बिलासपुर: AIDS पीड़ितों का दुख दर्द समझने के बजाय आज भी हमारा समाज उनके साथ भेदभाव करता है. ऐसे में बिलासपुर के संजीव ठक्कर एड्स पीड़ित बच्चों के लिए अपना घर का संचालन करते हैं जहां उन्हें प्यार, और अपनापन मिलता है. संजीव ठक्कर और उनकी पत्नी एड्स पीड़ित बच्चों का जीवन संवारने का काम करते हैं और उनके इलाज और शिक्षा का जिम्मा भी संभालते हैं.
चेन्नई से संजीव ठक्कर को मिली थी प्रेरणा
संजीव ठक्कर ने बताया कि वह साल 2005 में चेन्नई के एक आश्रम में गए थे. जहां एचआईवी संक्रमित महिलाएं अपने बच्चों के साथ रह रही थीं। इसी बीच एक नन्ही सी बच्ची उनकी गोद में आकर बैठ गई। पूछने पर पता चला कि AIDS पीड़ित पिता की मौत के बाद बच्ची अकेली रह गई है. HIV ग्रसित महिला की उस बच्ची को उसके मां से इसलिए दूर रखा गया था क्योंकि वो महिला टीबी से ग्रसित होकर अपनी आखिरी सांसे गिन रही थी. इस घटना ने संजीव को झकझोर कर रख दिया. तभी उन्होंने एड्स पीड़ित बच्चों के लिए कुछ करने की ठानी.
18 साल से कर रहे हैं देखरेख
संजीव ठक्कर बीते 18 साल से एड्स पीड़ित मासूमों की देख रेख कर रहे हैं. अपनी पत्नी के सहयोग से एक छात्रावास का संचालन कर रहे हैं जहां डेढ़ दर्जन एड्स संक्रमित बच्चियां रहती है. उन्हें यहां प्यार और अपनापन मिल रहा है. यहां रह रहे बच्चों को हर आधारभूत सुविधा मिलती है जो हर एक बच्चे को चाहिए.
पूरी जिम्मेदारी ठक्कर दंपति ने उठाई
यह छत्तीसगढ़ की एकमात्र संस्था है जहां एचआईवी पीड़ित उपेक्षित बच्चों की पूरी देख रेख की जाती है. इन बच्चों के खाने-पीने, रहने और पढ़ाई-लिखाई की पूरी जिम्मेदारी ठक्कर दम्पति ने उठाई है.इनके साथ उनके सहयोगी के रूप में कई सदस्य भी हैं जो बच्चों की देखरेख करने में उनका सहयोग देते हैं.
जब आज के इस दौर में जहां लोगों के पास अपनों के लिए भी समय बमुश्किल मिल पाता है ऐसे में संजीव ठक्कर और उनकी पत्नी एड्स पीड़ित बच्चों को न सिर्फ एक आशियाना दे रखा है बल्कि उन्हें प्यार और अपनापन भी दे रहे हैं ताकि ये मासूम अपनी जिंदगी खुशनुमा तरीके से जी सके.