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मध्यस्थता टीम की सदस्य सुखमती हपका से सुनें राकेश्वर मनहास की रिहाई की कहानी

सीआरपीएफ जवान राकेश्वर सिंह मनहास (Rakeshwar Singh Manhas) को नक्सलियों से छुड़ाने के लिए पद्मश्री धर्मपाल सैनी के नेतृत्व में मध्यस्थता टीम (mediator team) का गठन किया गया था. इस टीम मुर्दोंडा की पूर्व सरपंच सुखमती हपका ने भी मध्यस्थता में अपनी अहम भूमिका निभाई. मध्यस्थता टीम में शामिल होने, नक्सलियों से वार्ता और जवान की रिहाई तक क्या घटनाक्रम रहा. तमाम मुद्दों को लेकर ETV भारत ने सुखमति हपका से खास बातचीत की.

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जवान राकेश्वर सिंह मनहास मध्यस्थता टीम की सदस्य सुखमती हपका
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Published : Apr 10, 2021, 9:04 PM IST

बीजापुर: सीआरपीएफ जवान राकेश्वर सिंह मनहास (Rakeshwar Singh Manhas) को नक्सलियों से छुड़ाने के लिए पद्मश्री धर्मपाल सैनी के नेतृत्व में मध्यस्थता टीम (mediator team) का गठन किया गया था. इस टीम मुर्दोंडा की पूर्व सरपंच सुखमती हपका ने भी मध्यस्थता में अपनी अहम भूमिका निभाई. मध्यस्थता टीम में शामिल होने, नक्सलियों से वार्ता और जवान की रिहाई तक क्या घटनाक्रम रहा. तमाम मुद्दों को लेकर ETV भारत ने सुखमती हपका से खास बातचीत की. सुखमती हपका ने बताया कि 'हम सभी सेवक लोग हैं. किसी की जान जाने थोड़ी देंगे. बचाना जरूरी है. इसलिए मध्यस्थता टीम में शामिल हुए. हमारा उद्देश्य था कि जवान की सुरक्षित रिहाई कराई जाए'. पेश है वीडियो के साथ बातचीत का अंश

मध्यस्थता टीम की सदस्य सुखमती हपका से सुनें राकेश्वर मनहास की रिहाई की कहानी

सवाल: किसके बुलावे पर आप मध्यस्थता कराने गईं थीं ?

सुखमती हपका: हम लोगों को डीआईजी, एसपी और एसडीओ बुलाए थे. हम लोग वहां पहुंचे. इंतजार कर रहे थे. कब होगा, कैसे होगा. सफल होगा या नहीं. भरोसा तो नहीं हो रहा था. सोच में पड़ गए थे. भीड़-भाड़ को देख हम लोग डर गए थे. दीदी (नक्सली कमांडर मनीला) ने बुलाकर हम लोगों से बातचीत की. पूछा कि क्यों आए हो. हम लोगों ने परिचय दिया. गोंडवाना समाज के अध्यक्ष तेलम बाैरैय्या भी साथ में गए थे. क्या है ना कि हम लोग आदिवासी समाज के लोग हैं. गोंड हैं. नक्सली हम पर भरोसा करते हैं. थोड़ी बहुत बात करते हैं. हमारे साथ 7 से 8 पत्रकार भी गए थे.

जाने के बाद दीदी (नक्सली कमांडर मनीला) ने अच्छे से बात की. उन्होंने कहा कि हमारा आपके ऊपर विश्वास है और आपका हमारे ऊपर. आपके भरोसे पर जवान रिहा कर रहे हैं. नक्सलियों ने बताया कि ये जवान जम्मू-कश्मीर के रहने वाले हैं. गरीब घर के हैं. इनको कोई देखने और पूछने भी नहीं आया. आपके भरोसे में इनको हम नहीं रखेंगे. हम छोड़ देंगे. काफी देर इंतजार करने के बाद नक्सलियों ने जवान को सभा के बीच में लाया गया. काफी देर तक चर्चा चली. गांव वालों के बीच सभा में जवान को खड़ा किया गया. पब्लिक से पूछा गया कि इनका क्या किया जाए. हालांकि इस दौरान गांव वाले कुछ नहीं बोले. नक्सलियों ने कहा कि यह बाहर का जवान है. इसलिए हम छोड़ रहे हैं. वरना नहीं छोड़ते. नक्सलियों ने जवान को रिहा करने के दौरान कहा कि गश्त के दौरान ग्रामीणों को नहीं परेशान करना. इसी वादे के साथ उन्होंने जवान को रिहा किया.

कौन हैं 91 साल के 'ताऊ जी', जो जवान को नक्सलियों से छुड़ा लाए

जवान को क्या नक्सलियों ने परेशान किया था ?

सुखमती हपका: नहीं, नहीं. जवान ने सभी के बीच में आकर खुद कहा कि नक्सलियों ने उन्हें अच्छे से रखा है. जवान दो दिन तक तो बेहोश था. फिर इसके बाद नक्सलियों ने उसे नहलाया-धुलाया. उसे खाना-पीना दिया. अच्छे से रखा. नक्सलियों ने उसके बारे में जाना. उसे परेशान नहीं किया.

