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एक अनोखा मंदिर जहां हर दिन होती है संविधान की पूजा

स्टील प्लांट के विरोध में मिली एक सफलता से आदिवासियों की संविधान में इतनी आस्था हुई कि उन्होंने इस संविधान को अपने सांस्कृतिक और धार्मिक क्रियाकलापों में शामिल कर लिया. इसी का परिणाम है कि आज देश में संविधान का पहला मंदिर वहां स्थापित है, जहां नक्सलवाद ने अपनी जड़े जमा रखी हैं.

Jagdalpur, the first temple of the constitution in the country
देश का इकलौता मंदिर जहां हर दिन होती है संविधान की पूजा
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Published : Nov 26, 2019, 10:00 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

जगदलपुर : भारत में संसद को ही लोकतंत्र का मंदिर माना जाता है, लेकिन इसी भारत में छत्तीसगढ़ के जगदलपुर जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर एक संविधान का मंदिर भी मौजूद है. जहां हर रोज संविधान की पूजा की जाती है. मंदिर की स्थापना 1992 में की गई थी.

एक अनोखा मंदिर जहां हर दिन होती है संविधान की पूजा

दरअसल, डाइकिन स्टील प्लांट की स्थापना के विरोध में उपजे आंदोलन की सफलता ने आदिवासियों को संविधान में मिले उनके अधिकारों से अवगत कराया था. उसी दौरान पंचायती राज में 73वें संशोधन से ग्राम सभाओं को मिली ताकत का सबसे पहले बस्तर में प्रयोग किया गया था और आखिरकार ये स्टील प्लांट नहीं बनाया जा सका. क्योंकि, बुरुंगपाल ग्राम पंचायत ने ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित कर स्टील प्लांट को खारिज कर दिया था. इस जीत से उत्साहित ग्रामीणों ने स्टील प्लांट के शिलान्यास स्थल पर ही संविधान का मंदिर बना दिया. जहां आज भी पंचायत में किसी भी बैठक, सभा या कोई फैसला लेने से पहले इस मंदिर में संविधान की पूजा की जाती है. 2000 की आबादी वाले इस गांव की खास बात यह है कि यह देश में अकेला गांव है, जहां संविधान का मंदिर है.

स्टील प्लांट के लिए हुआ था भूमि पूजन
6 अक्टूबर 1992 को एसएम डाइकिन के स्टील प्लांट का भूमि पूजन और शिलान्यास हुआ था. जिस लेकर ग्रामीणों का कहना था कि उनसे कंपनी के बारे में कोई सलाह नहीं ली गई, जबकि संविधान की पांचवीं अनुसूची में यह जरूरी है. इसके बाद प्लांट के विरोध में इलाके से सभी आदिवासी लामबंद हो गए और कई दिनों तक आंदोलन चला. आंदोलन की अगुवाई बस्तर के कलेक्टर रह चुके समाजशास्त्री ब्रह्मा देव शर्मा ने की थी.

24 दिसंबर 1996 को तैयार हुआ मंदिर
हालांकि, मंदिर के लिए कोई कमरा नहीं बना है और न ही इस पर छत है, 24 दिसंबर 1996 को तैयार हुआ ये मंदिर एक बड़े चबूतरे पर 6 फीट ऊंची और 10 फीट चौड़ी दीवार खड़ी कर बनाया गया है. इस दीवार पर भारतीय संविधान में अनुसूचित क्षेत्रों के लिए ग्राम सभा की शक्तियां और इससे संबंधित जानकारी लिखी गई है. इस मंदिर को लेकर लोगों में गजब की आस्था है. गांव में त्योहार या कोई नया काम शुरू होने से पहले पूरा गांव यहीं जुटता है. यहां कोई फैसला देने से पहले संविधान की कसमें खाई जाती है. इसके बाद एक राय से काम शुरू किया जाता है. ये परंपरा करीब 25 साल से लगातार कायम है. पंचायती राज अधिनियम लागू होने के बाद 1998 में अविभाजित मध्य प्रदेश की पहली ग्रामसभा की बैठक भी बुरुंगपाल में ही हुई थी.

मंदिर से जुड़ी है आदिवासियों की आस्था
स्टील प्लांट के विरोध में मिली एक सफलता से आदिवासियों की संविधान में इतनी आस्था हुई कि उन्होंने इस संविधान को अपने सांस्कृतिक और धार्मिक क्रियाकलापों में शामिल कर लिया. इसी का परिणाम है कि आज देश में संविधान का पहला मंदिर वहां स्थापित है, जहां नक्सलवाद ने अपनी जड़े जमा रखी हैं. ये मंदिर महज एक चबूतरे पर स्थापित किया गया है, लेकिन ये बस्तर के उन लोगों की बड़ी सोच को परिभाषित करता है, जिसे लोग पिछड़ा और अशिक्षित मानते हैं.

