जगदलपुर: कमजोर होती नक्सल विचारधारा को मजबूत करने के लिए नक्सली सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं. इंटरनेट की मदद से लाल आतंक के प्रचार-प्रसार के लिए नक्सलियों ने सोशल नेटवर्किंग माध्यम से प्रचार करना शुरू कर दिया है. छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर इलाके में नक्सलियों का सोशल नेटवर्क अब नेटवर्किंग साइट्स के जरिए मजबूत हो रहा है. नक्सली ज्यादा से ज्यादा सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से प्रचार-प्रसार करने में लगे हुए हैं. पुलिस अधिकारियों का कहना है कि ऐसी साइटों के साथ-साथ सोशल मीडिया ग्रुप और नक्सलियों के सोशल नेटवर्क पर भी पुलिस नजर रख रही है.
नक्सली मोबाइल नेटवर्क का कर रहे इंतजार
बस्तर में कुछ दिन पहले ही छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती इलाके में नक्सलियों की बटालियन नंबर एक का सदस्य टाइगर हूंगाराम मारा गया था. प्रमुख रूप से टाइगर हूंगाराम भी नक्सलियों की नेटवर्क सिस्टम में एक्टिव था. इस बात का खुलासा होने के बाद से पुलिस सोशल नेटवर्किंग साइट पर नजर बनाए हुए है.
बस्तर आईजी का कहना है कि नक्सली पहले अपने संगठन के प्रचार-प्रसार के लिए नाट्य चेतना मंडली और ग्रामीण अंचलों में बैनर-पोस्टर लगाकर ग्रामीणों को अपने संगठन में जुड़ने के लिए प्रेरित करते थे. लेकिन अब नक्सली सोशल साइट और सोशल मीडिया का भी उपयोग कर रहे हैं. यही वजह है कि पहले इन्हीं नक्सलियों के द्वारा मोबाइल टावरों को निशाना बनाया जाता था और छत्तीसगढ़ के साथ ही ओडिशा और तेलंगाना में नक्सलियों ने कई मोबाइल टावर को ब्लास्ट कर उड़ाया. लेकिन ताजा इनपुट से यह खुलासा हुआ है कि नक्सली डिजिटल तकनीक से जुड़ने के लिए मोबाइल टावर का विरोध नहीं कर रहे हैं ताकि अब अपने संगठन का प्रचार-प्रसार सोशल मीडिया के माध्यम से कर सकें.
बस्तर में मोबाइल नेटवर्क और फोन सेवा का शुरुआत
बस्तर में नेटवर्क कनेक्टिविटी की समस्या पिछले कई सालों से बनी हुई थी. आज से 2 दशक पूर्व नेटवर्क कनेक्टिविटी बस्तर में नहीं होने की वजह से धीरे-धीरे बस्तर में नक्सल संगठन भी अपनी पैठ जमाते गए. हालांकि सीमित घरों और शासकीय विभाग के कार्यालयो में दूरभाष की सुविधा तो जरूर थी लेकिन कई बार लाइन खराब होने की वजह से बस्तर में फोन डेडलाइन ही रहते थे. नेटवर्क कनेक्टिविटी नहीं होने की वजह से बस्तर में कई बार खासकर नक्सल मोर्चे में तैनात जवानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है.
नेटवर्क समस्या होने की वजह से कई बड़ी नक्सली घटना के दौरान समय पर बैकअप पार्टी नहीं मिलने की वजह से जवानों को भारी नुकसान भी उठाना पड़ा है. हालांकि 1 नवंबर सन 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन होने के बाद तत्कालीन सरकार ने संचार क्रांति के लिए योजना बनाई और छत्तीसगढ़ के गठन के साथ ही प्रदेश में नेटवर्क कनेक्टिविटी के लिए सरकार ने काम करना शुरू किया.
बस्तर में कैसे फैला मोबाइल नेटवर्क का जाल ?
बस्तर संभाग के जगदलपुर मुख्यालय में सन 2001 अक्टूबर माह में पहला बीएसएनल का मोबाइल टॉवर शहर के नयापारा स्थित दूरसंचार निगम लिमिटेड कार्यालय परिसर में लगा. हालांकि शुरुआती दौर में एक ही टावर होने की वजह से लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ी और कमजोर नेटवर्क की वजह से कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा. लेकिन सन 2003 में छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार आने के बाद लगातार संचार क्रांति की दिशा में काम किया गया और बस्तर संभाग में बीएसएनएल के मोबाइल टावर लगाने का कार्य शुरू किया गया. शुरुआती दौर में बस्तर जिले में शहर के अलावा ग्रामीण अंचलों में बीएसएनल के मोबाइल टावर लगाए गए और उसके बाद धीरे-धीरे संभाग के अन्य जिलों में भी बीएसएनएल के टावर लगते गए. साल 2018 में बस्तर संभाग के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित 3 जिले सुकमा, दंतेवाड़ा, बस्तर में भारत संचार निगम लिमिटेड ने कुल 532 टावर खड़े किए और जिसके बाद वर्तमान में आज बीएसएनल मोबाइल टावर की संख्या 800 पहुंच गई है. जिसमें सर्वाधिक मोबाइल टावर जगदलपुर शहर में लगाए गए हैं और उसके बाद बस्तर के अन्य 6 जिलों के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बीएसएनएल के टावर लगाए गए.
