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14 साल बाद स्कूल खुलते देख खिल उठे बच्चों के चेहरे, जाग गई शिक्षा की अलख

बीजापुर के एक गांव में 14 साल बाद प्राथमिक स्कूल खुला है, जिसमें पहले ही दिन 52 बच्चे पहुंचे.

स्कूली बच्चे
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Published : Jul 27, 2019, 11:07 PM IST

बीजापुर : हाथों में किताबें और मन में उज्जवल भविष्य की कामना लिए इन बच्चों को आखिरकार शिक्षा का अधिकार मिल ही गया. 14 साल बाद जब गांव में स्कूल खुला तो इनके चेहरे पर खिली मुस्कान साबित कर रही थी कि वक्त के साथ नक्सलियों के दिए जख्म भर गए हैं और गांव में शिक्षा की अलख जाग गई है.

14 साल बाद गांव में खुला स्कूल

14 साल पहले बंद हो गए थे स्कूल

हम बात कर रहे हैं बीजापुर के धुर नक्सल प्रभावित गांव पदमुर की, जहां 14 साल पहले 2005 में सलवा जुडूम के दौरान नक्सलियों ने ऐसा उत्पात मचाया कि स्कूल बंद हो गए और बच्चे शिक्षा से दूर..

ग्रामीणों ने भी दिया साथ

गांव दुर्गम है, लिहाजा आज तक यहां सड़क, पानी और बिजली नहीं पहुंची है. गांव नदी के पार था ऐसे में शिक्षा विभाग के लिए गांव में स्कूल खौलना किसी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन अधिकारियों ने हार नहीं मानी.

पहले दिन 52 बच्चे पहुंचे स्कूल

शिक्षा विभाग की इस पहल को ग्रामीणों का भी भरपूर साथ मिला. ग्रामीणों ने मिलकर गांव में झोपड़ी का निर्माण किया, जहां पहली से लेकर पांचवीं तक प्राथमिक स्कूल खोला गया है. स्कूल में पहले ही दिन 52 बच्चों पहुंचना जाहिर कर रहा था कि शिक्षा विभाग की ये नेक पहल सफल हुई है.

काबिल-ए-तारीफ है पहल

प्रदेशभर से सरकारी स्कूलों की बदहाली की तस्वीरें सामने आती रहती हैं, लेकिन बीजापुर के इस नक्सल प्रभावित गांव में 14 साल बाद स्कूल खोलने की शिक्षा विभाग की पहल और ग्रामीणों का जज्बा दोनों ही काबिल-ए-तारीफ है.

बीजापुर : हाथों में किताबें और मन में उज्जवल भविष्य की कामना लिए इन बच्चों को आखिरकार शिक्षा का अधिकार मिल ही गया. 14 साल बाद जब गांव में स्कूल खुला तो इनके चेहरे पर खिली मुस्कान साबित कर रही थी कि वक्त के साथ नक्सलियों के दिए जख्म भर गए हैं और गांव में शिक्षा की अलख जाग गई है.

14 साल बाद गांव में खुला स्कूल

14 साल पहले बंद हो गए थे स्कूल

हम बात कर रहे हैं बीजापुर के धुर नक्सल प्रभावित गांव पदमुर की, जहां 14 साल पहले 2005 में सलवा जुडूम के दौरान नक्सलियों ने ऐसा उत्पात मचाया कि स्कूल बंद हो गए और बच्चे शिक्षा से दूर..

ग्रामीणों ने भी दिया साथ

गांव दुर्गम है, लिहाजा आज तक यहां सड़क, पानी और बिजली नहीं पहुंची है. गांव नदी के पार था ऐसे में शिक्षा विभाग के लिए गांव में स्कूल खौलना किसी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन अधिकारियों ने हार नहीं मानी.

पहले दिन 52 बच्चे पहुंचे स्कूल

शिक्षा विभाग की इस पहल को ग्रामीणों का भी भरपूर साथ मिला. ग्रामीणों ने मिलकर गांव में झोपड़ी का निर्माण किया, जहां पहली से लेकर पांचवीं तक प्राथमिक स्कूल खोला गया है. स्कूल में पहले ही दिन 52 बच्चों पहुंचना जाहिर कर रहा था कि शिक्षा विभाग की ये नेक पहल सफल हुई है.

काबिल-ए-तारीफ है पहल

प्रदेशभर से सरकारी स्कूलों की बदहाली की तस्वीरें सामने आती रहती हैं, लेकिन बीजापुर के इस नक्सल प्रभावित गांव में 14 साल बाद स्कूल खोलने की शिक्षा विभाग की पहल और ग्रामीणों का जज्बा दोनों ही काबिल-ए-तारीफ है.

Intro:नक्सलगढ़ में शिक्षा की अलग जलाने जुटा शिक्षा विभाग जी हा सलवाजुड़ुम के दौरा आतंक व भय के कारण इलाके के कई स्कूल बनंद हो गए थे जिसमें से एक स्कूल पदमुर भी है ...जो गांव में बिजली सड़क जैसे कई मूलभूत सुविधा नही है...लेकिन गैन00 आज से करीब तीन-चार वर्षों पूर्व से इस गांव में स्कूल चलाने का प्रयास किया जा रहा था लेकिन किन्हीं कारणों से इसमें सफलता नहीं मिली वर्तमान सरकार के सकारात्मक पहल पर शिक्षा विभाग ने इसकी कवायद फिर से शुरू की जिसके तहत धुर नक्सल प्रभावित एवं पहुँचहिन इलाके पदमुर में फिर से प्राइमरी स्कूल शुरू करने की पहल की गई। Body:जिसके बाद शिक्षा विभाग के अधिकारी एवं शिक्षकों ने लगातार पद मुर्गे ग्रामीणों से संपर्क स्थापित किया और एक स्कूल शुरू करने के लिए ग्रामीणों को समझाइश दी गई इस पहल पर ग्रामीणों ने अपनी सहमति दी और अपने गांव में खुद से स्कूल के लिए झोपड़ी बनाकर शिक्षा विभाग को आश्वस्त किया कि उनके गांव में स्कूल संचालित करने में कोई कठिनाई नहीं ग्रामीणों के आश्वासन के बाद शिक्षा विभाग ने आवश्यक तैयारियां शुरू की तथा जिले के कलेक्टर जिले के कलेक्टर नाम डी राहुल वेंकट के मार्गदर्शन में शुरू करने के सारे इंतजाम पूरे किए। क्योंकि यह इलाका माओवादी प्रभावित है तथा नदी के पार होने के कारण आवागमन से भी बाधित है यहां स्कूल फिर से चालू करना इतना आसान नहीं रहा चुनौतियों के बीच शिक्षा विभाग ने माओवादी इलाके के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का संकल्प लेकर चुनौतियों को पार किया और और ग्रामीणों के सहयोग से करीब 14 साल बाद फिर से स्कूल शुरू करने में कामयाबी हासिल की।Conclusion:इसी गांव में तत्कालीन कलेक्टर डॉक्टर आईएस तंबोली जो कि इस समय बस्तर के कलेक्टर हैं ने भी इस पदमुर गांव में एक रात बिताई थी और ग्रामीणों के मंसूबों को समझने की कोशिश की उसी समय से पद मोर गांव के विकास के राह से जोड़ने की योजना बनाई जाने लगी थी।
बाईट - सुरेश ग्रमीण
बाईट - शिव चरण पांडे (शिक्षक)
बाईट - जाकिर खान ...beo बीजापुर
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