बिलासपुर: आम आदमी पार्टी ने छत्तीसगढ़ चुनाव में किस्मत आजमाया. चुनाव मैदान में 54 प्रत्याशियों को उतारा, लेकिन एक भी प्रत्याशी जीत नहीं सके. इस प्रदर्शन को देख राजनीति के पंडित कहते हैं कि, छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी असरदार नहीं रही.
मुफ्त वाला फॉर्मूला फेल: आम आदमी पार्टी जिस भी राज्य में चुनावी समर में कूदती है, वहां पर दिल्ली की तरफ मुफ्त वाला फॉर्मूला जरूर अप्लाई करती है. छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं रहा. यहां भी अरविंद केजरीवाल ने जनता से सत्ता में आने पर मुफ्त बिजली, महिलाओं के लिए मासिक सम्मान राशि और बेरोजगारों को हर महीने तीन हजार रुपये देने का वादा किया. छत्तीसगढ़ की जनता से इसी तरह के दस वादे आम आदमी पार्टी की ओर से किया गया था.
आप की तो जमानत जब्त हो गई: आम आदमी पार्टी की दिल्ली और पंजाब में सरकार है. पार्टी यहां भी उसी ख्वाब से उतरी, लेकिन एक भी सीट नसीब नहीं हुआ. आप के उम्मीदवार जमानत भी नहीं बचा पाये. ऐसे में ये सवाल उठ रहे हैं कि, क्या पार्टी ने प्रत्याशियों के चयन में गलती की. कहीं ऐसा तो नहीं कि, प्रभाव रखने वाले नेताओं को छोड़ दूसरे को टिकट देने से पार्टी की हवा निकल गई.
"छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय पार्टी के रूप में आम आदमी पार्टी अपनी छवि नहीं बना पाई है. उन्हें राष्ट्रीय पार्टियों को टक्कर देने के लिए अभी और मेहनत करना पड़ेगा. छत्तीसगढ़ की आम जनता क्षेत्रीय पार्टियों के मुकाबले भाजपा, कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों को ज्यादा महत्व देती है. यही कारण है कि विधानसभा 2023 के चुनाव में दूसरी क्षेत्रीय पार्टी भाजपा और कांग्रेस के सामने टिक नहीं पायी. क्षेत्रीय का इतना अस्तित्व भी नहीं रहा कि, वह एक सीट ला सके या फिर किसी सीट पर इतना प्रभाव की उनकी वजह से इन राष्ट्रीय पार्टियों के प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा होगा. क्षेत्रीय पार्टियों में जहां बसपा और छजका का प्रदर्शन खराब रहा तो आम आदमी पार्टी को अपने प्रदर्शन पर विचार करने की आवश्यकता है." दिलीप यादव, पॉलिटिकल एक्सपर्ट
आप की चूक प्रत्याशी चयन में हुई: राजनीति के जानकार मानते हैं कि, छत्तीसगढ़ में पार्टी ने उम्मीदवारों का चयन सही नहीं किया.
"छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी या फिर अन्य क्षेत्रीय पार्टी चुनाव के समय ही सर उठाती है, और बाकी के समय वे गायब रहती है. ऐसे समय में पार्टी जनता के बीच पहुंचती है, जब चुनाव होता है और आम जनता भी इन पार्टियों को वो महत्व नहीं देती, जो पूरे 5 साल सक्रिय रहने वाली पार्टियों को देती है. राजनीति में पहले शुरुआती दौर में पार्टियों को अपना प्रदर्शन ऐसा रखना चाहिए कि, चुनाव के दौरान आम जनता खुद उन्हें विकल्प के रूप में चुन सके, लेकिन यह पार्टियां चुनाव के समय ही सामने आती है ऐसे में जनता उन्हें नकार देती है. आम आदमी पार्टी के साथ भी ऐसा ही हुआ." विनोद सिंह ठाकुर, पॉलिटिकल एक्सपर्ट
आप का वोट प्रतिशत क्या रहा: नौ निर्वाचन क्षेत्रों में आप के उम्मीदवारों को नोटा से कम वोट मिले. छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दूसरी बार किस्मत आजमाई. इस बार के चुनाव में इसके उम्मीदवारों को राज्य में पड़े कुल वोटों का 0.93 प्रतिशत वोट मिले. 2018 में, पार्टी ने राज्य के 90 निर्वाचन क्षेत्रों में से 85 पर उम्मीदवार उतारे थे और उन सभी की जमानत जब्त हो गई थी. तब पार्टी का वोट शेयर 0.87 फीसदी था. इस बार के चुनाव में केवल पांच प्रत्याशी ही 5,000 से अधिक वोट हासिल करने में सफल रहे. आप की राज्य इकाई के प्रमुख कोमल हुपेंडी 15,255 वोट हासिल कर तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें भानुप्रतापपुर सीट से लगातार दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा. 5,000 से अधिक वोट पाने वाले अन्य चार उम्मीदवार संतराम सलाम अंतागढ़ , बालू राम भवानी दंतेवाड़ा, खड़गराज सिंह कवर्धा और जसवीर सिंह बिल्हा से प्रत्याशी थे. चित्रकोट, जगदलपुर, बस्तर, केशकाल, साजा, आरंग, रामानुजगंज, लुंड्रा और कुनकुरी में आप उम्मीदवारों को नोटा से भी कम वोट मिले.
राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ में प्रदर्शन: राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में आप के प्रदर्शन के बारे में अगर बात करें तो आंकड़े बड़े ही दिलचस्प हैं. तीनों राज्यों में आप के 204 कैंडिडेट मैदान में थे. जिसमें से 201 प्रत्याशी के जमानत जब्त हो गए.
राज्य | कैंडिडेट | जमानत जब्त | वोट मिले | नोटा को वोट मिले |
छत्तीसगढ़ | 54 | 54 | 144710 | 197678 |
मध्यप्रदेश | 65 | 63 | 233458 | 427710 |
राजस्थान | 85 | 84 | 148709 | 382066 |
पिछले विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने छत्तीसगढ़ में अपने प्रत्याशी उतारे थे. चुनाव के बाद पार्टी यहां से छू मंतर हो गई. लिहाजा इस बार जनता ने आप को मैदान से छू मंतर कर दिया.