बालोदः एक नवंबर को छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) 21 वर्ष का हो जाएगा. जिसका जश्न पूरे प्रदेश में मनााया जा रहा है. वहीं, जश्न में जिला बालोद (Balod) भी शामिल है. आइए आपको हम बताते हैं कि 21 वर्ष में प्रदेश के साथ-साथ बालोद में कितना बदलाव और विकास हुआ है. दरअसल, बालोद वो जिला है, जहां पर्याप्त मात्रा में खनिज और जल संग्रहित होता है. यही कारण है कि इसे वाटर बैंक(Water bank) के नाम से भी जाना जाता है. 27 वें जिले के रूप में अस्तित्व में आने के बाद जब बालोद का जिक्र होता है तो वह खूबसूरत सा जलाशय हमारे आंखों के आगे दिखने लगता है. साथ ही एक बड़ी सी खदान विकास (Khadan bikash) के नए आयाम करते दिखाई देते हैं. लेकिन इन सब के बावजूद भी कहीं न कहीं जिले का विकास और मूलभूत सुविधा यहां बड़ी समस्या बनी हुई है.
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एक नजर में बालोद
दरअसल, बालोद नए जिलों में से एक था, जो 2012 में बना और छत्तीसगढ़ का 27 वां जिला बना. बालोद जिला 1 जनवरी 2012 को अस्तित्व में आया. 1 जनवरी 2012 को इसे सिविल डिस्ट्रिक्ट के रूप में अधिसूचित किया गया था, हालांकि राजस्व जिले के तौर पर इसे 10 जनवरी 2012 को घोषित किया गया. जिला बनने से पहले, यह दुर्ग जिले का हिस्सा था. बता दें कि बालोद शहर तान्दुला नदी के तट पर बसा है. जो आधिकारिक रूप से 1 जनवरी 2012 से जिला मुख्यालय का दर्जा प्राप्त कर चुका है.
वन सम्पदा से है समृद्ध
बता दें कि बालोद शहर की धमतरी तथा दुर्ग से दूरी 44 और 58 किलोमिटर है. जिला मुख्यालय बालोद तांदुला (आदमाबाद) डैम के समीप है. जो सूखा एवं तांदुला नदी पर 1912 में विकसित किया गया था. बालोद का कुल रकबा 35,2700 हेक्टेयर है. बालोद वन, जल एवं खनिज संसाधन जैसे प्राकृतिक सम्पदा से सम्पन्न है. बालोद धान, चना, गन्ना एवं गेहूं जैसे उपज के लिए जाना जाता है. बालोद कृषि उत्पाद (Agricultural products) के क्षेत्र में असीम सामर्थ्य रखता है. हाल ही में यहां बालोद बाजार की भी स्थापना की गई है. जहां स्थानीय स्तर पर निर्मित होने वाली सामग्रियों को विक्रय हेतु स्थान दिया जा रहा है.
बालोद जिले को वाटर बैंक भी कहते हैं
बालोद की एक खास पहचान सिंचाई के क्षेत्र में है. जिले के तांदुला, खरखरा एवं गोंदली डैम कृषि कार्य में सिंचाई के स्रोत हैं. जहां पर स्थानीय स्तर सहित आसपास के जिलों में खरीफ के साथ-साथ रबी फसल भी बोए जाते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि यहां से भिलाई इस्पात संयत्र के लिए पानी भी जाता है. बालोद की जल समृद्धि दुर्ग भिलाई बेमेतरा को भी समृद्ध करता है. जिला निर्माण के बाद से जलाशय क्षेत्र में काफी कुछ विकास किया गया है. लेकिन देख रेख के अभाव में पर्यटन स्थल के रूप में इसे आज भी नहीं देखा जाता है. दूसरी बड़ी बात ये है कि जिला बैनर के बाद छोटे-छोटे नहर लाइनिंग का कार्य भी जोरों से हुआ. जिसके बदौलत दूर के किसानों तक भी आराम से सिंचाई व्यवस्था मिल पाती है.
बस्तर की लाइफ लाइन से है जुड़ा
जिला बनने के बाद से लाइफलाइन मानी जाने वाली रेलवे योजना में भी बड़ा फर्क देखने को मिला. इसके बाद बस्तर भी सीधे बालोद से जुड़ चुका है. बस्तर में रेलवे की परियोजना लग चुकी है. यह सीधे जगदलपुर तक जाने वाली है. यहां पर वर्तमान में केंवटी तक रेल लाइन बिछा दिया गया है, जो कि सीधे बस्तर को जोड़ रहा है. विद्युत प्रवाह के साथ ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चंद्रेश हिरवानी ने इसे एक बड़ी उपलब्धि बताया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार की प्राथमिकता है कि वनांचल क्षेत्र सीधे-सीधे शहरों से जुड़े ताकि व्यापार इत्यादि में इजाफा हो सके.
