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74 साल की 'अम्मा' दे रही हैं ट्रेनिंग, प्राकृतिक साबुन बनाकर जिंदगी चला रही हैं महिलाएं - प्राकृतिक साबुन

स्वसहायता समूह की महिलाएं ऑर्गेनिक साबुन बनाकर अपनी आजीविका चला रही हैं. इन महिलाओं को साबून बनाने का प्रशिक्षण नागपुर से आई 76 वर्षीय अम्मा दे रही हैं.

प्राकृतिक साबुन बनाकर जिंदगी चला रही हैं महिलाएं
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Published : Oct 24, 2019, 11:41 PM IST

बेमेतरा: महिला सशक्तिकरण के लिए प्रदेश में कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इन्हीं योजनाओं का लाभ लेते हुए जिले की महिलाएं स्वयं को सशक्त बनाने में जुट गई है. छत्तीसगढ़ में महिलाओं के स्वसहातया समूह नई इबारत लिख रहे हैं. यहां महिला स्वसहायता समूह की महिलाएं साबुन बनाकर अपनी जीविका चला रही हैं.

प्राकृतिक साबुन बनाकर जिंदगी चला रही हैं महिलाएं
इन महिलाओं को प्राकृतिक साबून बनाने की ट्रेनिंग नागपुर की 74 वर्षीय अम्मा प्रमिला बागुल निशुल्क रुप से दे रही हैं. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिलाओं को बिना केमिकल के आधुनिक तरीके से साबुन बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

पढ़ें:अचानकमार टाइगर रिजर्व में तेंदुए का शिकार, सुरक्षा पर उठ रहे सवाल

आज के समय में केमिकल से भरपूर सामाग्रियां हर तरफ बिक रही हैं. केमिकल युक्त पदार्थ सेहत के लिए हानिकारक होते हैं. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए जिले की महिलाएं ऑर्गेनिक चीजों को बढ़ावा दे रही हैं.

पंचायत देती है अनुदान

इस परियोजना की प्रबंधक नेहा बंसोड़ ने बताया कि प्रशिक्षण के बाद महिलाओं को अपनी प्रतिभा 5 नवम्बर को दुर्ग में होने वाले सरस मेला में दिखाने का मौका दिया जाएगा. महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए पंचायत संसाधन केंद्र 15 हजार की अनुदान राशि उपलब्ध कराती है.

ग्रामीण अंचलो की महिलाएं ले रही प्रशिक्षण

ग्रामीण अंचल के जय मां स्वसहायता समूह बेरला, दीपमाला स्वसहायता समूह नवागढ़, नारी शक्ति स्वसहायता समूह बेमेतरा, प्रगति स्वसहायता समूह साजा की महिलाओं को इसके तहत प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

प्राकृतिक रुप से तैयार होता है साबुन

इस साबुन में ग्लिसरीन, बकरी का दूध, शहद, एलोवेरा, चंदन पाउडर, ग्रीन-टी, कॉफी, कैस्टर ऑयल, कस्तूरी हल्दी का एक निश्चित मात्रा में उपयोग किया जा रहा है. इन सामाग्रियों की बाजार में कीमत 300 से 600 रुपए तक है.

बेमेतरा: महिला सशक्तिकरण के लिए प्रदेश में कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इन्हीं योजनाओं का लाभ लेते हुए जिले की महिलाएं स्वयं को सशक्त बनाने में जुट गई है. छत्तीसगढ़ में महिलाओं के स्वसहातया समूह नई इबारत लिख रहे हैं. यहां महिला स्वसहायता समूह की महिलाएं साबुन बनाकर अपनी जीविका चला रही हैं.

प्राकृतिक साबुन बनाकर जिंदगी चला रही हैं महिलाएं
इन महिलाओं को प्राकृतिक साबून बनाने की ट्रेनिंग नागपुर की 74 वर्षीय अम्मा प्रमिला बागुल निशुल्क रुप से दे रही हैं. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिलाओं को बिना केमिकल के आधुनिक तरीके से साबुन बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

पढ़ें:अचानकमार टाइगर रिजर्व में तेंदुए का शिकार, सुरक्षा पर उठ रहे सवाल

आज के समय में केमिकल से भरपूर सामाग्रियां हर तरफ बिक रही हैं. केमिकल युक्त पदार्थ सेहत के लिए हानिकारक होते हैं. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए जिले की महिलाएं ऑर्गेनिक चीजों को बढ़ावा दे रही हैं.