जगदलपुर : भारत में संसद को ही लोकतंत्र का मंदिर माना जाता है, लेकिन इसी भारत में छत्तीसगढ़ के जगदलपुर जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर एक संविधान का मंदिर भी मौजूद है. जहां हर रोज संविधान की पूजा की जाती है. मंदिर की स्थापना 1992 में की गई थी.

एक अनोखा मंदिर जहां हर दिन होती है संविधान की पूजा

दरअसल, डाइकिन स्टील प्लांट की स्थापना के विरोध में उपजे आंदोलन की सफलता ने आदिवासियों को संविधान में मिले उनके अधिकारों से अवगत कराया था. उसी दौरान पंचायती राज में 73वें संशोधन से ग्राम सभाओं को मिली ताकत का सबसे पहले बस्तर में प्रयोग किया गया था और आखिरकार ये स्टील प्लांट नहीं बनाया जा सका. क्योंकि, बुरुंगपाल ग्राम पंचायत ने ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित कर स्टील प्लांट को खारिज कर दिया था. इस जीत से उत्साहित ग्रामीणों ने स्टील प्लांट के शिलान्यास स्थल पर ही संविधान का मंदिर बना दिया. जहां आज भी पंचायत में किसी भी बैठक, सभा या कोई फैसला लेने से पहले इस मंदिर में संविधान की पूजा की जाती है. 2000 की आबादी वाले इस गांव की खास बात यह है कि यह देश में अकेला गांव है, जहां संविधान का मंदिर है.

स्टील प्लांट के लिए हुआ था भूमि पूजन
6 अक्टूबर 1992 को एसएम डाइकिन के स्टील प्लांट का भूमि पूजन और शिलान्यास हुआ था. जिस लेकर ग्रामीणों का कहना था कि उनसे कंपनी के बारे में कोई सलाह नहीं ली गई, जबकि संविधान की पांचवीं अनुसूची में यह जरूरी है. इसके बाद प्लांट के विरोध में इलाके से सभी आदिवासी लामबंद हो गए और कई दिनों तक आंदोलन चला. आंदोलन की अगुवाई बस्तर के कलेक्टर रह चुके समाजशास्त्री ब्रह्मा देव शर्मा ने की थी.

24 दिसंबर 1996 को तैयार हुआ मंदिर
हालांकि, मंदिर के लिए कोई कमरा नहीं बना है और न ही इस पर छत है, 24 दिसंबर 1996 को तैयार हुआ ये मंदिर एक बड़े चबूतरे पर 6 फीट ऊंची और 10 फीट चौड़ी दीवार खड़ी कर बनाया गया है. इस दीवार पर भारतीय संविधान में अनुसूचित क्षेत्रों के लिए ग्राम सभा की शक्तियां और इससे संबंधित जानकारी लिखी गई है. इस मंदिर को लेकर लोगों में गजब की आस्था है. गांव में त्योहार या कोई नया काम शुरू होने से पहले पूरा गांव यहीं जुटता है. यहां कोई फैसला देने से पहले संविधान की कसमें खाई जाती है. इसके बाद एक राय से काम शुरू किया जाता है. ये परंपरा करीब 25 साल से लगातार कायम है. पंचायती राज अधिनियम लागू होने के बाद 1998 में अविभाजित मध्य प्रदेश की पहली ग्रामसभा की बैठक भी बुरुंगपाल में ही हुई थी.

मंदिर से जुड़ी है आदिवासियों की आस्था
स्टील प्लांट के विरोध में मिली एक सफलता से आदिवासियों की संविधान में इतनी आस्था हुई कि उन्होंने इस संविधान को अपने सांस्कृतिक और धार्मिक क्रियाकलापों में शामिल कर लिया. इसी का परिणाम है कि आज देश में संविधान का पहला मंदिर वहां स्थापित है, जहां नक्सलवाद ने अपनी जड़े जमा रखी हैं. ये मंदिर महज एक चबूतरे पर स्थापित किया गया है, लेकिन ये बस्तर के उन लोगों की बड़ी सोच को परिभाषित करता है, जिसे लोग पिछड़ा और अशिक्षित मानते हैं.

