बिलासपुर: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक देश के विभिन्न राज्यों में युवक-युवतियों की पसंद को दरकिनार कर जबरन विवाह कराए जाते हैं. पहले पारंपरिक समाज में दूल्हा या दुल्हन परिवार के बुजुर्गों के शादी तय करने पर बगावत करने की हिम्मत नहीं रखते हैं. बार-बार एक बात सबके जेहन में जरूर आती है, कि सुखद वैवाहिक जीवन के लिए विवाह से पहले युवक-युवतियों की पसंद कितनी मायने रखती है.
वरिष्ठ अधिवक्ता निरुपमा वाजपेयी के मुताबिक उनके पास आए दिन फैमिली से जुड़े मामले आते रहते हैं. शादी के बाद तलाक की चाहत के जो केस आते हैं, उसमें अरेंज मैरिज करनेवालों की संख्या ज्यादा होती है. सामान्य तौर पर यह धारणा है कि प्रेम विवाह के मामले ज्यादा टिक नहीं पाते लेकिन अब यह कहा जा सकता है कि तथ्यात्मक तौर पर ऐसा सोचना गलत है.
'पैरेंट्स के दबाव में होती हैं अरेंज मैरिज'
निरुपमा वाजपेयी का यह भी कहना है कि अरेंज्ड शादियां अभिभावकों के दवाब में होती हैं. शादी के बाद दबाव में की गई यही शादी पति-पत्नी केअलग होने की बड़ी वजह बनती है.
जीवनसाथी चयन का अधिकार क्यो नहीं?
जब हमें एक तय समय के बाद वोट देने का अधिकार है तो जीवनसाथी चयन का अधिकार क्यों नहीं हो सकता ? संवैधानिक तौर पर धर्म,जात-पात के आधार पर चयन की बाध्यता नहीं है. इन चीजों के पीछे सामाजिक ताने-बाने आड़े आते हैं. कई बार ऐसे मामलों के कारण पारिवारिक कलह और हिंसा को भी बढ़ावा मिलता है और इसका प्रभाव कार्यक्षमता पर भी पड़ता है.
'अपना साथी चुनने की हो स्वतंत्रता'
वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता सत्यभामा अवस्थी का कहना है कि हमारे समाज में जाति आधारित पंचायतें हैं. यह सबसे बड़ी दिक्कत है. ज्यादातर शादियां बेमेल हो जाती हैं. यह शादियां इच्छा के विपरीत होती है. बच्चे मां-बाप से इमोशनली जुड़े रहते हैं. वो कई बार इमोशनल ब्लैकमेल के शिकार भी होते हैं.
आज एक नई बात यह है कि कमाने वाली लड़कियां भी स्वभाविक रूप से चाहतीं हैं कि वो अपने पैरेंट्स का आर्थिक खयाल रखें. यह दाम्पत्य जीवन में तनाव का कारण भी बनता है. इसके अलावा शादी से पहले अफेयर के मामलों की वजह से भी शादीशुदा जीवन प्रभावित होता है. सत्यभामा अवस्थी बतातीं हैं कि जरूरत है कि तलाक के मामलों का और ज्यादा सरलीकरण हो. समाज के भीतर एक उदार भाव आए. शादी से पहले युवक-युवतियों को उनके चॉइस की स्वतंत्रता बहुत जरूरी है.
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'बुजुर्गों का अनुभव मायने रखता है'
वरिष्ठ सामाजिक जानकार डॉ. विनय पाठक कुछ अलग सोच रखते हैं. उनका कहना है कि यह जरूरी है कि योग्य युवक-युवतियों को उन्हें चॉइस का अधिकार मिले लेकिन यह भी जरूरी है कि उनमें एक दूसरे को परखने की क्षमता हो. परख की क्षमता कम होने की स्थिति में घर के बड़े बुजुर्गों का अनुभव बहुत मायने रखता है. सामूहिक स्वीकृति से संपन्न हुए विवाह के बाद दाम्पत्य जीवन में होने वाली छोटी-मोटी परेशानियों को भी सामूहिकता की भावना के साथ निपटाया जा सकता है. पति-पत्नी की बीच अहम की टकराहट बिखराव का मुख्य कारण है. विवाह को एक सामंजस्य के रूप में लेना चाहिए.
'बेमेल शादियों से होता है तनाव'
मनोचिकित्सक डॉ. आशुतोष तिवारी का कहना है कि अक्सर जो तनाव के मामले उनके पास आते हैं, वो बेमेल शादियों की वजह से होता है. शादी से पहले दोनों परिवारों और युवक-युवतियों को एक दूसरे की वर्तमान स्थितियों के बारे में खुलकर बोलना चाहिए और फिर दांपत्य की शुरुआत होनी चाहिए.
'पसंद का ध्यान रखना चाहिए'
हमने कुछ युवतियों से भी बातचीत की. उनका साफ तौर पर कहना है कि विवाह से पहले एक-दूसरे की पसंद को जरूर तवज्जो मिलनी चाहिए. यह जीवनभर का फैसला है. इसमें चूक नहीं होनी चाहिए.
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विवाह से पहले चॉइस की स्वतंत्रता और जबरन विवाह के कई पहलुओं को हमने जाना. विवाह से पहले युवक-युवतियों की पसंद और घर के बड़े बुजुर्गों का अनुभव भी बहुत मायने रखता है. दो आत्माओं के इस पवित्र बंधन में रूढ़िवादिता की कहीं कोई गुंजाइश नहीं है.