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जंगली सूअर का शिकार: गिरफ्तार आरोपियों ने वन विभाग पर लगाए रिश्वत लेने के आरोप

मरवाही वन मंडल परिक्षेत्र में सुअर का शिकार करने के आरोप में वन विभाग ने 23 लोगों को गिरफ्तार किया था. आरोपियों ने वन विभाग के अफसरों पर एक लाख रुपए लेकर केस को रफा-दफा करने का आरोप लगाया है .

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Published : Jun 17, 2020, 11:54 AM IST

forest department
वन मंडल कार्यालय

बिलासपुर : मरवाही वन मंडल के खोडरी वन परिक्षेत्र में जंगली सूअर के शिकार के केस में कार्रवाई करते हुए वन विभाग की टीम ने 23 आरोपियों को गिरफ्तार किया था. इस केस में आरोपियों का कहना है कि वन अमले ने उच्च स्तरीय साठगांठ कर साक्ष्य को छिपाते हुए उनका आर्थिक शोषण किया है.

30 अप्रैल को खोडरी में जाल बिछाकर जंगली सुअर का शिकार कर उसका मास 23 लोगों में बांटे जाने का मामला सामने आया था. शिकायत मिलने के बाद वन विभाग ने 23 आरोपियों को गिरफ्तार कर खोडरी वन परीक्षेत्र कार्यालय ले गया था और कुछ समय बाद मामले को रफा-दफा कर दिया गया.

बीट प्रभारी पर रिश्वत मांगने का आरोप

आरोपियों ने मीडिया को बताया कि, वन विभाग उन्हें जबरदस्ती पकड़ कर ले गया और उन्हें छोड़ने के एवज में बीट प्रभारी पन्ना लाल जांगड़े ने उनसे 1 लाख रुपए की मांग की जिसके बाद आरोपियों ने 4500 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से चंदा जमा कर पन्ना लाल जांगड़े को दिया जिसके बाद सभी को छोड़ दिया गया.

केस को रफा-दफा करने का आरोप

घटना के 45 दिन बाद भी परिक्षेत्र में हुए जंगली सूअर के शिकार के संबंध में कोई जानकारी आज तक नहीं है. हमारे पास घटना दिनांक को काटा गया पी ओ आर, रोजनामचा , जब्ती पत्रक , नजरी नक्शा, कार्रवाई का तख्ता और बीट गार्ड का हस्त लिखित बयान मौजूद है, साथ ही जब्ती पत्रक में शिकार में इस्तेमाल तार, जिससे फंदा बनाया गया, मांस के टुकड़े और तीन कुल्हाड़ीयों के जब्त होने का भी जिक्र है.

पढ़े- रायगढ़: दो लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया, करंट लगाकर हाथी को मारने का आरोप

मीडिया की पड़ताल की खबर मिलते ही वनकर्मियों ने आनन फानन में केस की जांच शुरू कर दी. वहीं इस केस में उप वनमंडल अधिकारी का कहना है कि आरोपी के पकड़े जाने के तुरंत बाद उसे सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत करने का नियम है. बीट गार्ड की ओर से आरोपियों को मौके से छोड़ देना गंभीर अपराध है.

पढ़े- हाथियों का कब्रगाह बना छत्तीसगढ़, एक महीने में 6 की मौत

वन अपराध घटित होने की दशा में 24 घंटे के भीतर इसकी सूचना परीक्षेत्र कार्यालय से वन मंडल अधिकारी कार्यालय तक दी जानी जरूरी है, साथ ही 48 घंटे के भीतर इसकी सूचना पीसीसीएफ और सीसीएफ स्तर के अधिकारियों को ऑनलाइन भेजने का नियम है. पर उप वन मंडल अधिकारी के बयान से स्पष्ट है कि इतने गंभीर अपराध के घटित होने के बावजूद पूरा वन मंडल मामले पर चुप्पी साधे बैठा हुआ है और उसे दबाने के प्रयास में लगा रहा हुआ है.

बिलासपुर : मरवाही वन मंडल के खोडरी वन परिक्षेत्र में जंगली सूअर के शिकार के केस में कार्रवाई करते हुए वन विभाग की टीम ने 23 आरोपियों को गिरफ्तार किया था. इस केस में आरोपियों का कहना है कि वन अमले ने उच्च स्तरीय साठगांठ कर साक्ष्य को छिपाते हुए उनका आर्थिक शोषण किया है.

30 अप्रैल को खोडरी में जाल बिछाकर जंगली सुअर का शिकार कर उसका मास 23 लोगों में बांटे जाने का मामला सामने आया था. शिकायत मिलने के बाद वन विभाग ने 23 आरोपियों को गिरफ्तार कर खोडरी वन परीक्षेत्र कार्यालय ले गया था और कुछ समय बाद मामले को रफा-दफा कर दिया गया.

बीट प्रभारी पर रिश्वत मांगने का आरोप

आरोपियों ने मीडिया को बताया कि, वन विभाग उन्हें जबरदस्ती पकड़ कर ले गया और उन्हें छोड़ने के एवज में बीट प्रभारी पन्ना लाल जांगड़े ने उनसे 1 लाख रुपए की मांग की जिसके बाद आरोपियों ने 4500 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से चंदा जमा कर पन्ना लाल जांगड़े को दिया जिसके बाद सभी को छोड़ दिया गया.

केस को रफा-दफा करने का आरोप

घटना के 45 दिन बाद भी परिक्षेत्र में हुए जंगली सूअर के शिकार के संबंध में कोई जानकारी आज तक नहीं है. हमारे पास घटना दिनांक को काटा गया पी ओ आर, रोजनामचा , जब्ती पत्रक , नजरी नक्शा, कार्रवाई का तख्ता और बीट गार्ड का हस्त लिखित बयान मौजूद है, साथ ही जब्ती पत्रक में शिकार में इस्तेमाल तार, जिससे फंदा बनाया गया, मांस के टुकड़े और तीन कुल्हाड़ीयों के जब्त होने का भी जिक्र है.

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मीडिया की पड़ताल की खबर मिलते ही वनकर्मियों ने आनन फानन में केस की जांच शुरू कर दी. वहीं इस केस में उप वनमंडल अधिकारी का कहना है कि आरोपी के पकड़े जाने के तुरंत बाद उसे सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत करने का नियम है. बीट गार्ड की ओर से आरोपियों को मौके से छोड़ देना गंभीर अपराध है.

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वन अपराध घटित होने की दशा में 24 घंटे के भीतर इसकी सूचना परीक्षेत्र कार्यालय से वन मंडल अधिकारी कार्यालय तक दी जानी जरूरी है, साथ ही 48 घंटे के भीतर इसकी सूचना पीसीसीएफ और सीसीएफ स्तर के अधिकारियों को ऑनलाइन भेजने का नियम है. पर उप वन मंडल अधिकारी के बयान से स्पष्ट है कि इतने गंभीर अपराध के घटित होने के बावजूद पूरा वन मंडल मामले पर चुप्पी साधे बैठा हुआ है और उसे दबाने के प्रयास में लगा रहा हुआ है.

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