बालोद की आधारभूत संरचनाएं
भाजपा जिला मंत्री शरद ठाकुर ने बताया कि, बालोद जिले में जिले की स्थापना के बाद से 100 बिस्तर अस्पताल मातृ शिशु चिकित्सालय कम अपोजिट बिल्डिंग के साथ-साथ पॉलिटेक्निक कॉलेज की भी सौगात मिली है. जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चंद्रप्रभा सुधाकर ने बताया कि, हाल ही के दिनों में उद्यानिकी महाविद्यालय की भी सौगात मिली है. साथ ही महिला महाविद्यालय और वर्तमान में आत्मानंद अंग्रेजी विद्यालय सहित आंगनबाड़ी केंद्रों में वृद्धि और वर्तमान में 36 नए खरीदी केंद्रों की स्थापना भी हुई है. वहीं, इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में देखा जाए तो बालोद में तेजी से विकास हुआ है. आज यहां पर सभी शासकीय भवन हैं. निर्माण मंडल के माध्यम से भवन भी बनाए गए हैं. पुलिस विभाग के कर्मचारियों के लिए क्वार्टर राजस्व विभाग के कर्मचारियों के लिए क्वार्टर सहित और भी विकास किए गए हैं, जिनमें सड़के इत्यादि भी शामिल है.
विकास वर्सेस खनिज न्यास
वहीं, जिले में दल्ली राजहरा से भारी मात्रा में लौह अयस्क निकलता है. इसी लौह अयस्क से भिलाई इस्पात संयंत्र का संचालन होता है. लेकिन क्षेत्र के परिधि विकास के बारे में चर्चा की जाए तो विकास दर शून्य है. क्योंकि यहां पर भिलाई जैसी सुविधा बालोद जिले को भी मिलनी चाहिए थी. अगर यहां से लौह अयस्क नहीं जाता तो आखिर भिलाई इस्पात संयंत्र कहां से विकसित होती? स्थानीय स्तर पर राजहरा क्षेत्र में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के लिए कुछ संस्थान निर्मित तो है, परंतु वहां सुविधाएं नाम मात्र की रहती है. जिसके लिए समय-समय पर आंदोलन भी होता है.लेकिन सही मायने में देखा जाए तो खनिज संस्थान न्यास निधि का भी लाभ इस चित्र को नहीं मिल पा रहा. यानी कि जिस तरीके से लाभ मिलना चाहिए था उस तरीके के लाभ से ये जिला कोसों दूर है.
सभी समाज के लोग करते हैं निवास
वहीं, बालोद जिले की बात करें, तो यहां सभी समाज, सभी धर्म के लोग हैं. जो कि एकता और सद्भावना से रहते हैं. यहां पर गंगा मैया मंदिर के साथ-साथ बालोद में जामा मस्जिद भी काफी विख्यात है.
पुरातत्व को भूल रही सरकारें
इधर, क्षेत्रीय अन्वेषक पुरातत्व के जानकार और वरिष्ठ नागरिक ने दोनों सरकारों पर ठीकरा फोड़ते हुए कहा कि, जिन उद्देश्यों से बालोद का विकास होना चाहिए था, वो नहीं हो पाया है. यहां पर पुरातत्व का भंडार है. खनिज का भंडार है. जल का भंडार है. कई गांव ऐसे हैं जहां पर अभी तक मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंच पाई है. लगभग 600 गांव ऐसे हैं. जहां पर आज भी पेयजल संकट है. मेरे ख्याल से प्रदेश में बालोद ऐसा जिला है. जहां पर जल की प्रचुर मात्रा में भंडार है. रेत की अथाह संपदा है. शिवनाथ और महानदी के मध्य में स्थापित होने के बाद भी यह जिला समृद्धि को तरस रहा है.
वहीं, इस विषय में जब सब से चर्चा की गई तो एक बात निकल कर सामने आई कि यहां कि जल संपदा हो, चाहे जंगल संपदा, या खनिज संपदा. हर क्षेत्र में दोहन हो रहा है. यहां के प्रकृतिक संपदा के विकास पर काम होने से यहां के विकास की बात ही कुछ और होती.