पंचायत देती है अनुदान

इस परियोजना की प्रबंधक नेहा बंसोड़ ने बताया कि प्रशिक्षण के बाद महिलाओं को अपनी प्रतिभा 5 नवम्बर को दुर्ग में होने वाले सरस मेला में दिखाने का मौका दिया जाएगा. महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए पंचायत संसाधन केंद्र 15 हजार की अनुदान राशि उपलब्ध कराती है.

ग्रामीण अंचलो की महिलाएं ले रही प्रशिक्षण

ग्रामीण अंचल के जय मां स्वसहायता समूह बेरला, दीपमाला स्वसहायता समूह नवागढ़, नारी शक्ति स्वसहायता समूह बेमेतरा, प्रगति स्वसहायता समूह साजा की महिलाओं को इसके तहत प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

प्राकृतिक रुप से तैयार होता है साबुन

इस साबुन में ग्लिसरीन, बकरी का दूध, शहद, एलोवेरा, चंदन पाउडर, ग्रीन-टी, कॉफी, कैस्टर ऑयल, कस्तूरी हल्दी का एक निश्चित मात्रा में उपयोग किया जा रहा है. इन सामाग्रियों की बाजार में कीमत 300 से 600 रुपए तक है.

Intro:एंकर- जिले में ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिलाओं को बिना केमिकल के आधुनिक तरीके से साबुन बनाने का प्रशिक्षण नागपुर से आई 74 वर्षीय अम्मा निशुल्क रूप से दे रही है बता दें जिला पंचायत में ग्रामीण अंचल की महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए साबुन बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के द्वारा ग्रामीण अंचल की महिलाओं को साबुन बनाकर सशक्त बनाने का काम किया जा रहा है जिससे उन्हें स्वरोजगार मिल सके।Body:आज के आधुनिक युग में हर कोई बिना केमिकल के समान उपयोग करना चाहता है आप जहां देखो लोग ऑर्गेनिक चीजों को बढ़ावा दे रहे हैं वहीं केमिकल युक्त इस जीवन में लोग चाह कर भी बिना केमिकल के नहीं रह पा रहे ऐसे में ऑर्गेनिक साबुन जरूर स्वास्थ्य के लिए हितकारी होगा और ग्रामीण अंचल की महिलाएं साबुन बनाकर सशक्त होंगी । जिले में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्र के समूह की महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है वह घर बैठे ऑर्गेनिक तरीके से साबुन का निर्माण कर रही हैं नागपुर से प्रमिला बागुल 74 वर्ष उन्हें निशुल्क ट्रेनिंग देने आई हैं जो उन्हें बिना केमिकल के साबुन बनाने के तरीके सिखा रही हैं।Conclusion:जिला परियोजना प्रबंधक नेहा बंसोड़ ने बताया कि जिला पंचायत संसाधन केंद्र में महिला सशक्तिकरण के तहत 15हजार के अनुदान दी जाती है एवं प्रशिक्षण दिया जा रहा है जिससे वह शशक्त बन सके उन्होंने बताया 5 नवम्बर को दुर्ग में होने वाले सरस मेला में महिलाओं को अपने हुनर दिखाने का मौका मिलेगा।
(जिले के चारो ब्लाक की महिलाएं ले रही प्रशिक्षण)
जिले के ग्रामीण अंचल के जय मां स्व सहायता समूह बेरला दीपमाला स्व सहायता समूह नवागढ़ नारी शक्ति स्व सहायता समूह बेमेतरा प्रगति स्व सहायता समूह साजा इसके तहत प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
(बिना कैमिकल के तैयार हो रहा साबुन)
महिला द्वारा बनाई गई साबुन मैं ग्लिसरीन बकरी के दूध शहद एलोवेरा चंदन पाउडर ग्रीन टी की पत्ती कॉफी कैस्टर ऑयल कस्तूरी हल्दी का एक निश्चित मात्रा में उपयोग किया जा रहा है जिसकी बाजार कीमत 300 से 600 रुपये तक कि है।
बाईट-1गीता धृतलहरे महिला स्वसहायता समूह
बाईट-2-नेहा बंसोड़ जिला परियोजना प्रबंधक आजीवका मिशन
बाईट-3-प्रमिला बाघुल प्रशिक्षक नागपुर(महाराष्ट्र)
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