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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: पुरुष सहयोगियों के साथ काम करने पर पवित्रता भंग होने की सोच घृणित मानसिकता - पत्नी जींस टॉप पहनकर ऑफिस जाती है

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बिलासपुर ने एक फैमिली विवाद पर बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने फैसला देते हुए यह कहा है कि किसी भी महिला के बाहर काम करने और सहयोगियों के साथ काम के सिलसिले में बाहर जाने से महिला का चरित्र तय (Working in office with men not determine character of woman ) नहीं किया जा सकता है. इस तरह किसी महिला के चरित्र पर आरोप लगाना गलत है.

Working in office with men not determine character of woman
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
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Published : Apr 6, 2022, 8:27 PM IST

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बिलासपुर में एक शख्स ने अपनी पत्नी के खिलाफ याचिका दायर कर बच्चे को अपने पास सौंपने की मांग की थी. पति ने याचिका दायर कर कोर्ट में यह दलील दी कि घर से बाहर जाकर काम करने से महिला की पवित्रता भंग हो जाती है. हाईकोर्ट में पति ने कहा कि उसकी पत्नी जींस टॉप पहनकर ऑफिस जाती है. जिससे उसके बच्चे पर बुरा असर पड़ता है. इसलिए बच्चे की कस्टडी उसे सौंपी जाए. कोर्ट ने पति की इस दलील को खारिज कर दिया और इसे घृणित मानसिकता करार दिया है.

महिला के हक में कोर्ट ने सुनाया फैसला: पति-पत्नी के तलाक के बाद बच्चे की कस्टडी को लेकर बिलासपुर हाइकोर्ट के जस्टिस ने टिप्पणी की है. जस्टिस ने कहा कि जींस-टॉप पहनने से, पुरुष सहयोगी के साथ ऑफिस में काम करने या उनके साथ काम के सिलसिले में कहीं बाहर जाने से किसी भी महिला का चरित्र तय नहीं (Working in office with men not determine character of woman ) किया जा सकता है. हाइकोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी और संजय अग्रवाल की बेंच ने ये भी कहा कि महिलाओं के प्रति ऐसी सोच रखने से उनके अधिकार और आजादी की लड़ाई और भी लंबी हो जाएगी.

कमांडेंट इरफान खान को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट से झटका, मां फरहा खान के साथ रहेंगे दोनों बच्चे

पति के तर्क को कोर्ट ने किया खारिज: महासमुंद में रहने वाले दंपति, शादी के 2 साल बाद किसी बात को लेकर अलग हो गए. दोनों ने अपनी मर्जी से तलाक भी ले लिया. तलाक के बाद से बेटा मां के पास रहने लगा. पांच साल बाद पिता ने अपने बेटे की कस्टडी को लेकर फैमिली कोर्ट में अर्जी लगाई और तर्क दिया कि बच्चे की मां जींस-टॉप पहन कर ऑफिस जाती है. वहां पुरुष सहयोगी के साथ काम करती है .उनके साथ बाहर जाती है. उसने अपनी पवित्रता भी खो दी है. इसकी वजह से बेटे पर गलत असर पड़ रहा है. हालांकि फैमली कोर्ट ने भी इस तर्क को खारिज करते हुए मां के हक में फैसला दिया.

जिसके बाद पिता ने हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी. हाइकोर्ट ने इस मामले को एक सिरे से नकारते हुए कहा कि ऐसी विचारधारा रखने वाले समाज के कुछ लोगों के प्रमाण पत्र से महिला का चरित्र तय नहीं होता. फिलहाल बेटे की कस्टडी को लेकर माता-पिता दोनों को समान रूप से मिलने जुलने और प्यार देने का अधिकार दिया गया है. बेटा मॉ के पास रहेगा और तकनीकी माध्यमों से पिता से भी लगातार संपर्क में रह सकता है.

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बिलासपुर में एक शख्स ने अपनी पत्नी के खिलाफ याचिका दायर कर बच्चे को अपने पास सौंपने की मांग की थी. पति ने याचिका दायर कर कोर्ट में यह दलील दी कि घर से बाहर जाकर काम करने से महिला की पवित्रता भंग हो जाती है. हाईकोर्ट में पति ने कहा कि उसकी पत्नी जींस टॉप पहनकर ऑफिस जाती है. जिससे उसके बच्चे पर बुरा असर पड़ता है. इसलिए बच्चे की कस्टडी उसे सौंपी जाए. कोर्ट ने पति की इस दलील को खारिज कर दिया और इसे घृणित मानसिकता करार दिया है.

महिला के हक में कोर्ट ने सुनाया फैसला: पति-पत्नी के तलाक के बाद बच्चे की कस्टडी को लेकर बिलासपुर हाइकोर्ट के जस्टिस ने टिप्पणी की है. जस्टिस ने कहा कि जींस-टॉप पहनने से, पुरुष सहयोगी के साथ ऑफिस में काम करने या उनके साथ काम के सिलसिले में कहीं बाहर जाने से किसी भी महिला का चरित्र तय नहीं (Working in office with men not determine character of woman ) किया जा सकता है. हाइकोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी और संजय अग्रवाल की बेंच ने ये भी कहा कि महिलाओं के प्रति ऐसी सोच रखने से उनके अधिकार और आजादी की लड़ाई और भी लंबी हो जाएगी.

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पति के तर्क को कोर्ट ने किया खारिज: महासमुंद में रहने वाले दंपति, शादी के 2 साल बाद किसी बात को लेकर अलग हो गए. दोनों ने अपनी मर्जी से तलाक भी ले लिया. तलाक के बाद से बेटा मां के पास रहने लगा. पांच साल बाद पिता ने अपने बेटे की कस्टडी को लेकर फैमिली कोर्ट में अर्जी लगाई और तर्क दिया कि बच्चे की मां जींस-टॉप पहन कर ऑफिस जाती है. वहां पुरुष सहयोगी के साथ काम करती है .उनके साथ बाहर जाती है. उसने अपनी पवित्रता भी खो दी है. इसकी वजह से बेटे पर गलत असर पड़ रहा है. हालांकि फैमली कोर्ट ने भी इस तर्क को खारिज करते हुए मां के हक में फैसला दिया.

जिसके बाद पिता ने हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी. हाइकोर्ट ने इस मामले को एक सिरे से नकारते हुए कहा कि ऐसी विचारधारा रखने वाले समाज के कुछ लोगों के प्रमाण पत्र से महिला का चरित्र तय नहीं होता. फिलहाल बेटे की कस्टडी को लेकर माता-पिता दोनों को समान रूप से मिलने जुलने और प्यार देने का अधिकार दिया गया है. बेटा मॉ के पास रहेगा और तकनीकी माध्यमों से पिता से भी लगातार संपर्क में रह सकता है.

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