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राउत नाचा: छत्तीसगढ़ का वो नृत्य, जो यदुवंशियों के बिन हो नहीं सकता

राउत नाचा छत्तीसगढ़ में दिवाली के दूसरे दिन यानी गोवर्धन पूजा के दिन से शुरू होता है, जो देवउठनी एकादशी तक चलता है. इस नृत्य में यदुवंशियों का विशेष रंगीन पोशाख लाठी, ठुमरी और बीच-बीच में दोहे और पारंपरिक गड़वा बाजा की विशेष धूम रहती है.

छत्तीसगढ़ में है राउत नाचा का विशेष महत्व
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Published : Oct 28, 2019, 3:34 PM IST

Updated : Oct 28, 2019, 11:57 PM IST

बेमेतरा: कला, संस्कृति और आदिवासियों के गढ़ छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में परंपराओं ने अपनी डेहरी सजा रखी है. दीपावाली के दूसरे दिन से देवउठनी एकादशी तक राउत नाचा किया जाता है. राउत नाचा छत्तीसगढ़ में परंपरागत रूप से दूध दही का व्यवसाय करने वाले यदुवंशियों का एक ऐसा नृत्य है, जिसकी धूम अंचल में पखवाड़े भर बनी रहती है.

छत्तीसगढ़ में है राउत नाचा का विशेष महत्व

बता दें कि राउत नाचा छत्तीसगढ़ में दिवाली के दूसरे दिन यानी गोवर्धन पूजा के दिन से शुरू होता है, जो देवउठनी एकादशी तक चलता है. इस नृत्य में यदुवंशी घर-घर जाकर पारंपरिक नृत्य राउत नाचा करते हैं, जिसके बाद उन्हें शगुन के रूप में वस्त्र और अन्न भेट किया जाता है. वहीं देवउठनी एकादशी में गाय को सोहाई पहनाने की भी परंपरा है.

  • इस नृत्य में यदुवंशियों का विशेष रंगीन पोशाख लाठी, ठुमरी और बीच-बीच में दोहे और पारंपरिक गड़वा बाजा की विशेष धूम रहती है.
  • यादवों के साथ थिरकती महिलाएं परी कहलाती हैं, जो वास्तव में महिला ना होकर पुरुष होते हैं जो नाचा में आकर्षण का केंद्र होते हैं.
  • गांव में यह त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. दीपावली पर्व के 15 दिनों तक गोवर्धन पूजा से लेकर एकादशी तक यादव नर्तकों द्वारा सामूहिक नृत्य किया जाता है.
  • जबकि दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा होती है जो गौठान में विशेष रूप से मनाई जाती है, इस दिन गो माता की पूजा की जाती है और पकवान खिलाये जाते हैं.

पढ़ें-SPECIAL: अब्बड़ सुघ्घर हवय हमर छत्तीसगढ़ के राउत नाचा

परी, गढ़वा बाजा होते हैं आकर्षण केंद्र
राउत नाचा में पुरुष महिला पोशाक में होते है जो परी कहलाते है, गढ़वा बाजा छतीसगढ़ का पारंपरिक वाद्य यंत्र है जिसे गुदुम बाजा भी कहते हैं.

विलुप्ति की कगार पर परंपरा
आज आधुनिकता के समय में लोग परंपरागत त्योहारों को भूलते जा रहे हैं, जिसके कारण ही आज राउत नाचा विलुप्ति के कगार पर खड़ा है.

बेमेतरा: कला, संस्कृति और आदिवासियों के गढ़ छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में परंपराओं ने अपनी डेहरी सजा रखी है. दीपावाली के दूसरे दिन से देवउठनी एकादशी तक राउत नाचा किया जाता है. राउत नाचा छत्तीसगढ़ में परंपरागत रूप से दूध दही का व्यवसाय करने वाले यदुवंशियों का एक ऐसा नृत्य है, जिसकी धूम अंचल में पखवाड़े भर बनी रहती है.

छत्तीसगढ़ में है राउत नाचा का विशेष महत्व

बता दें कि राउत नाचा छत्तीसगढ़ में दिवाली के दूसरे दिन यानी गोवर्धन पूजा के दिन से शुरू होता है, जो देवउठनी एकादशी तक चलता है. इस नृत्य में यदुवंशी घर-घर जाकर पारंपरिक नृत्य राउत नाचा करते हैं, जिसके बाद उन्हें शगुन के रूप में वस्त्र और अन्न भेट किया जाता है. वहीं देवउठनी एकादशी में गाय को सोहाई पहनाने की भी परंपरा है.