Intro:जगदलपुर। देश की राजधानी में लोकतंत्र का मंदिर संसद भवन को माना जाता है। वही जगदलपुर मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर एक संविधान का मंदिर है। डाइकिन नामक स्टील प्लांट की स्थापना के विरोध में उपजे आंदोलन की सफलता ने आदिवासियों को संविधान में मिली उनके अधिकारों से अवगत कराया, पंचायती राज में 73वें संविधान से ग्राम सभाओं को मिली ताकत का सर्वप्रथम बस्तर में उपयोग किया गया, और अंततः यह स्टील प्लांट नहीं बनाया जा सका। ,ग्राम बुरुंगपाल की पंचायत ने ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित कर स्टील प्लांट को खारिज कर दिया था, अपनी इस जीत से उत्साहित ग्रामीणों ने स्टील प्लांट के शिलान्यास स्थल पर ही संविधान का मंदिर स्थापित कर दिया ।1992 में स्थापित संविधान के इस मंदिर में हर रोज पूजा की जाती है। पंचायत में किसी भी बैठक सभा या निर्णय से पहले इस मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है। उसके बाद ही कोई फैसला लिया जाता है।Body:2000 की आबादी वाले इस गांव की खास बात यह है कि यह देश में अकेला गांव है जहां देश के संविधान का मंदिर है, करीब 25 साल पहले आदिवासियों ने स्टील प्लांट के खिलाफ एक आंदोलन किया था, इसके बाद यह मंदिर स्थापित हुआ । 1992 में 6 अक्टूबर को इस इलाके के मावली भाषा में एसएम डाइकिन के स्टील प्लांट का भूमि पूजन और शिलान्यास हुआ था लेकिन ग्रामीणों का आरोप था कि उन्हें इस बारे में कोई सलाह नहीं ली गई जबकि संविधान की पांचवी अनुसूची में यह जरूरी था, प्लांट के विरोध में आदिवासी लामबंद हो गए आंदोलन की अगुवाई यहां कलेक्टर रह चुके समाजशास्त्री डॉक्टर ब्रह्मा देव शर्मा ने की थी उन्होंने बुरुंगपाल गांव में ही डेरा जमा लिया तब उन्होंने यह मंदिर यहां बनाया था इसी जगह से पूरा आंदोलन संचालित होता है।Conclusion:बस्तर के पूर्व कलेक्टर डॉक्टर ब्रह्म देव शर्मा करीब 3 साल यहां रहे लगातार यहां बैठकें होती थी इसके बाद 73वां संविधान संशोधन विधेयक पारित हुआ हालांकि मंदिर का कोई कमरा नहीं है और ना ही इस पर छत है लेकिन ग्रामीण इस स्थान का बेहद सम्मान करते हैं। 24 दिसंबर 1996 को तैयार हुआ यह मंदिर करीब 6 फीट लंबा और 8 फीट चौड़ा चबूतरे पर बना है। जिस पर पीछे की ओर 6 फीट ऊंची और 10 फीट चौड़ी दीवार बनी है । इस दीवार पर भारतीय संविधान में अनुसूचित क्षेत्रों के लिए ग्राम सभा की शक्तियां और इससे संबंधित इबारतें लिखी है। लेकिन इसमें ज्यादातर हिस्सा मिट चुका है। लोगों में इस स्थान को लेकर गजब की आस्था है । गांव में त्यौहार हो या कोई नया काम शुरू करना हो पूरा गांव यहीं जुटता है। संविधान की कसमें खाई जाती हैं। इसके बाद ही एक राय होकर काम शुरु करते हैं। यह परंपरा करीब 25 साल से लगातार कायम है। पंचायती राज अधिनियम लागू होने के बाद वर्ष 1998 में अविभाजित मध्यप्रदेश की पहली ग्रामसभा बुरुंगपाल में ही हुई थी।
बस्तर के आदिवासियों की सहजता और सरलता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह किसी भी स्थिति को कितनी सरलता से आत्मसात कर लेते हैं। स्टील प्लांट के विरोध में मिली एक सफलता से उन्हें संविधान में इतनी आस्था हुई कि उन्होंने इस संविधान को अपने सांस्कृतिक एवं धार्मिक क्रियाकलापों में शामिल कर लिया ,इसी का परिणाम है कि आज देश में संविधान का यह पहला मंदिर है। जहां संविधान की रोज विधिवत पूजा की जाती है। बशर्ते की संस्कृति में मंदिरों को बिना छत और दीवारों के बनाया जाता है। उसी परंपरा के अनुसार यह मंदिर भी महज एक चबूतरे पर स्थापित किया गया है। यह बस्तर के उन लोगों की बड़ी सोच को परिभाषित करता है। जिसे लोग पिछड़ा और अशिक्षित मानते हैं।
Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST
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