बेमेतरा: गाय, गोधन, ग्रामीण के लिए प्रदेश में योजनाएं तो बन रही है लेकिन जमीनी स्तर पर काम उस तरह नहीं हो रहे जैसे होने चाहिए. बेमेतरा जिले में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है. जिले के झालम गांव में बनाया गया प्रदेश का पहला गौ अभ्यारण्य बदहाली के आंसू रो रहा है. हालात ये है कि 72 एकड़ में बने गौ अभ्यारण्य में मवेशियों के खड़े रहने के लिए शेड ही नहीं है. जिससे 180 से ज्यादा मवेशियों को नहीं रखा जा सकता.
ये कहना गलत नहीं होगा कि गौ अभ्यारण्य का लाभ क्षेत्र के ग्रामीण किसानों को नहीं मिल पा रहा है. अभ्यारण्य पूरी तरह बंजर में तब्दील है. जहां लगातार पशुओं की संख्या तेजी से घट रही है.
2015 में मिली थी गौ-अभ्यारण्य की स्वीकृति
राष्ट्रीय गोकुल योजना के तहत जिला मुख्यालय से 17 किमी दूर बेमेतरा-नवागढ़ मार्ग पर ग्राम झालम में प्रदेश का पहला गौ अभ्यारण्य खोले जाने की स्वीकृति फरवरी 2015 में दी गई थी. कुल 72 एकड़ में 6 करोड़ 57 लाख की लागत से गौ अभ्यारण्य को गायों के लिए अनुकूल बनाना इसका उद्देश्य था. अभ्यारण्य में गायों को खुला रखा जाना था, वहीं बारिश और अन्य मौसम में बचाव के लिए शेड बनाना था. 5 साल बीतने के बाद भी केवल गौ अभ्यारण्य का नाम ही मिल पाया है. अब तक केवल 180 से 190 पशु ही रखने की व्यवस्था है. योजना पर इसके आगे कोई काम नहीं हुआ है. जिससे इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.
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बंजर में तब्दील अभ्यारण्य, 5 वर्ष में नहीं मिला फंड
गौ अभ्यारण्य देखरेख और फंड के अभाव में बंजर में तब्दील होने लगा है. 5 साल बीतने के बाद भी कोई विकास होता नजर नहीं आ रहा है. गोकुल योजना के मुताबिक अभ्यारण्य में हरे-भरे छायादार पेड़ के अलावा गायों के चारे के लिए 22 एकड़ के क्षेत्र में हरा घास उगाया जाना था, लेकिन आज की तारीख में पूरा क्षेत्र बंजर पड़ा है.पानी के लिए दो बोर पंप किए गए हैं, जिसमें से एक जलस्तर गिरने से नाममात्र का पानी दे रहा है, वहीं दूसरा जरूरत को देखते हुए नाकाफी साबित हो रहा है.
ऐसे बना गौ अभ्यारण्य
जिले में आवारा और घुमंतू मवेशियों से परेशान किसानों ने अंधियारखोर में चक्काजाम कर दिया था. जिसके बाद झालम गांव में वन विभाग ने तार घेर कर मवेशियों के रहने के लिए व्यवस्था की. जिसे बाद में विस्तार कर गौ अभ्यारण्य का रूप दिया गया. अभ्यारण्य के लिए तैयार की गई योजना में छत्तीसगढ़ की गाय यानि कौशली गाय के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम होना था. जिसमें कौशली की देसी नस्ल की बछिया को 36 महीने तक रखने के बाद पशुपालकों को दिया जाना था, लेकिन योजना को आज तक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका. अब हालात ये है कि लगातार अभ्यारण्य से मवेशियों की संख्या कम होती जा रही है.
गौ अभ्यारण्य बनने के बाद भी किसानों की समस्या का नहीं हुआ समाधान
झालम में 72 एकड़ में गौ अभ्यारण्य बनने के बाद भी किसानों की समस्या दूर नहीं हुई है. फिलहाल यहां करीब 180 मवेशियों को रखा गया है. इससे ज्यादा मवेशियों को रखने की व्यवस्था यहां है ही नहीं. जिससे अभी भी आवारा और घुमंतू मवेशियों की परेशानी किसानों को झेलनी पड़ रही है. किसान यदि इस अभ्यारण्य में अपने मवेशी लेकर जाते भी तो टिन शेड की व्यवस्था नहीं होने के कारण मवेशी रखने से मना कर दिया जाता है. सिर्फ सूखा चारा और पानी देकर मवेशियों को रखा जा रहा है.
अभ्यारण्य की देखरेख कर रहे पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी भी मान रहे है कि अभ्यारण्य में सिर्फ 180 मवेशी है. जिनके चारा पानी की व्यवस्था है. उन्होंने कहा कि टिन शेड नहीं होने के कारण अब और मवेशियों को नहीं रखा जा सकता है. 8 लोगों का स्टाफ अभ्यारण्य में काम कर रहा है.