बेमेतरा: कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र बेमेतरा में पहली बार मखाने की खेती की प्रदर्शन लगाई गई है. जिले में इस तरह की प्रायोगिक प्रदर्शनी पहली बार आयोजित की गई है. डुबान और दलदली क्षेत्र के लिए यह बहुत ही उपयोगी फसल है. जो आजकल एक सुपरफूड के रूप में प्रचलित है. अपने पौष्टिक गुणों के कारण बाजार में इसकी अत्यधिक मांग और उपयोगिता है.
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र के डीन केपी वर्मा ने बताया कि मखाने की खेती में फायदा होने के कारण बेकार जमीन से भी ज्यादा पैसा कमाया जा सकता है. मखाने का पौधा पानी के स्तर के साथ ही बढ़ता है. इसके पत्ते पानी के ऊपर फैले रहते हैं. तालाब के अलावा सालभर जल जमाव वाली जमीन इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है. किसान मखाने को उपजाने के लिए अपने सामान्य खेत का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन खेती की अवधि के दौरान उक्त क्षेत्र में 6 से 9 इंच तक पानी जमा रहना जरूरी है.
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मार्च से अगस्त तक का समय उपयुक्त
अनुकूल मौसम और अनुकूल परिस्थिति हो तो किसानों के लिए मखाने की खेती वरदान साबित होगी. क्योंकि एक बार में 10 से 12 क्विंटल मखाना का उत्पादन होता है. इसमें प्रति एकड़ 20 से 25 हजार की लागत आती है. जबकि 60 से 80 हजार तक आय होती है. मार्च से अगस्त तक का समय मखाने की खेती के लिए उपयुक्त होता है.
धमतरी के वैज्ञानिक की देखरेख में लगाई प्रदर्शनी
यह फसल कृषि विज्ञान केंद्र धमतरी के प्रमुख वैज्ञानिक चंद्रवंशी ने दी है. उनकी देखरेख में ही यहां इसका उत्पादन किया जा रहा है. अगर यह फसल बेमेतरा जिले में सफल होती है तो यह दलदल और अनुपयोगी जमीन के लिए वरदान साबित होगी. इसके अलावा जलीय फसलें जैसे सिंघाड़ा, कमल ककड़ी आदि की भी प्रदर्शन कृषि महाविद्यालय में लगाई गई है. जहां इच्छुक किसान फसल संबंधित जानकारी लेने पहुंच रहे हैं.