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बिलासपुर सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने छात्रों को धान से राखी बनाने की दी ट्रेनिंग

गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय प्रबंधन ने स्वावलंबी छत्तीसगढ़ के प्रयास और मार्गदर्शन में छात्रों को स्वावलंबी बनाने के लिए खास ट्रेनिंग दी है. इसके तहत अब धान और देसी उत्पाद से राखियां बनाई जा रही है.

Bilaspur Central University
बिलासपुर सेंट्रल यूनिवर्सिटी
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Published : Aug 10, 2022, 10:15 PM IST

Updated : Aug 11, 2022, 3:48 PM IST

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ का एकमात्र शासकीय गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय ऐसी यूनिवर्सिटी है. जहां छात्र-छात्राओं को पढ़ाई के साथ अलग अलग तरह की स्किल सिखाई (Guru Ghasidas Central University bilaspur) जा रही है. छात्र छात्राओं को यूनिवर्सिटी द्वारा समय समय पर डिमांड में चलने वाले सामानों को बनाना सिखाया जा रहा है. इस कार्य के पीछे यूनिवर्सिटी प्रबंधन का उद्देश्य है कि छात्र छात्राएं पढ़ाई के साथ ही पार्ट टाइम जॉब और खुद का कुछ काम कर सकें. ताकि वे पढ़ाई में होने वाले खर्च को स्वयं के कमाई के पैसों से वहन कर सकें और अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें. गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी में स्वावलंबी छत्तीसगढ़ के अभिनव प्रयास और मार्गदर्शन में छात्रों को स्वावलंबी बनाया जा रहा है.

बिलासपुर सेंट्रल यूनिवर्सिटी
चावल और धान से बनाई जा रही राखियां: राखी पर्व को मद्देनजर रखते हुए पिछले 10 दिनों से छात्र छात्राओं को यूनिवर्सिटी प्रबंधन राखी बनाने की ट्रेनिंग दे रही थी. उन्हें खास तौर पर धान और चावल से बनी राखियां बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा था. इसका कारण यह भी है कि धान और चावल से बनी राखियां इको फ्रेंडली रहती हैं. जिससे पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए पर्व में इस्तेमाल होने वाले रखियों की बिक्री की जा सके. इससे मिलने वाले पैसों से छात्र छात्राओं को अध्यापन पूरा करने में मदद मिलेगा.

यह भी पढ़ें: रक्षाबंधन पर भाई से नहीं मिल पाएंगी बहनें, रेलवे ने 68 यात्री ट्रेनों को किया रद्द


छत्तीसगढ़ को कहा जाता है धान का कटोरा: पूरे देश में छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. धान से ही इसकी पहचान पूरे देश में है. यहां पूरे देश में सबसे ज्यादा धान की उपज होना माना जाता है. यही कारण है कि यहां के लोग दाल और चावल को भगवान का दिया हुआ आशीर्वाद मानते हैं. धनवंतरी देवी पूजा के साथ ही यहां धान की खेती अत्यधिक मात्रा में की जाती है. धान के कटोरे की पहचान बनाए रखने और इसकी ख्याति को बरकरार रखने के लिए गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने स्वावलंबी छत्तीसगढ़ कार्यक्रम की शुरूआत की है. जिसके माध्यम से स्टूडेंट्स का स्किल डेवलपमेंट करने धान और चावल से राखियां तैयार करने ट्रेनिंग दी जा रही है.

छात्रों का स्किल डेवलपमेंट है उद्देश्य: इन राखियों को बनाने के कई उद्देश्य हैं. एक तो यूनिवर्सिटी अपने छात्रों का स्किल डेवलप करना चाहती है, वहीं धान के कटोरे की पहचान पूरे देश में करवाना चाहती है. प्रदेश में चावल यहां का प्रमुख भोजन है. इसके अलावा छात्रों ने धान और चावल की हजारों राखियां बनाई है. जिसकी बिक्री हांथो हांथ हो रही है. यूनिवर्सिटी स्वावलंबी छत्तीसगढ़ को बढ़ावा देने के लिए कई कार्य कर रही है.

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ का एकमात्र शासकीय गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय ऐसी यूनिवर्सिटी है. जहां छात्र-छात्राओं को पढ़ाई के साथ अलग अलग तरह की स्किल सिखाई (Guru Ghasidas Central University bilaspur) जा रही है. छात्र छात्राओं को यूनिवर्सिटी द्वारा समय समय पर डिमांड में चलने वाले सामानों को बनाना सिखाया जा रहा है. इस कार्य के पीछे यूनिवर्सिटी प्रबंधन का उद्देश्य है कि छात्र छात्राएं पढ़ाई के साथ ही पार्ट टाइम जॉब और खुद का कुछ काम कर सकें. ताकि वे पढ़ाई में होने वाले खर्च को स्वयं के कमाई के पैसों से वहन कर सकें और अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें. गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी में स्वावलंबी छत्तीसगढ़ के अभिनव प्रयास और मार्गदर्शन में छात्रों को स्वावलंबी बनाया जा रहा है.

बिलासपुर सेंट्रल यूनिवर्सिटी
चावल और धान से बनाई जा रही राखियां: राखी पर्व को मद्देनजर रखते हुए पिछले 10 दिनों से छात्र छात्राओं को यूनिवर्सिटी प्रबंधन राखी बनाने की ट्रेनिंग दे रही थी. उन्हें खास तौर पर धान और चावल से बनी राखियां बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा था. इसका कारण यह भी है कि धान और चावल से बनी राखियां इको फ्रेंडली रहती हैं. जिससे पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए पर्व में इस्तेमाल होने वाले रखियों की बिक्री की जा सके. इससे मिलने वाले पैसों से छात्र छात्राओं को अध्यापन पूरा करने में मदद मिलेगा.

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छत्तीसगढ़ को कहा जाता है धान का कटोरा: पूरे देश में छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. धान से ही इसकी पहचान पूरे देश में है. यहां पूरे देश में सबसे ज्यादा धान की उपज होना माना जाता है. यही कारण है कि यहां के लोग दाल और चावल को भगवान का दिया हुआ आशीर्वाद मानते हैं. धनवंतरी देवी पूजा के साथ ही यहां धान की खेती अत्यधिक मात्रा में की जाती है. धान के कटोरे की पहचान बनाए रखने और इसकी ख्याति को बरकरार रखने के लिए गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने स्वावलंबी छत्तीसगढ़ कार्यक्रम की शुरूआत की है. जिसके माध्यम से स्टूडेंट्स का स्किल डेवलपमेंट करने धान और चावल से राखियां तैयार करने ट्रेनिंग दी जा रही है.

छात्रों का स्किल डेवलपमेंट है उद्देश्य: इन राखियों को बनाने के कई उद्देश्य हैं. एक तो यूनिवर्सिटी अपने छात्रों का स्किल डेवलप करना चाहती है, वहीं धान के कटोरे की पहचान पूरे देश में करवाना चाहती है. प्रदेश में चावल यहां का प्रमुख भोजन है. इसके अलावा छात्रों ने धान और चावल की हजारों राखियां बनाई है. जिसकी बिक्री हांथो हांथ हो रही है. यूनिवर्सिटी स्वावलंबी छत्तीसगढ़ को बढ़ावा देने के लिए कई कार्य कर रही है.

Last Updated : Aug 11, 2022, 3:48 PM IST
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