बिलासपुर: छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी योजना 'नरवा, गरुवा, घुरवा अउ बारी' को साकार करने के लिए गोधन न्याय योजना बनाई गई है. जिसके लिए प्रदेश के कई जिलों में सरकार ने गौठान बनवाया, ताकि मवेशियों को गौठानों में रखा जाए, लेकिन गौठानों में मवेशियों की देखरेख में एक बार फिर बड़ी लापरवाही सामने आई है. मस्तूरी के पचपेड़ी गौठान में 9 गौवंशों की मौत हो गई. इसे लेकर स्थानीय विधायक कृष्णमूर्ति बांधी ने मोर्चा खोल दिया है.
दरअसल, मामले का खुलासा तब हुआ जब मृत मवेशियों को ट्रैक्टर की ट्राली में भरकर खुले मैदानों में दफनाया जा रहा था. बताया जा रहा है, करीब 19 मवेशी को खुले आसमान के नीचे प्लास्टिक के तिरपाल में ठूंसकर रखा गया था. लगातार 4 दिनों से हो रही बारिश के कारण मवेशियों को चारा-पानी नहीं देने का आरोप है, जिससे 9 मवेशियों की मौत हो गई है. इसके अलावा अन्य मवेशियों की हालत गंभीर है. इधर गायों की मौत के बाद मामले को दबाने की कवायद भी जारी है.
विधायक ने उच्चस्तरीय जांच की मांग की
मस्तूरी विधायक कृष्णमूर्ति बांधी ने मवेशियों की मौत को लेकर राज्य की कांग्रेस सरकार पर जमकर निशाना साधा है. उनका कहना है कि सरकार की गौठान योजना फेल हो रही है. गौठानों में भारी अव्यवस्था है. एक के बाद एक मवेशियों की मौत हो रही है. यहीं नहीं विधायक बांधी ने ये आरोप भी लगाया है कि कांग्रेस के जनप्रतिनिधि सरकार के दबाव में मामले को दबाने में लगे हुए हैं. उन्होंने मामले में उच्चस्तरीय जांच की मांग की है.
दम घुटने से हुई गोवंशों की मौत, जांच रिपोर्ट में हुआ खुलासा
मेढ़पार में एक साथ 47 गोवंशों की हुई थी मौत
गौरतलब है कि जिले में इससे पहले भी 25 जुलाई को तखतपुर के मेढ़पार में एक साथ 47 गोवंशों की मौत हो गई थी. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच के निर्देश दिए थे. जिसके बाद कलेक्टर ने मामले में अतिरिक्त कलेक्टर बीएस उइके की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया था.
दम घुटने से मवेशियों की हुई थी मौत
जांच समिति ने प्रभावित गांव और घटना स्थल का निरीक्षण कर गोवंश पालकों और ग्रामीणों का बयान दर्ज किया. जिसमें ये बात सामने आई की, ग्रामीणों की सहमति के बाद फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले गोवंश को पकड़कर पुराने पंचायत भवन में रखा गया था. बाद में उन्हें जंगल में छोड़ने की योजना थी. लेकिन जिस भवन में मवेशियों को रखा गया था, उस भवन का आकार छोटा था और क्षमता से ज्यादा मवेशियों को एक साथ भवन में रख दिया गया था, जिससे दम घुटने से सभी की मौत हो गई थी. बावजूद इसके प्रसाशन ने सबक नहीं लिया.