बीजापुर : नक्सलगढ़ का गढ़ कहे जाने वाले बीजापुर में आज कई सालों से बंद स्कूलों को खोलकर शिक्षा की ज्योति जलाई जा रही है. ग्रामीण, शिक्षक और शिक्षा विभाग के संयुक्त प्रयास से ही यह सब संभव हो पाया. जिन स्कूलों को नक्सलियों ने आज से 14 साल पहले बंद कराया था वहां आज बच्चे एक बार फिर अक्षरों और मात्राओं के सहारे ज्ञान की घुट्टी पी रहे हैं.
बता दें कि, 14 साल पहले नक्सलियों ने जो डर की दीवार खड़ी की थी, उसे ग्रामीण ज्ञान के हथियार के सहारे ढहाने की कोशिश कर रहे हैं. ये हिम्मत, साहस और लगन का परिणाम हैं कि जहां कुछ महीने पहले डर का अंधेरा छाया रहता था, वहां आज ज्ञान की ज्योति जल रही है.
कैसे हुआ सब कुछ
- पदमुर, काकेकोरमा, गोरना, पदेडा समेत 12 से ज्यादा स्कूल बंद पड़े थे, जिन्हें खोला गया है. यह सब कुछ नए सिरे से शुरू करना आसान नहीं था. जब हमने यह चमत्कार करने कर करने वाली टीम के सदस्य शिक्षक विजय गोन्दे से इस बारे पूछा गया कि यह कुछ कैसे संभव हुआ तो, उसने हौसले का परिचय देते हुए बताया कि शिक्षा विभाग की ओर से पूरे जोर-शोर के साथ प्रयास किया जा रहा है, ताकि आदिवासी बच्चों के जीवन मे उजाला आ सके.
- बता दें कि जिले में करीब 14 वर्षों से 300 स्कूल बंद पड़े हैं, जिनमें 12 से ज्यादा स्कूलों को खोला जा चुका है. इस सराहनीय प्रयास के लिए बीजापुर, उसूर, भैरमगढ़ विकासखंड के 13 शिक्षादूतों मंत्री ने सम्मानित भी किया है.
- वहीं बीईओ मो.जाकिर खान ने बताया कि जिले में बंद पड़े स्कूलों का पुनः संचालन जिला प्रशासन के अथक प्रयासों से किया गया है.
शिक्षा विभाग के प्रयास ने जिले के उन अंदरूनी इलाकों में ज्ञान की अलख जल रही है, जहां एक वक्त 'लाल आतंक' का अंधेरा छाया रहता था, शिक्षा विभाग और शिक्षकों की मदद से वहां ज्ञान की रोशनी फैल रही है.