आप पहले भी कई लोगों को नक्सलियों से रिहा करवा चुकी हैं ?

सुखमती हपका: 2010 में नक्सलियों ने क्षेत्र के एक वकील को अगवा कर लिया था. उस दौरान मेरे पास कुछ लोग मदद मांगने आए थे. नक्सलियों से इस मुद्दे पर तीन-चार बार बैठक भी हुई. काफी मुश्किलों के बाद रिहाई हो पाई थी.

बीजापुर: सीआरपीएफ जवान राकेश्वर सिंह मनहास (Rakeshwar Singh Manhas) को नक्सलियों से छुड़ाने के लिए पद्मश्री धर्मपाल सैनी के नेतृत्व में मध्यस्थता टीम (mediator team) का गठन किया गया था. इस टीम मुर्दोंडा की पूर्व सरपंच सुखमती हपका ने भी मध्यस्थता में अपनी अहम भूमिका निभाई. मध्यस्थता टीम में शामिल होने, नक्सलियों से वार्ता और जवान की रिहाई तक क्या घटनाक्रम रहा. तमाम मुद्दों को लेकर ETV भारत ने सुखमती हपका से खास बातचीत की. सुखमती हपका ने बताया कि 'हम सभी सेवक लोग हैं. किसी की जान जाने थोड़ी देंगे. बचाना जरूरी है. इसलिए मध्यस्थता टीम में शामिल हुए. हमारा उद्देश्य था कि जवान की सुरक्षित रिहाई कराई जाए'. पेश है वीडियो के साथ बातचीत का अंश

मध्यस्थता टीम की सदस्य सुखमती हपका से सुनें राकेश्वर मनहास की रिहाई की कहानी

सवाल: किसके बुलावे पर आप मध्यस्थता कराने गईं थीं ?

सुखमती हपका: हम लोगों को डीआईजी, एसपी और एसडीओ बुलाए थे. हम लोग वहां पहुंचे. इंतजार कर रहे थे. कब होगा, कैसे होगा. सफल होगा या नहीं. भरोसा तो नहीं हो रहा था. सोच में पड़ गए थे. भीड़-भाड़ को देख हम लोग डर गए थे. दीदी (नक्सली कमांडर मनीला) ने बुलाकर हम लोगों से बातचीत की. पूछा कि क्यों आए हो. हम लोगों ने परिचय दिया. गोंडवाना समाज के अध्यक्ष तेलम बाैरैय्या भी साथ में गए थे. क्या है ना कि हम लोग आदिवासी समाज के लोग हैं. गोंड हैं. नक्सली हम पर भरोसा करते हैं. थोड़ी बहुत बात करते हैं. हमारे साथ 7 से 8 पत्रकार भी गए थे.

जाने के बाद दीदी (नक्सली कमांडर मनीला) ने अच्छे से बात की. उन्होंने कहा कि हमारा आपके ऊपर विश्वास है और आपका हमारे ऊपर. आपके भरोसे पर जवान रिहा कर रहे हैं. नक्सलियों ने बताया कि ये जवान जम्मू-कश्मीर के रहने वाले हैं. गरीब घर के हैं. इनको कोई देखने और पूछने भी नहीं आया. आपके भरोसे में इनको हम नहीं रखेंगे. हम छोड़ देंगे. काफी देर इंतजार करने के बाद नक्सलियों ने जवान को सभा के बीच में लाया गया. काफी देर तक चर्चा चली. गांव वालों के बीच सभा में जवान को खड़ा किया गया. पब्लिक से पूछा गया कि इनका क्या किया जाए. हालांकि इस दौरान गांव वाले कुछ नहीं बोले. नक्सलियों ने कहा कि यह बाहर का जवान है. इसलिए हम छोड़ रहे हैं. वरना नहीं छोड़ते. नक्सलियों ने जवान को रिहा करने के दौरान कहा कि गश्त के दौरान ग्रामीणों को नहीं परेशान करना. इसी वादे के साथ उन्होंने जवान को रिहा किया.

कौन हैं 91 साल के 'ताऊ जी', जो जवान को नक्सलियों से छुड़ा लाए

जवान को क्या नक्सलियों ने परेशान किया था ?

सुखमती हपका: नहीं, नहीं. जवान ने सभी के बीच में आकर खुद कहा कि नक्सलियों ने उन्हें अच्छे से रखा है. जवान दो दिन तक तो बेहोश था. फिर इसके बाद नक्सलियों ने उसे नहलाया-धुलाया. उसे खाना-पीना दिया. अच्छे से रखा. नक्सलियों ने उसके बारे में जाना. उसे परेशान नहीं किया.

आप पहले भी कई लोगों को नक्सलियों से रिहा करवा चुकी हैं ?

सुखमती हपका: 2010 में नक्सलियों ने क्षेत्र के एक वकील को अगवा कर लिया था. उस दौरान मेरे पास कुछ लोग मदद मांगने आए थे. नक्सलियों से इस मुद्दे पर तीन-चार बार बैठक भी हुई. काफी मुश्किलों के बाद रिहाई हो पाई थी.

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