  • इस नृत्य में यदुवंशियों का विशेष रंगीन पोशाख लाठी, ठुमरी और बीच-बीच में दोहे और पारंपरिक गड़वा बाजा की विशेष धूम रहती है.
  • यादवों के साथ थिरकती महिलाएं परी कहलाती हैं, जो वास्तव में महिला ना होकर पुरुष होते हैं जो नाचा में आकर्षण का केंद्र होते हैं.
  • गांव में यह त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. दीपावली पर्व के 15 दिनों तक गोवर्धन पूजा से लेकर एकादशी तक यादव नर्तकों द्वारा सामूहिक नृत्य किया जाता है.
  • जबकि दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा होती है जो गौठान में विशेष रूप से मनाई जाती है, इस दिन गो माता की पूजा की जाती है और पकवान खिलाये जाते हैं.

पढ़ें-SPECIAL: अब्बड़ सुघ्घर हवय हमर छत्तीसगढ़ के राउत नाचा

परी, गढ़वा बाजा होते हैं आकर्षण केंद्र
राउत नाचा में पुरुष महिला पोशाक में होते है जो परी कहलाते है, गढ़वा बाजा छतीसगढ़ का पारंपरिक वाद्य यंत्र है जिसे गुदुम बाजा भी कहते हैं.

विलुप्ति की कगार पर परंपरा
आज आधुनिकता के समय में लोग परंपरागत त्योहारों को भूलते जा रहे हैं, जिसके कारण ही आज राउत नाचा विलुप्ति के कगार पर खड़ा है.

Intro:एंकर- राउत नाचा छत्तीसगढ़ में परंपरागत रूप से दूध दही का व्यवसाय करने वाले यदुवंशियों के शौर्य और लोग के मिले-जुले रंगों वाला एक ऐसा नृत्य जिसकी धूम अंचल में पखवाड़े भर बनी रहती है राउत नाचा कहलाता है राउत नाचा छत्तीसगढ़ी लोक कला साहित्य का एक विशेष नमूना है जो छत्तीसगढ़ के रग-रग में बसा हुए हैं
राउत नाचा छत्तीसगढ़ में दिवाली के दूसरे दिन यानी गोवर्धन पूजा के दिन से प्रारंभ होता है जो पखवाड़े भर देवउठनी एकादशी नाच आ जाता है इस नृत्य के तहत यदुवंशियों द्वारा घर घर जाकर पारंपरिक नृत्य किया जाता है एवं उन्हें शगुन स्वरूप ग्रामीण वस्त्र अन्न भेट किया जाता हैं।देवउठनी एकादशी को गाय को सोहाई पहनाने की परंपरा है ।Body:इस नृत्य में यदुवंशियों का विशेष रंगीन पोशाख लाठी ठुमरी बीच-बीच में दोहे एवं पारंपरिक गड़वा बाजा की धूम रहती है यादवों के साथ थिरकती महिलाएं परी कहती है जो वास्तव में महिला ना होकर पुरुष होते हैं जो नाचा में आकर्षण का केंद्र होते है ।
गांव में यह त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है दीपावली के पर्व के 15 दिनों तक गोवर्धन पूजा से लेकर एकादशी तक यादव नर्तकों द्वारा सामूहिक नृत्य किया जाता है दीवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा होती है जो गौठान में विशेष रूप से मनाई जाती है इस दिन गो माता की पूजा की जाती है एवम पकवान खिलाये जाते है।Conclusion:(परी गढ़वा बाजा एवम जोकर होते है आकर्षण केंद्र)
राउत नाचा में पुरुष महिला पोशाक में होते है जो परी कहलाते है गढ़वा बजा छतीसगढ़ का पारंपरिक वाद्य यंत्र है जिसे गुदुम बाजा भी कहते है जोकर परी के साथ नाचते है जो विशेष विशेष वेशभूषा में दिखाई देते है।
(विलुप्ति के कगार पर परम्परा)
आज आधुनिकता के समय मे लोग परंपरागत त्योहारों को भूलते जा रहे है आज नाचा विलुप्ति कर कगार पर खड़ा है ।
बाईट-1 विक्की मिश्रा ग्रामीण
बाईट-2 अजय राज सेन ग्रामीण
बाईट-3 मोहन पटेल ग्रामीण
Last Updated : Oct 28, 2019, 11:57 PM IST
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