बीजापुर : जिले की महिलाओं ने कजली तीज (कजरी तीज) बड़े ही धूम-धाम से मनाई. बुर्जुगों के अनुसार ये त्योहार रक्षाबंधन के तीन दिन बाद और कृष्ण जन्माष्टमी से पांच दिन पहले महिलाओं की ओर से मनाया जाता है. इसे कई जगहों पर सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है.
ये तीज महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं. इस खास दिन पालकी तैयार की जाती है, जिसमें तीज माता की सवारी निकाली जाती है. इस दिन महिलाएं व लड़कियां घर-परिवार की सुख-शांति के लिए व्रत रखती हैं. सूर्योदय से पहले उठकर अदर्त्या(धमोली) यानी हल्का नाश्ता करने का रिवाज है.
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इस तरह मनाई जाती है कजली तीज
- महिलाएं इस पूरे दिन सिर्फ पानी पीकर उपवास और सुबह सूर्योदय से पहले धमोली करती हैं. इसमें सुबह मिठाई, फल आदि का नाश्ता किया जाता है.
- सुबह नहाकर महिलाएं सोलह बार झूला झूलती हैं, उसके बाद ही पानी पीती हैं.
- शाम के वक्त महिलाएं सोलह श्रृंगार कर तीज माता की पूजा करती है. पूजा के दौरान सबसे पहले तीज माता को जल के छींटे, रोली के छींटें देंती हैं फिर चावल चढ़ाए जाते हैं.
- नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली व काजल की 13-13 बिंदिया अपनी अंगुली से लगाई जातीं हैं.
- नीमड़ी माता को मौली, मेहंदी, काजल और वस्त्र चढ़ाए जाते हैं. दीवार पर लगाई बिंदियों पर भी मेहंदी की सहायता से लच्छा चिपका कर पूजा की जाती है.