बस्तर नेट परियोजना से हुआ फायदा
वहीं ग्रामीण अंचलों को बस्तर नेट परियोजना से जोड़ने के लिए साल 2014 में बस्तर नेट परियोजना की शुरुआत भाजपा शासनकाल में की गई. करोड़ों रुपए की लागत से जगदलपुर के साथ-साथ संभाग के अन्य जिलों में ऑप्टिकल फाइबर लाइन बिछाने का काम शुरू किया गया. हालांकि बस्तर नेट योजना कुछ ही जगह पर सफल हो पाया.आए दिन ऑप्टिकल फाइबर में खराबी की वजह से ज्यादा पंचायत नेट परियोजना से नहीं जुड़ सके और भाजपा शासनकाल में बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में ई पंचायत का सपना आज भी अधूरा पड़ा है अभी भी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के पंचायत इंटरनेट से नही जुड़ पाए हैं और यहां नेट की सुविधा नहीं होने से आज भी सभी कार्य ऑफलाइन किए जाते हैं.
संचार क्रांति योजना से हुआ फायदा
जानकारी के मुताबिक बस्तर जिले की बात की जाए तो जगदलपुर शहर में विभिन्न सेल कंपनियों के कुल 215 टावर लगे हैं. इसके अलावा जिले के 7 ब्लॉक में 500 से अधिक टावर लगाए गए हैं.
- पहले बस्तर में टेलीफोन और मोबाइल कनेक्टिविटी थी काफी कम.
- साल 2000 से नक्सलगढ़ में नेटवर्क कनेक्टिविटी बढ़ी.
- साल 2001 में जगदलपुर के नयापारा में लगा पहला मोबाइल टावर.
- साल 2003 में बीजेपी सरकार ने शुरू की संचार क्रांति योजना.
- उसके बाद मोबाइल टावर की संख्या बढ़ी.
- साल 2014 में बस्तर नेट परियोजना से हुआ फायदा.
- साल 2018 तक बस्तर में 532 मोबाइल टावर लगे.
- साल 2021 तक बस्तर में कुल 800 मोबाइल टावर स्थापित हुए.
पुलिस नक्सलियों पर रख रही नजर
बस्तर आईजी सुंदरराज पी का कहना है कि प्रचार-प्रसार के लिए नक्सलियों का साथ देने वालों को भी पुलिस नहीं बख्शेगी. ऐसे लोग जो नक्सलियों के लिए सोशल मीडिया में प्रचार-प्रसार कर रहे हैं और उन्हें बढ़ावा दे रहे हैं. उन पर पुलिस जन सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्रवाई करेगी. हालांकि पुलिस किस तरह से नक्सलियों के बढ़ते सोशल मीडिया नेटवर्क को रोकने की कार्रवाई करेगी. इसका जवाब बस्तर आईजी पी सुंदरराज ने नहीं किया है. लेकिन उनका कहना है कि उनकी साइबर टीम पूरी तरह से सचेत है. सोशल मीडिया पर पैनी नजर रखी हुई है. साथ ही नक्सलियों के साइट पर भी नजर रखी जा रही है. फिलहाल बस्तर पुलिस की कोशिश है कि, कैसे भी नक्सली अपने संगठन के प्रचार के लिए सोशल मीडिया का ज्यादा फायदा ना उठा पाएं.
सुरक्षा जानकार ने नक्सलियों के नेटवर्क प्रेम पर जताई चिंता
नक्सल एक्सर्पट वर्णिका शर्मा ने बताया कि जब पूरे देश में मोबाइल के जरिए सूचनाओं का आदान प्रदान तेजी से हो रहा है.कोविड काल में इसमें ज्यादा तेजी आई है. ऐसे में अब नक्सलियों ने इसे अपने प्रचार माध्यम का हथियार बनाया है. उन्होंने इस समय बेहद चौकन्ना रहने की बात कही है. उनका कहना है कि मोबाइल नेटवर्क और उसके उपयोग को अपने कब्जे में लेने की जरूरत है. सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को इस ओर ध्यान देना चाहिए.
ऐसे में नक्सलियों के सोशल मीडिया की तरफ झुकाव ने सुरक्षा ऐजेंसियों को सतर्क कर दिया है. ताकि भविष्य में लाल आंतक के बढ़ते प्रचार और प्रसार को रोका जा सके