बालोद: 109 साल पुराने तांदुला जलाशय (Tandula reservoir in balod) के संरक्षण को लेकर पहली बार प्रशासन ने पहल शुरू की है. जलाशय के मुख्य गेट में तकनीकी खराबी आने से के बाद यहां मरम्मत कार्य (repair of tandula reservoir gate) कराया जा रहा है. गेट के मरम्मत के लिए जलाशय के पानी को पूरी तरह से खाली भी कराया गया है. पानी खाली होने के बाद डैम के नीचे बनी सुरंग और फौलादी गेट को देखने लोग बड़ी संख्या में यहां पहुंच रहे हैं. अंग्रेजों के समय बने इस जलाशय की अद्भुत इंजीनियरिंग देखने लायक बनती है.
तीन जिलों की जीवनदायिनी तांदुला जलाशय
बालोद के साथ दुर्ग और बेमेतरा जिले की जीवनदायिनी कहे जाने वाले, तांदुला जलाशय जब से बना है तब से केवल इसका उपयोग ही होता आया है, लेकिन इसके संरक्षण पर कभी ध्यान नहीं दिया गया. पिछले कुछ वर्षों से इस जलाशय के मुख्य गेट से पानी का रिसाव हो रहा था. काफी मात्रा में पानी जलाशय से खाली हो रहा था. जिसकी मरम्मत के लिए जल संसाधान विभाग लगातार कोशिशों में जुटा था. अब मंजूरी मिलने के बाद तांदुला जलाशय के गेट की मरम्मत की जा रही है. गेट की मरम्मत के लिए जलाशय के पानी को खाली कराया गया है. पानी खाली होने के बाद यहां कई अनछुए रहस्य दिखाई दे रहे हैं.
जीवनदायनी तांदुला को संवारने आगे आए शहर के युवा
उत्कृष्ट इंजीनियरिंग का नमूना तांदुला जलाशय
अंग्रेजों के समय बना तांदुला जलाशय उत्कृष्ट इंजीनियरिंग का उदाहरण है. इस जलाशय का आर्किटेक्चर जबरदस्त है. डैम पर 8-8 फीट के तीन गेट बने हुए हैं. सबसे मुख्य गेट का कार्य अभी चल रहा है. तीनों गेट को मिलाकर केनाल के माध्यम से पानी छोड़ा जाता है. जलाशय के नीचे गेट तक लंबी सुरंगें यहां बनी हुई हैं. इतने सालों में किसी को पता नहीं था कि यहां इतनी लंबी सुरंग होगी, लेकिन जब गेट मरम्मत के लिए जलाशय का पानी खाली कराया गया था तो सुरंग दिखाई दी. लोगों के लिए यह सुरंग एक रोचक विषय बनी हुई है.
बिट्रिश शासन काल मे हुआ था निर्माण
ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1905 में तांदुला जलाशय का निर्माण कार्य शुरू हुआ और 1912 में यह बनकर तैयार हुआ. भिलाई स्टील प्लांट निर्माण होने के बाद स्टील प्लांट को तांदुला जलाशय से पानी आपूर्ति करने तांदुला नहर और जलाशय के मध्य भारी भरकम लोहे का गेट लगाया गया था, जिससे अब तक उसी गेट से पानी छोड़ा जाता रहा है. वर्तमान में गेट की स्थिति को देखते हुए जल संसाधन विभाग निर्माण एजेंसी के माध्यम से गेट मरम्मत कार्य किया जा रहा है.
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दुर्ग और बेमेतरा को भी जल आपूर्ति
अंग्रेजों के शासनकाल में निर्मित तांदुला जलाशय पर्यटकों के लिए भी महत्वपूर्ण है. जो भिलाई इस्पात सयंत्र को जल आपूर्ति के अलावा पड़ोसी जिले दुर्ग और बेमेतरा को भी जल आपूर्ति किया जाता है. तांदुला नदी और सूखा नाला पर वर्ष 1912 में तांदुला जलाशय का निर्माण किया गया. वर्ष 2012 में तांदुला जलाशय का शताब्दी समारोह मनाया गया था. बांध की अधिकतम उंचाई 25 मीटर है. जलाशय से आस-पास के करीब 23,001 हेक्टेयर कृषि जमीन की सिंचाई होती है.
बारिश से पहले मरम्मत कराने का लक्ष्य
गेट मरम्मत के साथ ही यहां पिचिंग कार्य और ओवर ऑयलिंग भी की जा रही है. मरम्मत के लिए कुशल कारीगर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं. इसके लिए कोरबा के हसदेव बांगो जलाशय से यहां इंजीनियर और मजदूर आए हैं. जल संसाधन विभाग की कोशिश है कि बारिश से पहले गेट का मरम्मत कार्य पूरा कर लिया जाए,जिससे यहां पानी दोबारा भरा जा सके. विभाग की मानें तो 15 दिनों में गेट का मरम्मत का कार्य पूरा हो जाएगा.
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मरम्मत ने रोका जल आवर्धन का कार्य
बालोद शहर में जल आवर्धन योजना के तहत घर-घर फिल्टर युक्त पानी देने के लिए कार्य जोर-शोर से चल रहा है. हालांकि जब टेस्टिंग की बारी आई तो गेट मरम्मत के चलते टेस्टिंग रोकनी पड़ी. नगर पालिका बालोद के सभापति योगराज भारती ने बताया कि गेट मरम्मत का कार्य जैसे ही पूरा होगा. इस जलाशय से पानी की सप्लाई घरों तक की जाएगी. शहर में पानी की कमी न हो इसके लिए भी लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि बांध की रक्षा और जल के संरक्षण के लिए गेट की मरम्मत भी जरूरी है.
जल्द ही आएगी बहार
100 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है. जब यहां से पानी इतनी मात्रा में खाली किया गया है. प्री मानसून की शुरुआत हो चुकी है. आगे बारिश से जलाशय में पानी का भराव होगा. तब यहां पर्यटक आएंगे. एक बार फिर से तांदुला हजारों लोगों की प्यास बुझाने और संयंत्रों को नई ऊंचाई देने पहले की तरह अडिग रहेगा.