जगदलपुर: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की रस्म फूल रथ परिक्रमा का शुभारंभ हो चुका है. इस रस्म में बस्तर के आदिवासियों द्वारा हाथों और पारंपरिक औजारों द्वारा बनाए गए विशालकाय रथ की शहर परिक्रमा कराई जाती है. करीब 40 फीट ऊंचे व कई टन वजनी रथ को परिक्रमा के लिए खींचने सैकड़ों आदिवासी पहुंचते हैं. परिक्रमा के दौरान रथ पर मां दंतेश्वरी के छत्र को विराजमान कराया जाता है. दशहरे के दौरान देश में इकलौती इस तरह की परंपरा को देखने हर साल हजारों की संख्या में लोग पहुंचते रहे हैं, लेकिन इस साल कोरोना महामारी की वजह से विदेशी पर्यटकों के साथ-साथ प्रदेश के दूसरे हिस्सों के साथ ही देशभर से आने वाले पर्यटक व आम श्रद्धालुओं के आने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है.
1410 ईस्वी में शुरू हुआ बस्तर दशहरा
![flower chariot parikrama is amazing in bastar dussehra](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/cg-bst-04-foolrathparikramaspl-pkg-7205404_19102020223204_1910f_04109_914.jpg)
विशेष जानकार हेमंत कश्यप ने ETV भारत से चर्चा में बताया कि बस्तर दशहरे की इस अद्भुत रस्म की शुरुआत 1410 ईस्वी में तत्कालीन महाराजा पुरुषोत्तम देव ने की थी. महाराजा पुरुषोत्तम देव ने जगन्नाथपुरी जाकर रथपति की उपाधि प्राप्त की थी, जिसके बाद से अब तक यह परंपरा इसी तरह चली आ रही है, हालांकि राजा पुरुषोत्तम देव को जगन्नाथ पुरी के राजा ने 16 चक्कों की रथपति की उपाधि दी थी, लेकिन विशालकाय रथ होने की वजह से इस रथ को विभाजन कर 4 चक्कों का रथ गोंचा पर्व के लिए और चार-चार चक्कों का रथ फूल रथ परिक्रमा के लिए चलाया जाता है. जबकि 8 चक्कों का रथ दशहरा पर्व के दौरान 'भीतर रैनी बाहर रैनी' रस्म के लिए चलाया जाता है.
फूल रथ में माई की सवारी
![flower chariot parikrama is amazing in bastar dussehra](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/cg-bst-04-foolrathparikramaspl-pkg-7205404_19102020223158_1910f_04109_1049.jpg)
पिछले 610 सालों से यह परंपरा अनवरत चली आ रही है. हेमंत कश्यप ने बताया कि नवरात्रि के दूसरे दिन से सप्तमी तक माई जी की सवारी को परिक्रमा लगवाने वाले इस रथ को फूल रथ के नाम से जाना जाता है. दरअसल पहले आर्टिफिशियल सजावट की वस्तु नहीं होने की वजह से इस रथ को गेंदा फूल से सजाया जाता था और आज भी इस विशालकाय रथ को गेंदा फूलों से ही सजाया जाता है. इसमें दंतेश्वरी मंदिर से माई जी के मुकुट व छत्र को डोली में रथ तक लाया जाता है, इसके बाद जवानों द्वारा सलामी देकर इस रथ की परिक्रमा का आगाज किया जाता है.
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600 साल पुरानी परंपरा
लगभग 40 टन वजनी इस रथ को सैकड़ों आदिवासी मिलकर खींचते हैं. इसे माई दंतेश्वरी के प्रति आदिवासियों की आस्था ही कहेंगे कि लगभग 600 साल पुरानी इस परंपरा में आधुनिकीकरण के दौर में भी कोई बदलाव नहीं आया है. बस्तर में दशहरा पर्व की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. हर वर्ष इस पर्व को लेकर लोगों में काफी उत्साह देखा जाता है,लेकिन इस साल कोरोना के कारण श्रद्धालुओं के शामिल नहीं होने के कारण बस्तर दशहरा में खास रौनक नजर नहीं आ रही है.
हर साल हजारों श्रद्धालु होते थे शामिल
दशहरा पर्व समिति के अध्यक्ष व बस्तर सांसद दीपक बैज ने ETV भारत से चर्चा में बताया कि इतिहास में यह पहला मौका है जब बस्तर दशहरा पर्व के दौरान हजारों की संख्या में रहने वाले श्रद्धालु मौजूद नहीं है, लेकिन बड़े ही धूमधाम से दशहरा पर्व के सभी रस्मों को विधि विधान के साथ निभाया जा रहा है. विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा अपने आप में काफी वृहद पर्व है और इस पर्व की सभी रस्म अनोखी हैं. इसलिए समिति द्वारा कोशिश की जा रही है कि सोशल मीडिया के माध्यम से जो विदेशी पर्यटक व देश दुनिया से पर्यटक व आम श्रद्धालु इन रस्मों में यहां मौजूद नहीं है वे ऑनलाइन ही घर बैठे इस पर्व में शामिल हो और मां दंतेश्वरी के दर्शन कर सकें.
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कोरोना गाइडलाइन्स के बीच बस्तर दशहरा
सांसद ने बताया कि कोरोना काल को देखते हुए पूरी तरह से सावधानी बरती जा रही है और रथ खींचने आने वाले ग्रामीणों की कोरोना जांच के साथ समिति के सदस्यों व मांझी चालकियों का भी कोरोना टेस्ट नेगिटिव आने वाले लोगों को ही पर्व में शामिल होने दिया जा रहा है.
निगम के आयुक्त का कहना है कि रथ परिक्रमा से पहले रथ को पूरी तरह से सैनिटाइज किया जा रहा है. रथ खींचने वाले ग्रामीणों का भी थर्मल स्कैन किया जा रहा है.समिति के सभी सदस्यों को बार-बार हाथ धोने और सैनिटाइजर और मास्क का उपयोग करने को कहा जा रहा हैं. आयुक्त ने कहा कि बस्तर दशहरा पर्व को शांतिपूर्वक और बिना करोना संक्रमण फैले संपन्न कराने के लिए जिला प्रशासन के साथ निगम प्रशासन भी पूरी जद्दोजहद कर रहा हैं.
दशहरा पर्व के रस्मों के स्थलों पर भी पूरी तरह से सैनिटाइज किया जा रहा है. इसके लिए टीम सुबह से ही लगे रहती है. इसके अलावा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के साथ ज्यादा भीड़-भाड़ न हो इसका भी खास ख्याल रखा जा रहा है.