के बाद आरक्षक की हो गई थी मौत: पूरे मामले में जानकारी लगने के बाद एसएसपी ने विभागीय जांच के आदेश दिए. जांच शुरू हुई और आरक्षक जगमोहन पोर्ते को प्रारंभिक तौर पर बुलाकर बयान दर्ज किया. बयान में जगमोहन पोर्ते ने बताया कि उसकी तबीयत खराब थी. इसलिए वह घर चला गया और वेतन के साथ सभी देयक उसके खाते में आ रहा था. इसलिए वह उसका उपयोग कर रहा था. प्रारंभिक जांच में बयान देने के कुछ दिनों बाद ही आरक्षक जगमोहन पोर्ते की मौत हो गई.

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक आरक्षक के बिना ड्यूटी के सात साल तक वेतन लेने के मामले में राज्य के आला पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी किया है. पुलिस की जांच में खुलासा हुआ कि आरक्षक को सात साल में 32 लाख रुपये का वेतन जारी हुआ. जबकि वह सात साल तक ड्यूटी से गायब रहा. बाद में उसकी मौत हो गई.Chhattisgarh High Court notice to police officers

बिलासपुर पुलिस ने की थी जांच: बिना ड्यूटी के वेतन लेने के इस मामले का जैसे ही खुलासा हुआ. एसएसपी बिलासपुर ने इस केस में विभागीय जांच शुरू की. जांच में एसपी ऑफिस के वेतन शाखा के तीन कर्मचारियों की संलिप्तता पर जांच शुरू हुई. बिना सुनवाई के मौका दिए विभागीय जांच शुरू किए. जिसके खिलाफ सुधीर श्रीवास्तव ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई. याचिका पर सुनवाई करते हुए गृह सचिव, डीजीपी, आईजी, एसपी सहित तत्कालीन जांच अधिकारी को कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने दो सप्ताह में जवाब पेश करने का आदेश जारी किया है. साथ ही उनसे संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराने का आदेश दिया है

क्या है पूरा मामला: 7 सालों तक बिना ड्यूटी किये वेतन निकालने का पूरा मामला सिविल लाइन थाना और पुलिस अधीक्षक कार्यालय का है. आरक्षक जगमोहन पोर्ते साल 2013 में सिविल लाइन थाना में आरक्षक पद पर पदस्थ था. इसके बाद वह कहीं गायब हो गया. बावजूद इसके आरक्षक जगमोहन पोर्त का वेतन उसके खाते में जमा होता रहा. यह सिलसिला साल 2021 तक चला और वह वेतन निकलता रहा. मामले की जानकारी लगने के बाद प्रारम्भिक तौर पर पुलिस कप्तान ने तत्काल जांच का आदेश दिया. साथ ही वेतन के रूप में किए करीब 32 लाख रुपये के घोटाले का पता लगाने को कहा. प्रारम्भिक जांच के बाद पुलिस कप्तान पारूल माथुर ने वेतन शाखा के चार लोगों के खिलाफ विभागीय जांच का आदेश दिया. तत्कालीन एडिश्नल एसपी रोहित झा समेत आईसीयूडब्लू डीएसपी ने तत्कालीन वेतन शाखा प्रभारी भागीरथी महार, सुधीर श्रीवास्तव, आसुतोष कौशिक और सुरेन्द्र पटेल को जांच के लिए बुलाया. चारों ने जांच टीम से नोटिस मिलने के बाद पुलिस कप्तान को लिखित आवेदन दिया. उन्होंने ऐसे सभी दस्तावेज दिए जाने को कहा, जिस आधार पर उन्हें दोषी ठहराया गया है, बावजूद इसके पुलिस अधीक्षक कार्यालय से उन्हें कोई दस्तावेज नहीं दिया गया.

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वेतन शाखा के कर्मचारी ने हाई कोर्ट में लगाई याचिका:वेतन शाखा प्रभारी भागीरथी महार, सुधीर श्रीवास्तव, आसुतोष कौशिक और सुरेन्द्र पटेल के खिलाफ चल रहे विभागीय जांच के खिलाफ सुधीर श्रीवास्तव ने हाई कोर्ट वकील पवन श्रीवास्तव के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका लगाई. याचिका में कहा गया कि वेतन शाखा को किसी का भी वेतन जारी करने और रोकने का अधिकार नहीं होता. इसका निर्णय एसपी करते हैं कि किसका वेतन रोक जाए और किसे दिया जाए. इसके अलावा स्थापना शाखा में आरक्षक के गैर हाजिर रहने या छुट्टी की न जानकारी आई और न आवेदन. याचिका कर्ताओं ने पूरे मामले में उन्हें दोषी ठहराने के सभी दस्तावेजो की मांग की है. इस मामले में कोर्ट ने 2 सप्ताह का समय दिया है और जवाब के साथ सभी दस्तावेज उपलब्ध करने का आदेश जारी किया है.

प्राम्भिक जांच शुरू होने के बाद आरक्षक की हो गई थी मौत: पूरे मामले में जानकारी लगने के बाद एसएसपी ने विभागीय जांच के आदेश दिए. जांच शुरू हुई और आरक्षक जगमोहन पोर्ते को प्रारंभिक तौर पर बुलाकर बयान दर्ज किया. बयान में जगमोहन पोर्ते ने बताया कि उसकी तबीयत खराब थी. इसलिए वह घर चला गया और वेतन के साथ सभी देयक उसके खाते में आ रहा था. इसलिए वह उसका उपयोग कर रहा था. प्रारंभिक जांच में बयान देने के कुछ दिनों बाद ही आरक्षक जगमोहन पोर्ते की मौत हो गई.

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