बालोद: भारत में जंगलों और पेड़ों को बचाने के लिए चिपको, आपिको और जंगल बचाओं आंदोलन जैसे कई बड़े आंदोलन हुए. इन आंदोलनों ने लोगों को जंगलों की अहमियत समझने और उन्हें बचाने के लिए अहम भूमिका निभाई है. 2 साल पहले मुंबई के आरे क्षेत्र में पेड़ काटे जाने का स्थानीय लोगों समेत कई हस्तियों ने खूब विरोध किया था, जिसके बाद अब छत्तीसगढ़ में पेड़ काटे जाने के बड़े स्तर पर विरोध शुरु हो गया है.
छ्त्तीसगढ़ के बालोद जिले में लोक निर्माण विभाग एक सड़क निर्माण के लिए करीब 2900 पेड़ों को काटने की तैयारी कर रहा है. पर्यावरण प्रेमी और स्थानीय लोग इसके विरोध में उतर आए हैं. इन लोगों का विरोध करीब 48 साल पहले उत्तराखंड में हुए 'चिपको आंदोलन' की की भांति ही नजर आ रहा है. बालोद में पर्यावरण प्रेमियों ने पेड़ों पर रक्षा सूत्र बांधकर उन्हें बचाने की कवायद शुरु की है. पेड़ों को काटने के विरोध में इलाके की महिलाएं भी भारी संख्या में शामिल हुई और संकल्प लिया है कि वह पेड़ों को कटने नहीं देंगे.
50 हजार पेड़ काटे जाने का विरोध
पर्यावरण प्रेमियों ने लोक निर्माण विभाग पर सड़क के लिए कटने वाले पेड़ों की संख्या कम बताए जाने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि विभाग ने 2900 पेड़ कटने की बात बताई है, जबकि यहां करीब 50 हजार पेड़ काटे जाने का अनुमान है. उन्होंने कहा कि विभाग ने सिर्फ बड़े पेड़ों की गिनती की है और छोटे पेड़ों को गिना तक नहीं है. जंगल में इस तरह के हजारों छोटे पेड़ सड़क निर्माण के समय कट जाएंगे. उन्होंने आगे कहा कि इन पेड़ों को दूसरी जगह शिफ्ट किया जा सकता है. उन्होंने आगे कहा कि मौसम लगातार बदल रहा है, बारिश समय से नहीं हो रही है और इसका कारण पेड़ों की अंधाधुंध कटाई है. यदि इसे नहीं रोका गया तो हमारा भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. वह अब इसके लिए आगे हड़ताल करेंगे.
'हम गरीब हैं, हम जंगल बचाने आये हैं, जंगल है तो हमारी जिंदगी है'
भाई की तरह है ये वृक्ष
जंगल बचाने और कटाई के विरोध में आई महिलाओं एवं युवतियों ने कहा, 'हम एक भाई को रक्षा बंधन पर रक्षा सूत्र बांधते हैं, वैसे ही वृक्ष भी हमारे भाई हैं. इन्हें रक्षा सूत्र बांधकर हम इनकी रक्षा का संकल्प लेते हैं. जब तक इन पेड़ों के साथ न्याय नहीं होता, हम अपने बहन होने का प्रेम और कर्तव्य निभाते रहेंगे.' उन्होंने कहा कि यहां सरकार को इसके लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है. पेड़ों को शिफ्ट भी तो किया जा सकता है. सरकार इस ओर क्यों ध्यान नहीं दे रही है, क्या विकास के नाम पर पेड़ काटना जरूरी है? क्या सड़क को और चौड़ा करना जरूरी है?.
कोरोना काल में भी नहीं समझी पेड़ों की अहमियत
विरोध के लिए जंगल पहुंची महिलाओं ने कहा कि यहां के छोटे पौधे 1 साल में बड़े हो जाएंगे. कोरोना वायरस जैसे संक्रमण के दौर में जनता ऑक्सीजन के लिए तरस रही थी. इन सब के बाद तो प्रशासन और विभाग को इनकी अहमियत समझनी चाहिए. उन्हें यह समझना चाहिए कि जीने के लिए ऑक्सीजन की कितनी आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि आंदोलन को एक बड़े स्तर पर किया जाएगा.
15 दिनों से चल रहा विरोध
इस आंदोलन को लेकर बालोद निवासी वीरेंद्र सिंह ने कहा कि वह पिछले 15 दिनों से ग्रामीण महिलाओं के साथ पेड़ों को बचाने के लिए चिपकों आंदोलन और रक्षा सूत्र बांधकर विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि हम इस समय जयवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग जैसी विकट समस्या से जूज रहे हैं. इन पेड़ों का सबसे बड़ा योगदान प्रकृति के चक्र को बनाए रखना है. इस दौरान उन्होंने नारा लगाया कि 'धरती माता करे पुकार-वृक्ष लगाकर करो श्रृंगार'.
इसलिए काटे जा रहे हैं पेड़
बता दें कि बालोद जिले में तरौद और देहान इलाकों के बीच 8 किलोमीटर की सड़क का चौड़ीकरण होना है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इसमें 2900 पेड़ काटे जाएंगे, लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि यहां 40-50 हजार पेड़ काटे जा रहे हैं. ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों की मांग हैं कि पहले सरकार 2900 नए पेड़ लगाए उसके बाद ही वह उन पेड़ों को विभाग को काटने देंगे. ग्रामीणों ने कहा है कि वह इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सीएम भूपेश बघेल और राज्यपाल, राष्ट्रपति को भी पत्र लिख रहे हैं.