सरगुज़ा : विश्व धरोहर दिवस धरोहरों के संरक्षण के उद्देश्य से मनाया जाता है. छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी बाहुल्य राज्य की मुख्य धरोहर उसकी संस्कृति है. यहां के लोगों और कलाकारों ने इस संस्कृति को संरक्षित करने का काम किया है. कई पीढ़ियों से छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार खास तौर पर सरगुजा के लोक कलाकार संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं. इस क्षेत्र में छत्तीसगढ़ और सरगुजा के साहित्यकारों ने अमूल्य योगदान दिया है. पीढी दर पीढ़ी आदिवासी परम्परा को लोक गीतों और नृत्य के माध्यम से ना सिर्फ जिंदा रखा गया. बल्कि इसने विश्व स्तर पर पहचान दिलाई है.
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गीतकार विजय सिंह दमाली ने छत्तीसगढ़िया संस्कृति को बढ़ाया:आज के समय में युवा पीढी सहित देश और दुनिया अगर इस विरासत को देख और जान पा रही है तो उसका कारण हैं यहां के लोक कलाकार जिन्होंने इस सभ्यता को गीतों और नृत्य में जीवित रखा है. ऐसे ही एक गीतकार हैं विजय सिंह दमाली जिनके लिखे गीत आज हर शासकीय और निजी समारोहों की शोभा बढ़ाते हैं. विजय बताते हैं कि, उनके एक गीत पर 26 हजार जम्बूरी कैडेट ने नृत्य किया और गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में यह गीत और इवेंट दर्ज हुआ.
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सरगुजा के लोक गीत काफी प्रसिद्ध: सरगुजा के दो लोक गीत जो बेहद फेमस हैं उनकी रचना विजय सिंह दमाली ने ही की है. पहला गीत हाय रे सरगुज़ा नाचे, जिसकी धुन पर आईएएस कॉन्क्लेव में सरगुज़ा के समस्त आईएएस अधिकारी नाच रहे थे. तो दूसरा गीत करमा कुहिको गाबो मंदार के थाप मा... इस गीत पर तो जम्बूरी कैडेट ने रिकॉर्ड ही बना लिया.ऐसे हीं लोक गीत, लोक पर्व और संस्कृति के लिए सरगुज़ा और छत्तीसगढ़ को देश मे जाना जाता है. इस पहचान को उस मुकाम तक पहुंचाने का काम अपनी विरासत को संभालने का काम यहां के लोक कलाकार कर रहे हैं.